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नैनीताल में शुरू हुआ मां नंदा-सुनंदा महोत्सव, कदली वृक्ष लेने के लिए दल हुआ रवाना

आज से नैनीताल में मां नंदा-सुनंदा महोत्सव की शुरुआत हो गई है. वहीं, मूर्ति निर्माण के लिए कदली वृक्ष को लाने के लिए 5 लोगों का दल समीपवर्ती गांव जोगुड़ा रवाना हुआ.

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नैनीताल में शुरू हुआ मां नंदा-सुनंदा महोत्सव
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Published : Aug 23, 2020, 8:51 PM IST

नैनीताल: कुमाऊं में कुल देवी के रूप में पूजी जाने वाली मां नंदा-सुनंदा के महोत्सव का आज नैनीताल में आगाज हो गया है. पहले दिन मां की मूर्ति के निर्माण के लिए भक्तों का एक दल कदली वृक्ष लेने के लिए रवाना हुआ. इस बार कोरोना संक्रमण को देखते हुए रामसेवक सभा ने महोत्सव को सांकेतिक रूप से मनाने का फैसला किया है. जिसके कारण केवल 5 लोगों का ही दल कदली वृक्ष लेने के लिए रवाना हुआ.

नैनीताल में शुरू हुआ मां नंदा-सुनंदा महोत्सव


आज पूरे रीति-रिवाजों और विधि विधान से वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मां नंदा सुनंदा के महोत्सव का शुभारंभ हो गया है. आज एक 5 सदस्यी दल रामसेवक सभा से मां की मूर्ति निर्माण के लिए कदली वृक्ष लेने के लिए नैनीताल के समीपवर्ती गांव जोगुड़ा रवाना हुआ.

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बता दें कदली वृक्ष वह केले का पेड़ होता है जिससे मां नंदा सुनंदा की मूर्तियों का निर्माण किया जाता है. मंदिर समिति के अध्यक्ष मुकेश जोशी बताते हैं कि केले का पेड़ बेहद शुद्ध होता है, जिस वजह से केले के वृक्ष से मां नंदा सुनंदा की मूर्तियों का निर्माण किया जाता है.

पढ़ें- NIT: भूमिपूजन का कार्यक्रम स्थगित, केंद्रीय शिक्षा मंत्री निशंक का बयान- सुमाड़ी में ही बनेगा NIT

मुकेश जोशी बताते हैं कि जिस तरह से शादी के दौरान लड़की के माता-पिता व परिजन बारात का स्वागत करते हैं, उसी तर्ज पर जिस गांव से केले का पेड़ लाया जाता है, उस गांव के लोग कदली वृक्ष लाने वाले दल का स्वागत करते हैं. जिस तरह से लड़की की शादी की जाती है उसी परंपरा के अनुसार केले के पेड़ों को काट कर अगले दिन ग्रामीण कदली वृक्ष यानी केले के पेड़ों को विदा करते हैं. यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है जो आज भी जीवित है.

पढ़ें-दुश्वारियां : अस्पताल तक जाने के लिए चलना पड़ा 50 किमी. पैदल

प्राचीन समय से परंपरा है कि जिस स्थान से एक कदली यानी केले का वृक्ष लाया जाता है उस स्थान पर रामसेवक सभा द्वारा पांच वृक्ष रोपे जाते हैं. यह परंपरा पर्यावरण के प्रति प्रेम का संदेश भी देती है.

नैनीताल: कुमाऊं में कुल देवी के रूप में पूजी जाने वाली मां नंदा-सुनंदा के महोत्सव का आज नैनीताल में आगाज हो गया है. पहले दिन मां की मूर्ति के निर्माण के लिए भक्तों का एक दल कदली वृक्ष लेने के लिए रवाना हुआ. इस बार कोरोना संक्रमण को देखते हुए रामसेवक सभा ने महोत्सव को सांकेतिक रूप से मनाने का फैसला किया है. जिसके कारण केवल 5 लोगों का ही दल कदली वृक्ष लेने के लिए रवाना हुआ.

नैनीताल में शुरू हुआ मां नंदा-सुनंदा महोत्सव


आज पूरे रीति-रिवाजों और विधि विधान से वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मां नंदा सुनंदा के महोत्सव का शुभारंभ हो गया है. आज एक 5 सदस्यी दल रामसेवक सभा से मां की मूर्ति निर्माण के लिए कदली वृक्ष लेने के लिए नैनीताल के समीपवर्ती गांव जोगुड़ा रवाना हुआ.

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बता दें कदली वृक्ष वह केले का पेड़ होता है जिससे मां नंदा सुनंदा की मूर्तियों का निर्माण किया जाता है. मंदिर समिति के अध्यक्ष मुकेश जोशी बताते हैं कि केले का पेड़ बेहद शुद्ध होता है, जिस वजह से केले के वृक्ष से मां नंदा सुनंदा की मूर्तियों का निर्माण किया जाता है.

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मुकेश जोशी बताते हैं कि जिस तरह से शादी के दौरान लड़की के माता-पिता व परिजन बारात का स्वागत करते हैं, उसी तर्ज पर जिस गांव से केले का पेड़ लाया जाता है, उस गांव के लोग कदली वृक्ष लाने वाले दल का स्वागत करते हैं. जिस तरह से लड़की की शादी की जाती है उसी परंपरा के अनुसार केले के पेड़ों को काट कर अगले दिन ग्रामीण कदली वृक्ष यानी केले के पेड़ों को विदा करते हैं. यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है जो आज भी जीवित है.

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प्राचीन समय से परंपरा है कि जिस स्थान से एक कदली यानी केले का वृक्ष लाया जाता है उस स्थान पर रामसेवक सभा द्वारा पांच वृक्ष रोपे जाते हैं. यह परंपरा पर्यावरण के प्रति प्रेम का संदेश भी देती है.

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