हल्द्वानी: आधुनिकता की इस दौर में जहां हर जगह बिजली से चलने वाले चक्कियों में गेंहू, मंडुवा और मक्के को लोग पिसवा रहे हैं. वहीं, हल्द्वानी क्षेत्र में आज भी अंग्रेजों के जमाने के घराट संचालित हो रहे हैं. जो उत्तराखंड की संस्कृति की पारंपरिक विरासत संजोए हुए हैं. लेकिन समय के साथ अब टिक-टिक की आवाज कम होती जा रही है. जिससे उनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.
सिंचाई विभाग से मिली आंकड़े के मुताबिक, नैनीताल जनपद में अलग-अलग नहरों पर ब्रिटिशकालीन 40 पनचक्की (घराट) की स्थापना की गई थी. जहां वर्तमान समय में 14 पनचक्कियां बंद हो चुकी हैं, या उनका अस्तित्व खत्म हो चुका है. जबकि, 26 पनचक्कियों का संचालन हो रहा है. जिसके माध्यम से सिंचाई विभाग को हर साल करीब 5 लाख 13,000 रुपए की राजस्व की प्राप्ति हो रही है.
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यहां तक इन चक्कियों को चलाने के लिए ठेका लेने के लिए अब कोई तैयार भी नहीं हो रहा है. मुख्य अभियंता सिंचाई विभाग चंद्रशेखर सिंह के मुताबिक, अब पनचक्कियों से आटा पिसाई कराने का लोगों में क्रेज कम हो रहा है. लोग आधुनिक चक्कियां (विद्युत संचालित) से आटा पिसाने का काम कर रहे हैं. नहरों पर संचालित होने वाली पनचक्कियों का हर साल टेंडर निकाला जाता रहा है, लेकिन अब टेंडर लेने वाले पीछे हट रहे हैं.
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जिसका नतीजा है कि अब इनका अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. विभाग द्वारा इनके संरक्षित के उपाय किए जा रहे हैं, जो भी इच्छुक व्यक्ति टेंडर लेना चाहता है, उसको सभी तरह की व्यवस्था उपलब्ध कराई जाती हैं.