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हरिद्वार कुंभ कोविड फर्जी टेस्टिंग मामले में सुनवाई, HC ने राज्य सरकार से मांगा जवाब

नैनीताल हाईकोर्ट में शरद पंत एवं मलिका पंत की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की एकलपीठ ने 21 सितंबर को राज्य सरकार से जवाब पेश करने को कहा है.

Haridwar Kumbh Covid Testing Scam
हरिद्वार कुंभ कोविड फर्जी टेस्टिंग
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Published : Sep 20, 2021, 6:07 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट में कुंभ मेले के दौरान कोरोना फर्जी टेस्ट मामले में आरोपी बनाए गए मैक्स कॉर्पोरेट सर्विसेज में सर्विस पार्टनर शरद पंत एवं मलिका पंत की याचिका पर सुनवाई हुई. मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की एकलपीठ ने राज्य सरकार से जवाब पेश करने को कहा है.

कोर्ट में याचिकर्ताओं की तरफ से कहा गया कि उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई जाए. क्योंकि पुलिस उनकी गिरफ्तारी के प्रयासों में जुटी हुई है. लेकिन कोर्ट ने दोनों लोगों को राहत नहीं देते हुए राज्य सरकार को 21 सितंबर को जवाब पेश करने का आदेश दिया है.

याचिका के जरिए शरद पंत और मलिका पंत ने कोर्ट से कहा कि वे मैक्स कॉर्पोरेट सर्विसेस में एक सर्विस प्रोवाइडर हैं. परीक्षण और डेटा प्रविष्टि के दौरान मैक्स कॉर्पोरेट का कोई कर्मचारी मौजूद नहीं था. इसके अलावा परीक्षण और डेटा प्रविष्टि का सारा काम स्थानीय स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की प्रत्यक्ष निगरानी में किया गया था. इन अधिकारियों की मौजूदगी में परीक्षण स्टालों ने जो कुछ भी किया था, उसे अपनी मंजूरी दी थी. अगर कोई गलत कार्य हो रहा था तो कुंभ मेले की अवधि के दौरान अधिकारी चुप क्यों रहे?

याचिकाकर्ता ने कोर्ट से कहा था कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी हरिद्वार ने पुलिस में मुकदमा दर्ज करते हुए आरोप लगाया था कि कुंभ मेले के दौरान अपने को लाभ पहुंचाने के लिए फर्जी तरीके से टेस्ट इत्यादि कराए गए थे.

पढ़ें- कोविड टेस्टिंग फर्जीवाड़ा: मुख्यमंत्री ने कहा यह मामला पुराना है, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा

क्या है मामला: बता दें कि कुंभ मेला 2021 के दौरान हरिद्वार आने वाले श्रद्धालुओं की एक प्राइवेट लैब द्वारा की गई कोरोना जांच अब सवालों के घेरे में आ गई है. क्योंकि कुंभ मेले के दौरान किए गए 1 लाख कोरोना टेस्ट रिपोर्ट फर्जी मिले हैं. प्राइवेट लैब द्वारा फर्जी तरीके से श्रद्धालुओं की जांच कर कुंभ मेला प्रशासन को लाखों रुपए का चूना लगाने का प्रयास किया गया है. इस प्राइवेट लैब द्वारा एक ही फोन नंबर को कई श्रद्धालुओं की जांच रिपोर्ट में डाला गया है.

यही नहीं, कई जांच रिपोर्ट में एक ही आधार नंबर का इस्तेमाल किया गया है. वहीं, एक ही घर से सैकड़ों लोगों की जांच का मामला भी सामने आया है, जो असंभव सा लगता है, क्योंकि सैकड़ों लोगों की रिपोर्ट में घर का एक ही पता डाला गया है. अब इस मामले में हरिद्वार जिलाधिकारी सी रविशंकर ने जांच कमेटी का गठन कर 15 दिन में रिपोर्ट पेश के आदेश दिए हैं. इस एक दिल्ली की लैब भी थी, लेकिन ईटीवी भारत की पड़ताल में सामने आया कि दिल्ली में लैब का जो पता दिया गया था, वहां पर कोई लैब ही नहीं है.

ऐसे हुआ खुलासा: हरिद्वार कुंभ में हुए टेस्ट के घपले का खुलासा ऐसे ही नहीं हुआ. स्वास्थ्य विभाग के सूत्र बताते हैं यह कहानी शुरू हुई पंजाब के फरीदकोट से. यहां रहने वाले एक शख्स विपन मित्तल की वजह से कुंभ में कोविड जांच घोटाले की पोल खुल सकी. एलआईसी एजेंट विपन मित्तल को उत्तराखंड की एक लैब से फोन आता है, जिसमें यह कहा जाता है कि 'आप की रिपोर्ट निगेटिव आई है', जिसके बाद विपन कॉलर को जवाब देता है कि उसका तो कोई कोरोना टेस्ट हुआ ही नहीं है तो रिपोर्ट भला कैसे निगेटिव आ गई. फोन आने के बाद विपन ने फौरन स्थानीय अधिकारियों को मामले की जानकारी दी थी. स्थानीय अधिकारियों के ढुलमुल रवैए को देखते हुए पीड़ित शख्स ने तुरंत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) से शिकायत की. ICMR ने घटना को गंभीरता से लेते हुए उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग से जवाब मांगा था.

