हल्द्वानी: रेशम विभाग किसानों को रेशम उत्पादन से जोड़ने के लिए कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है. जिसके चलते देशभर के किसान बागवानी के साथ-साथ रेशम उत्पादन में भी दिलचस्पी ले रहे हैं. रेशम उत्पादन के क्षेत्र में प्रदेश के 10,500 किसान काम कर रहे हैं. जिन्होंने इस वर्ष 2018-19 में 259 टन रेशम का उत्पादन किया है. जिसके चलते किसानें की आय भी बढ़ रही है.
बता दें कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए रेशम विभाग कई योजनाओं का संचालन कर रहा है. जिसका सीधा फायदा प्रदेश के किसानों को मिल रहा है. पूरे प्रदेश में 10,500 किसान रेशम कीट(कोया) के उत्पादन क्षेत्र में काम कर रहे हैं. जिसके चलते साल 2016 -17 में 231 टन कोया का उत्पादन हुआ. वहीं 2017-18 में कोया का उत्पादन बढ़कर 245 टन हुआ, जबकि 2018 -19 में यह उत्पादन 259 टन पहुंच गया है.
अपर निदेशक रेशम विभाग कुमाऊं मंडल अरविंद लालोरिया ने बताया कि वर्ष 2018-19 में कुमाऊं मंडल के 5 जिलों में 71.5 टन रेशम (कोया) का उत्पादन हुआ. साथ ही बताया कि मंडल में 2340 काश्तकार रेशम विभाग के साथ काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में 3 प्रजाति के रेशम को तैयार किया जाता है. जिसमें सबसे ज्यादा शहतूती रेशम का उत्पादन होता है. साथ ही अरंडी और टसर रेशम का उत्पादन भी किया जाता है. उन्होंने बताया कि कुमाऊं मंडल में रेशम के कोया उत्पादन में नैनीताल जनपद पहले और उधम सिंह नगर दूसरे स्थान पर है.
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अरविंद लालोरिया ने बताया कि रेशम उत्पादन से जुड़े किसानों की आय में वृद्धि के लिए विभाग काश्तकारों को रेशम कीट और 300 शहतूत के पेड़ निशुल्क उपलब्ध करा रहा है. साथ ही किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई तरह की योजनाएं भी चलाई जा रही हैं. जिसके तहत किसानों को सब्सिडी और मार्केटिंग भी उपलब्ध कराई जा रही है.