नैनीताल: कुमाऊं की होली का 400 साल पुराना समृद्ध इतिहास रहा है. पहाड़ की होली में ढोल और रागों के साथ इस होली में गौरवशाली इतिहास का वर्णन होता है. होल्यार भी इसके रंग में रंग जाते हैं. पिछले कुछ सालों में रीति-रिवाज परम्पराओं में बदलाव आए पर आज भी इन ये होली नजीर बनी हुई है. पहाड़ों में आज भी खड़ी होली की परम्परा कायम है.
कुमाऊं की खड़ी होली का नजारा हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है. ढोल की थाप पर होल्यार रंगों के इस पर्व पर रंगे नजर आ रहे हैं. देशभर में खेली जाने वाली होली से कई मायनों में अलग ये होली शिवरात्रि के बाद चीर बंधन के साथ शुरू होती है. ये होली छलड़ी तक चलती है. मन्दिर से शुरू हुई ये होली गांव के हर घर में जाती है. होल्यार हर घर में जाकर होली का गायन करते हैं. जिसके बाद आशीष भी परिवार को देते हैं. चंद शासन काल से चली आ रही ये परम्परा आज भी अपने महत्व को कुमाऊं की वादियों में समेटे हुये है.
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बता दें कुमाऊं की इस होली का इतिहास 400 साल से ज्यादा पुराना है. ढोल की थाप के साथ कदमों की चहल कदमी और राग-रागिनियों का समावेश इस खड़ी होली में होता है. कुमाऊं में चम्पावत, पिथौरागढ़ अल्मोड़ा, बागेश्वर में इस होली का आयोजन किया जाता है. राग-दादरा और राग कहरवा में गाये जाने वाले इस होली का गायन पक्ष में कृष्ण राधा राजा, हरिशचन्द्र, श्रवण कुमार समेत रामायण और महाभारत काल की गाथाओं का वर्णन किया जाता है.
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हर साल होली से ठीक 1 दिन पहले कुमाऊं भर से नैनीताल पहुंची होल्यारों की टीम मां नैना देवी के मंदिर पहुंचती है. जहां कुमाऊंनी खड़ी होली का आयोजन किया जाता है. जिसके बाद में नैनीताल में होली महोत्सव समाप्त हो जाता है.