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नैनीताल में हर्षोल्लास से मनाई जा रही है खड़ी होली

नैनीताल में खड़ी होली बड़े ही हर्षोल्लास से मनाई जा रही है. यहां हिंदू-मुस्लिम सभी लोग मिलकर होली के इस त्योहार को मनाते हैं. यही कारण है कि नैनीताल की होली अपने आप में महत्व रखती है. सभी धर्मों के लोग बेरोकटोक रंगों के इस त्योहार में शामिल होते हैं और एक दूसरों को रंगों के त्योहार की बधाई देते हैं.

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Published : Mar 26, 2021, 2:24 PM IST

नैनीताल: यूं तो पूरे देश में होली का पर्व मनाया जाता है, लेकिन कुमाऊं की खड़ी होली का अपना ही अलग रंग है. गौरवशाली इतिहास समेटे पहाड़ की होली का ऐसा रंग कुमाऊं में ही देखा जाता है. ढोल और रागों पर झूमने के साथ ही इस होली में गौरवशाली इतिहास का वर्णन होता है. होलियार भी इस के रंग में रंग जाते हैं. हालांकि पिछले कुछ सालों में रीति-रिवाज परंपराओं में बदलाव आए पर आज भी पहाड़ों की ये होली नजीर बनी हुई है. पहाड़ों में आज भी खड़ी होली अपने स्थान पर कायम है और होली के अवसर पर देश-प्रदेश से लोग अपने गांव आकर होली के रंग में रंग जाते हैं.

नैनीताल में हर्षोल्लास से मनाई जा रही है खड़ी होली.

खड़ी होली का इतिहास

कुमाऊं की इस होली का इतिहास करीब 500 साल से ज्यादा पुराना है. ढोल की थाप के साथ कदमों की चहल कदमी और राग रागनियों का समावेश इस खड़ी होली में होता है. कुमाऊं में चंपावत, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर की घाटियों में खड़ी होली का आयोजन किया जाता है. राग दादरा और राग कहरवा में गाए जाने वाली इस होली का गायन कृष्ण पक्ष में राधा-रानी, राजा हरिश्चंद्र, श्रवण कुमार समेत रामायण और महाभारत काल की घटनाओं का वर्णन किया जाता है.

नैनीताल में आयोजित हो रही इस होली में सर्व धर्म एकता की मिसाल भी देखने को मिलती है और यहां हिंदू-मुस्लिम सभी लोग मिलकर होली के इस त्योहार को मनाते हैं. यही कारण है कि नैनीताल की होली अपने आप में महत्व रखती है. सभी धर्मों के लोग बेरोकटोक रंगों के इस त्योहार में शामिल होते हैं और एक दूसरों को रंगो के त्योहार की बधाई देते हैं.

पढ़ें: चमोली में होली मिलन कार्यक्रमों की शुरुआत

कुमाऊं की खड़ी होली का नजारा हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है. ढोल की थाप पर होलियार रंगों के इस पर्व पर रंगे नजर आ रहे हैं. देशभर के अन्य क्षेत्रों में खेली जाने वाली होली से कुमाऊं की होली कई मायनों में अलग है. कुमाऊं में शिवरात्रि के बाद चीर बंधन के बाद होली शुरू होती है जो होली के दिन यानी चिरबंधन तक चलती है. कुमाऊं की ये होली मंदिर से शुरू होती है जो गावों के हर घर में जाकर होली का गायन करते हैं. जिसके बाद आशीष यानी (आशीर्वाद) परिवार को देते हैं चंद्र शासक काल से चली आ रही यह परंपरा आज भी अपने महत्व को कुमाऊं की वादियों में समेटे हुए हैं.

नैनीताल: यूं तो पूरे देश में होली का पर्व मनाया जाता है, लेकिन कुमाऊं की खड़ी होली का अपना ही अलग रंग है. गौरवशाली इतिहास समेटे पहाड़ की होली का ऐसा रंग कुमाऊं में ही देखा जाता है. ढोल और रागों पर झूमने के साथ ही इस होली में गौरवशाली इतिहास का वर्णन होता है. होलियार भी इस के रंग में रंग जाते हैं. हालांकि पिछले कुछ सालों में रीति-रिवाज परंपराओं में बदलाव आए पर आज भी पहाड़ों की ये होली नजीर बनी हुई है. पहाड़ों में आज भी खड़ी होली अपने स्थान पर कायम है और होली के अवसर पर देश-प्रदेश से लोग अपने गांव आकर होली के रंग में रंग जाते हैं.

नैनीताल में हर्षोल्लास से मनाई जा रही है खड़ी होली.

खड़ी होली का इतिहास

कुमाऊं की इस होली का इतिहास करीब 500 साल से ज्यादा पुराना है. ढोल की थाप के साथ कदमों की चहल कदमी और राग रागनियों का समावेश इस खड़ी होली में होता है. कुमाऊं में चंपावत, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर की घाटियों में खड़ी होली का आयोजन किया जाता है. राग दादरा और राग कहरवा में गाए जाने वाली इस होली का गायन कृष्ण पक्ष में राधा-रानी, राजा हरिश्चंद्र, श्रवण कुमार समेत रामायण और महाभारत काल की घटनाओं का वर्णन किया जाता है.

नैनीताल में आयोजित हो रही इस होली में सर्व धर्म एकता की मिसाल भी देखने को मिलती है और यहां हिंदू-मुस्लिम सभी लोग मिलकर होली के इस त्योहार को मनाते हैं. यही कारण है कि नैनीताल की होली अपने आप में महत्व रखती है. सभी धर्मों के लोग बेरोकटोक रंगों के इस त्योहार में शामिल होते हैं और एक दूसरों को रंगो के त्योहार की बधाई देते हैं.

पढ़ें: चमोली में होली मिलन कार्यक्रमों की शुरुआत

कुमाऊं की खड़ी होली का नजारा हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है. ढोल की थाप पर होलियार रंगों के इस पर्व पर रंगे नजर आ रहे हैं. देशभर के अन्य क्षेत्रों में खेली जाने वाली होली से कुमाऊं की होली कई मायनों में अलग है. कुमाऊं में शिवरात्रि के बाद चीर बंधन के बाद होली शुरू होती है जो होली के दिन यानी चिरबंधन तक चलती है. कुमाऊं की ये होली मंदिर से शुरू होती है जो गावों के हर घर में जाकर होली का गायन करते हैं. जिसके बाद आशीष यानी (आशीर्वाद) परिवार को देते हैं चंद्र शासक काल से चली आ रही यह परंपरा आज भी अपने महत्व को कुमाऊं की वादियों में समेटे हुए हैं.

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