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इस शिवधाम में इंसान ही नहीं खूंखार जानवर भी लगाने आते हैं हाजिरी, ये है पौराणिक महत्व

कालाढूंगी के आरक्षित क्षेत्र बरहैनी रेंज में स्थित मोटेश्वर महादेव मंदिर की, जो लोगों की आगाध श्रद्धा का केन्द्र है. मान्यता के अनुसार, भगवान भोलेनाथ यहां विशालकाय रूप में विराजमान हैं. माना जाता है मोटेश्वर महादेव का शिवलिंग भारत के सभी शिवलिंगों से आकार में बड़ा है, इसलिए इस धाम को मोटेश्वर महादेव कहा जाता है.

इस शिवधाम में इंसान ही नहीं खुंखार जानवर भी लगाने आते हैं हाजिरी.
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Published : Aug 12, 2019, 3:35 PM IST

Updated : Aug 12, 2019, 4:22 PM IST

कालाढूंगी: देवभूमि उत्तराखंड अतीत से ही ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रही है. जहां उन्होंने अपने तपोबल से आध्यात्म को आत्मसात किया है. महात्माओं की एक ऐसी ही तपोभूमि कालाढूंगी के आरक्षित क्षेत्र बरहैनी रेंज के घने जंगलों के बीच स्थित है. जहां देवों के देव महादेव का का मंदिर है. कहा जाता है कि इस शिव धाम में इंसान ही नहीं खुंखार जंगली जानवर भी हाजिरी लगाने आते हैं और अपने अराध्य को शीष नवाकर चले जाते हैं.

इस शिवधाम में इंसान ही नहीं खुंखार जानवर भी लगाने आते हैं हाजिरी.

जी हां हम बात कर रहे हैं कालाढूंगी के आरक्षित क्षेत्र बरहैनी रेंज में स्थित मोटेश्वर महादेव मंदिर की, जो लोगों की आगाध श्रद्धा का केन्द्र है. मान्यता के अनुसार भगवान भोलेनाथ यहां विशालकाय रूप में विराजमान हैं. माना जाता है मोटेश्वर महादेव का शिवलिंग भारत के सभी शिवलिंगों से आकार में बड़ा है, इसलिए इस धाम को मोटेश्वर महादेव कहा जाता है. आबादी से कोसों दूर घने जंगल मे बसा मोटेश्वर महादेव मंदिर अतीत से ही ऋषि- मुनियों की तपोस्थली रही है. लोगों का मानना है कि यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है.

पढ़ें-लक्ष्मण झूला पुल बंद होने से राम झूला पर बढ़ा भार, हर पल मंडरा रहा खतरा

इसलिए इस मंदिर को तपोवन भूमि के नाम से भी जाना जाता है. वैसे तो सालभर इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन सावन मास में इस मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है. वहीं, मोटेश्वर महादेव मंदिर के शिवलिंग में कई आकृतियां उभरी हुई हैं जो इसे अन्य शिवलिंगों से खास बनाती है. घने जंगल में मंदिर होने से लोगों का मानना है कि शेर और हाथी और अन्य जानवर भी मोटेश्वर महादेव मंदिर मे अपनी हाजिरी लगाते है.मोटेश्वर महादेव मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है. जहां साल भर शिव भक्तों का तांता लगा रहता है.

सावन मास में कांवड़िये भी बड़ी संख्या गंगाजल से शिव का जलाभिषेक करते हैं. इस शिवधाम में क्षेत्र के ही नहीं दूर-दूर से श्रद्धालु शीष नवाने आते हैं. बता दें कि मंदिर के दर्शन के लिए भक्तो को कालाढूंगी बाजपुर मोटर मार्ग एसएच- 41 से होकर जाना पड़ता है. जिसकी मुख्य मार्ग से करीब 4 किमी की दूरी है, जो नैनीताल जनपद में पड़ता है.

कालाढूंगी: देवभूमि उत्तराखंड अतीत से ही ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रही है. जहां उन्होंने अपने तपोबल से आध्यात्म को आत्मसात किया है. महात्माओं की एक ऐसी ही तपोभूमि कालाढूंगी के आरक्षित क्षेत्र बरहैनी रेंज के घने जंगलों के बीच स्थित है. जहां देवों के देव महादेव का का मंदिर है. कहा जाता है कि इस शिव धाम में इंसान ही नहीं खुंखार जंगली जानवर भी हाजिरी लगाने आते हैं और अपने अराध्य को शीष नवाकर चले जाते हैं.

इस शिवधाम में इंसान ही नहीं खुंखार जानवर भी लगाने आते हैं हाजिरी.

जी हां हम बात कर रहे हैं कालाढूंगी के आरक्षित क्षेत्र बरहैनी रेंज में स्थित मोटेश्वर महादेव मंदिर की, जो लोगों की आगाध श्रद्धा का केन्द्र है. मान्यता के अनुसार भगवान भोलेनाथ यहां विशालकाय रूप में विराजमान हैं. माना जाता है मोटेश्वर महादेव का शिवलिंग भारत के सभी शिवलिंगों से आकार में बड़ा है, इसलिए इस धाम को मोटेश्वर महादेव कहा जाता है. आबादी से कोसों दूर घने जंगल मे बसा मोटेश्वर महादेव मंदिर अतीत से ही ऋषि- मुनियों की तपोस्थली रही है. लोगों का मानना है कि यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है.