उत्तराखंड सरकार से होते हुए ये शिकायत स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी के पास पहुंची. जब उन्होंने पूरे मामले की जांच करायी तो बेहद चौंकाने वाले खुलासे हुए. स्वास्थ्य विभाग ने पंजाब फोन करने वाले शख्स से जुड़ी लैब की जांच की तो परत-दर-परत पोल खुलती गई. जांच में एक लाख कोरोना रिपोर्ट फर्जी पाए गए.

पढ़ें- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कुंभ में कोरोना टेस्टिंग फर्जीवाड़े की चर्चा, न्यूयॉर्क टाइम्स ने छापी खबर

एक किट से हुई 700 से अधिक सैंपलिंग: स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि एक ही एंटीजन टेस्ट किट से 700 सैंपल्स की टेस्टिंग की गई थी. इसके साथ ही टेस्टिंग लिस्ट में सैकड़ों व्यक्तियों के नाम पर एक ही फोन नंबर अंकित था. स्वास्थ्य विभाग की जांच में दूसरे लैब का भी यही हाल सामने आता है. जांच के दौरान लैब में लोगों के नाम-पते और मोबाइल नंबर फर्जी पाए गए हैं. इसके बाद यह मामला साफ हो गया कि कुंभ मेले में फर्जी तरीके से कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव बनाकर आंखों में धूल झोंकने का काम किया गया है.

करोड़ों रुपए का घोटाला: कुंभ के दौरान जो प्रदेश में दरें लागू थीं उसके अनुसार प्रदेश में एंटीजन टेस्ट के लिए निजी लैब को 300 रुपये दिए जाते थे, वहीं आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए तीन श्रेणियां बनाई गई थी. सरकारी सेटअप से लिए गए सैंपल सिर्फ जांच के लिए निजी लैब को देने पर प्रति सैंपल 400 रुपये का भुगतान करना होता है. निजी लैब खुद कोविड जांच के लिए नमूना लेती है तो उस सूरत में उसे 700 रुपये का भुगतान होता है. वहीं घर जाकर सैंपल लेने पर 900 रुपए का भुगतान होता है. इन दरों में समय-समय पर बदलाव किया जाता है. निजी लैब को 30 प्रतिशत भुगतान पहले ही किया जा चुका था.

पढ़ें- कुंभ कोरोना जांच फर्जीवाड़े में 5 सदस्यीय जांच कमेटी गठित, इन लैब पर शक की सुई

बता दें कि नैनीताल हाईकोर्ट ने कुंभ के दौरान 1-30 अप्रैल तक 50 हजार टेस्ट रोज़ाना करने के निर्देश दिए थे. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए आईसीएमआर की ओर से अधिकृत 9 एजेंसियों और 22 निजी लैब ने चार लाख कोविड टेस्ट किए थे. इनमें से ज़्यादातर एंटीजन टेस्ट थे. इसके अलावा सरकारी लैब में भी टेस्ट कराए गए थे.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट में कुंभ मेले के दौरान कोरोना फर्जी टेस्ट मामले में आरोपी बनाए गए मैक्स कॉर्पोरेट सर्विसेज में सर्विस पार्टनर शरद पंत एवं मलिका पंत की याचिका पर सुनवाई हुई. मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की एकलपीठ ने राज्य सरकार से जवाब पेश करने को कहा है.

कोर्ट में याचिकर्ताओं की तरफ से कहा गया कि उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई जाए. क्योंकि पुलिस उनकी गिरफ्तारी के प्रयासों में जुटी हुई है. लेकिन कोर्ट ने दोनों लोगों को राहत नहीं देते हुए राज्य सरकार को 21 सितंबर को जवाब पेश करने का आदेश दिया है.

याचिका के जरिए शरद पंत और मलिका पंत ने कोर्ट से कहा कि वे मैक्स कॉर्पोरेट सर्विसेस में एक सर्विस प्रोवाइडर हैं. परीक्षण और डेटा प्रविष्टि के दौरान मैक्स कॉर्पोरेट का कोई कर्मचारी मौजूद नहीं था. इसके अलावा परीक्षण और डेटा प्रविष्टि का सारा काम स्थानीय स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की प्रत्यक्ष निगरानी में किया गया था. इन अधिकारियों की मौजूदगी में परीक्षण स्टालों ने जो कुछ भी किया था, उसे अपनी मंजूरी दी थी. अगर कोई गलत कार्य हो रहा था तो कुंभ मेले की अवधि के दौरान अधिकारी चुप क्यों रहे?

