हल्द्वानीः उत्तराखंड में प्रसव के बाद जच्चा-बच्चा को घर तक पहुंचाने वाली खुशियों की सवारी बीते कई महीनों से बंद है. जिसके चलते लोग प्रसूता और नौनिहालों को प्राइवेट वाहन से ही घर ले जाने को मजबूर हैं. अस्पतालों में इसके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं की गई है. इतना ही नहीं ये वाहन अस्पताल परिसर में खड़े-खड़े जंग खा रहे हैं, लेकिन प्रदेश सरकार और स्वास्थ्य महकमा इसे फिर से संचालित करने की जहमत तक नहीं उठा रहा है. जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है.
बता दें कि प्रदेश सरकार और स्वास्थ्य महकमे ने प्रदेश में गर्भवती महिलाओं के साथ मासूम बच्चों के इलाज के लिए खुशियों की सवारी नाम से एंबुलेंस चलाई थी. ये एंबुलेंस डिलीवरी के बाद महिलाओं को अस्पताल से उनके घर तक फ्री में छोड़ने के लिए जाती थी, लेकिन इसका संचालन पीपीपी मोड में किया जाने लगा. जिसके बाद प्रदेश में खुशियों की सवारी का संचालन लड़खड़ाने लगा.
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वहीं, राज्य सरकार ने पीपीपी मोड के तहत स्वास्थ्य महकमे को सीएमओ स्तर पर इसे संभालने की जिम्मेदारी दी, लेकिन सरकार के द्वारा बजट कम दिए जाने के चलते स्वास्थ्य महकमे ने हाथ खड़े कर दिए हैं. ऐसे में कई महीनों से खुशियों की सवारी के पहिए पूरी तरह से ठप हैं. नैनीताल जिले की बात करें तो जिले से संचालित होने वाली 9 खुशियों की सवारी के वाहन अलग-अलग अस्पतालों में खड़े-खड़े जंग खा रहे हैं.
इनमें ज्यादातार वाहन खराब हो चुके हैं और चलने की स्थिति में नहीं हैं. जबकि, विभाग इन वाहनों की सुध लेने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठा रहा है. जिसका खामियाजा जच्चा-बच्चा को उठाना पड़ रहा है. बता दें कि पूरे प्रदेश में 97 खुशियों की सवारी हैं. वहीं, कुमाऊं कमिश्नर राजीव रौतेला का कहना है कि जहां खुशियों की सवारी का संचालन नहीं हो रहा है. वहां पर इसे सुचारू किया जाएगा.