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इसलिए इस मंदिर को तपोवन भूमि के नाम से भी जाना जाता है. वैसे तो सालभर इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन सावन मास में इस मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है. वहीं, मोटेश्वर महादेव मंदिर के शिवलिंग में कई आकृतियां उभरी हुई हैं जो इसे अन्य शिवलिंगों से खास बनाती है. घने जंगल में मंदिर होने से लोगों का मानना है कि शेर और हाथी और अन्य जानवर भी मोटेश्वर महादेव मंदिर मे अपनी हाजिरी लगाते है.मोटेश्वर महादेव मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है. जहां साल भर शिव भक्तों का तांता लगा रहता है.

सावन मास में कांवड़िये भी बड़ी संख्या गंगाजल से शिव का जलाभिषेक करते हैं. इस शिवधाम में क्षेत्र के ही नहीं दूर-दूर से श्रद्धालु शीष नवाने आते हैं. बता दें कि मंदिर के दर्शन के लिए भक्तो को कालाढूंगी बाजपुर मोटर मार्ग एसएच- 41 से होकर जाना पड़ता है. जिसकी मुख्य मार्ग से करीब 4 किमी की दूरी है, जो नैनीताल जनपद में पड़ता है.

Intro:आबादी से कोसो दूर वन आरक्षित छेत्र बरहैनी रेंज के घने जंगलों के बीच बसा मोटेश्वर महादेव मंदिर श्रद्धालुओं का आस्था का केंद्र बना हुआ है।
मान्यता के अनुसार भगवान भोलेनाथ यहां विशालकाय रूप मे विराजमान है । मोटेश्वर महादेव का शिवलिंग भारत के सभी शिवलिंगों से आकार मैं बड़ा व विस्तृत है।Body:आबादी से कोसो दूर घने जंगल मे बसा मोटेश्वर महादेव मंदिर तपोवन भूमि के नाम से भी जाना जाता है , मान्यता के अनुसार मोटेश्वर महादेव की भूमि ऋषि मुनियों की तपस्थली व कर्मभूमि रही है जिसके चलते यहां का नाम तपोवन भूमि पड़ा। वैसे तो वर्ष भर मंदिर परिसर मैं भक्तो का तांता लगा रहता है पर श्रावण मास भोलेनाथ की पूजा अर्चना के लिए विशेष माना जाता है। श्रद्धालुओं के अनुसार इतना विशालकाय शिवलिंग पूरे भारतवर्ष मैं नही है जिसकी आकृति अपने आप मैं विशेष मानी जाती है । शिवलिंग की आकृति मैं कई आकृतियां उभरी हुई है जो अपने आप मैं विशेष है।
घने जंगल मे मंदिर होने से लोगो का मानना है कि जंगल के राजा शेर और हाथी और अन्य जानवर भी मोटेश्वर महादेव मंदिर मे अपनी हाजिरी लगाते है। मोटेश्वर महादेव को श्रद्धालु भांग, धतूरा, बेल पत्र , दुब, दूध,शहद, घी ,आंख, ढाख, तिल, ओर जलाभिषेक कर पूजा अर्चना करते है। भक्तो ने बताया कि मोटेश्वर महादेव मंदिर प्राचीन मंदिर है और यहाँ लोगो की मनोकामनाये पूर्ण होती है जिसके चलते आये दिन श्रद्धालुओं का इजाफा होता है। मोटेश्वर महादेव के विशालकाय शिवलिंग मैं अनेको अकृत्या उभरी हुई जो अपने आप मैं विशेष माना जाता है शिवलिंग मैं लगभग सभी देवी देवताओं की आकृतीया उभरी हुई है । श्रवण मास मैं कावड़ियों भी भारी मात्रा मे आकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते है ।Conclusion:श्रद्धालुओं ने बताया कि घने जंगल मे मन्दिर होने से भी हर दिन यहां भक्तो का तांता लगा रहता है और भगवान भोलेनाथ सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते है। विशालकाय शिवलिंग के रूप मे विराजमान भगवान शिव का इतना बड़ा स्वरूप अभी तक कही नही देखा गया है। मोटेश्वर महादेव के दर्शनों को भक्त यहां देश के कोने कोने से आते है।

जनपद नैनीताल के कालाढूंगी के वन क्षेत्र मे बसे मंदिर के दर्शन के लिए भक्तो को कालाढूंगी बाजपुर मोटर मार्ग एस एच 41 राजकीय राजमार्ग से होकर जाना पड़ता है। मुख्य मार्ग से मंदिर की दूरी 3 से 4 किलोमीटर के बीच है।
Last Updated : Aug 12, 2019, 4:22 PM IST
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