हल्द्वानी: उत्तराखंड के पहाड़ लगातार आग से धधक रहे हैं. वन विभाग आग पर काबू पाने की लगातार कोशिश कर रहा है, लेकिन नाकाम साबित हो रहा है. बताया जा रहा है कि पहाड़ों पर आग लगने का मुख्य कारण चीड़ के पेड़ हैं.
उत्तराखंड में हर साल आग की घटनाओं में पहाड़ के हजारों हेक्टेयर वन सम्पदा जलकर खाक हो जाती है. वन विभाग पहाड़ पर लगने वाली आग को रोकने में पूरी तरह से नाकाम साबित होता है. वन विभाग का मानना है कि ये आग लगने की मुख्य वजह चीड़ के पेड़ हैं. चीड़ के पेड़ से सरकार को हर साल करोड़ों का राजस्व मिलता है लेकिन हर साल इन्हीं से करोड़ों की वन सम्पदा जलकर खाक हो जाती है.
पढ़ें- अभी भी सुलग रहे अल्मोड़ा के जंगल, आबादी वाले इलाके में पहुंचने वाली है आग
बताया जाता है कि पहाड़ के जंगलों में भारी मात्रा में सूखे हुए पत्ते होते हैं, इन्हीं पत्तों में चीड़ की सुखी हुई पत्तियां (पिरूल) भी होती हैं, जो अतिज्वलनशील होती हैं, ऐसा इसलिये क्योंकि चीड़ के पेड़ में लीसा का मात्रा अधिक होता है, जो काफी ज्वलनशील होता है. ये आग को और भी भड़काने का काम करता है. गर्मियों में तापमान अधिक होने के चलते पिरूल में कई बार पत्थरों की घर्षण से स्वतः ही आग लग जाती है.
पढ़ें- सड़क हादसों पर नहीं लग रही लगाम, 3 साल के आंकड़े देखकर चौंक जाएंगे आप
मिली जानकारी के मुताबिक, कुमाऊं के जंगलों से हर साल 2 लाख क्विटंल लीसा का कारोबार किया जाता है. इस कारोबार में वन विभाग और अन्य क्षेत्र के हजारों लोग जुड़े हुए हैं.
पढ़ें- कोटद्वार के कैफ का नाम गिनीज बुक में दर्ज, पैर से तीन मिनट में खाए 65 अंगूर
मुख्य सुरक्षा अधिकारी संजीव कुमार का कहना है कि वनों में आग लगने में वन विभाग भी जिम्मेदार माना जाता है क्योंकि, वन विभाग के जंगलों में पड़ी पाइपलाइनें या तो क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं या बंद पड़ी हैं. ऐसे में अगर जंगलों में आग लगती है तो वन विभाग के पास इससे निपटने के लिए कोई संसाधन नहीं है. वन विभाग फायर सीजन से पहले अपने जंगलों में लगे पाइप लाइनों को ठीक करवा ले तो जंगल में लगी आग पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है.