कालाढूंगी: देवभूमि उत्तराखंड अतीत से ही ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रही है. जहां उन्होंने अपने तपोबल से आध्यात्म को आत्मसात किया है. महात्माओं की एक ऐसी ही तपोभूमि कालाढूंगी के आरक्षित क्षेत्र बरहैनी रेंज के घने जंगलों के बीच स्थित है. जहां देवों के देव महादेव का का मंदिर है. कहा जाता है कि इस शिव धाम में इंसान ही नहीं खुंखार जंगली जानवर भी हाजिरी लगाने आते हैं और अपने अराध्य को शीष नवाकर चले जाते हैं.
जी हां हम बात कर रहे हैं कालाढूंगी के आरक्षित क्षेत्र बरहैनी रेंज में स्थित मोटेश्वर महादेव मंदिर की, जो लोगों की आगाध श्रद्धा का केन्द्र है. मान्यता के अनुसार भगवान भोलेनाथ यहां विशालकाय रूप में विराजमान हैं. माना जाता है मोटेश्वर महादेव का शिवलिंग भारत के सभी शिवलिंगों से आकार में बड़ा है, इसलिए इस धाम को मोटेश्वर महादेव कहा जाता है. आबादी से कोसों दूर घने जंगल मे बसा मोटेश्वर महादेव मंदिर अतीत से ही ऋषि- मुनियों की तपोस्थली रही है. लोगों का मानना है कि यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है.
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इसलिए इस मंदिर को तपोवन भूमि के नाम से भी जाना जाता है. वैसे तो सालभर इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन सावन मास में इस मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है. वहीं, मोटेश्वर महादेव मंदिर के शिवलिंग में कई आकृतियां उभरी हुई हैं जो इसे अन्य शिवलिंगों से खास बनाती है. घने जंगल में मंदिर होने से लोगों का मानना है कि शेर और हाथी और अन्य जानवर भी मोटेश्वर महादेव मंदिर मे अपनी हाजिरी लगाते है.मोटेश्वर महादेव मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है. जहां साल भर शिव भक्तों का तांता लगा रहता है.
सावन मास में कांवड़िये भी बड़ी संख्या गंगाजल से शिव का जलाभिषेक करते हैं. इस शिवधाम में क्षेत्र के ही नहीं दूर-दूर से श्रद्धालु शीष नवाने आते हैं. बता दें कि मंदिर के दर्शन के लिए भक्तो को कालाढूंगी बाजपुर मोटर मार्ग एसएच- 41 से होकर जाना पड़ता है. जिसकी मुख्य मार्ग से करीब 4 किमी की दूरी है, जो नैनीताल जनपद में पड़ता है.