याचिकाकर्ता ने कोर्ट से कहा था कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी हरिद्वार ने पुलिस में मुकदमा दर्ज करते हुए आरोप लगाया था कि कुंभ मेले के दौरान अपने को लाभ पहुंचाने के लिए फर्जी तरीके से टेस्ट इत्यादि कराए गए थे.

पढ़ें- कोविड टेस्टिंग फर्जीवाड़ा: मुख्यमंत्री ने कहा यह मामला पुराना है, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा

क्या है मामला: बता दें कि कुंभ मेला 2021 के दौरान हरिद्वार आने वाले श्रद्धालुओं की एक प्राइवेट लैब द्वारा की गई कोरोना जांच अब सवालों के घेरे में आ गई है. क्योंकि कुंभ मेले के दौरान किए गए 1 लाख कोरोना टेस्ट रिपोर्ट फर्जी मिले हैं. प्राइवेट लैब द्वारा फर्जी तरीके से श्रद्धालुओं की जांच कर कुंभ मेला प्रशासन को लाखों रुपए का चूना लगाने का प्रयास किया गया है. इस प्राइवेट लैब द्वारा एक ही फोन नंबर को कई श्रद्धालुओं की जांच रिपोर्ट में डाला गया है.

यही नहीं, कई जांच रिपोर्ट में एक ही आधार नंबर का इस्तेमाल किया गया है. वहीं, एक ही घर से सैकड़ों लोगों की जांच का मामला भी सामने आया है, जो असंभव सा लगता है, क्योंकि सैकड़ों लोगों की रिपोर्ट में घर का एक ही पता डाला गया है. अब इस मामले में हरिद्वार जिलाधिकारी सी रविशंकर ने जांच कमेटी का गठन कर 15 दिन में रिपोर्ट पेश के आदेश दिए हैं. इस एक दिल्ली की लैब भी थी, लेकिन ईटीवी भारत की पड़ताल में सामने आया कि दिल्ली में लैब का जो पता दिया गया था, वहां पर कोई लैब ही नहीं है.

ऐसे हुआ खुलासा: हरिद्वार कुंभ में हुए टेस्ट के घपले का खुलासा ऐसे ही नहीं हुआ. स्वास्थ्य विभाग के सूत्र बताते हैं यह कहानी शुरू हुई पंजाब के फरीदकोट से. यहां रहने वाले एक शख्स विपन मित्तल की वजह से कुंभ में कोविड जांच घोटाले की पोल खुल सकी. एलआईसी एजेंट विपन मित्तल को उत्तराखंड की एक लैब से फोन आता है, जिसमें यह कहा जाता है कि 'आप की रिपोर्ट निगेटिव आई है', जिसके बाद विपन कॉलर को जवाब देता है कि उसका तो कोई कोरोना टेस्ट हुआ ही नहीं है तो रिपोर्ट भला कैसे निगेटिव आ गई. फोन आने के बाद विपन ने फौरन स्थानीय अधिकारियों को मामले की जानकारी दी थी. स्थानीय अधिकारियों के ढुलमुल रवैए को देखते हुए पीड़ित शख्स ने तुरंत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) से शिकायत की. ICMR ने घटना को गंभीरता से लेते हुए उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग से जवाब मांगा था.

उत्तराखंड सरकार से होते हुए ये शिकायत स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी के पास पहुंची. जब उन्होंने पूरे मामले की जांच करायी तो बेहद चौंकाने वाले खुलासे हुए. स्वास्थ्य विभाग ने पंजाब फोन करने वाले शख्स से जुड़ी लैब की जांच की तो परत-दर-परत पोल खुलती गई. जांच में एक लाख कोरोना रिपोर्ट फर्जी पाए गए.

पढ़ें- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कुंभ में कोरोना टेस्टिंग फर्जीवाड़े की चर्चा, न्यूयॉर्क टाइम्स ने छापी खबर

एक किट से हुई 700 से अधिक सैंपलिंग: स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि एक ही एंटीजन टेस्ट किट से 700 सैंपल्स की टेस्टिंग की गई थी. इसके साथ ही टेस्टिंग लिस्ट में सैकड़ों व्यक्तियों के नाम पर एक ही फोन नंबर अंकित था. स्वास्थ्य विभाग की जांच में दूसरे लैब का भी यही हाल सामने आता है. जांच के दौरान लैब में लोगों के नाम-पते और मोबाइल नंबर फर्जी पाए गए हैं. इसके बाद यह मामला साफ हो गया कि कुंभ मेले में फर्जी तरीके से कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव बनाकर आंखों में धूल झोंकने का काम किया गया है.

करोड़ों रुपए का घोटाला: कुंभ के दौरान जो प्रदेश में दरें लागू थीं उसके अनुसार प्रदेश में एंटीजन टेस्ट के लिए निजी लैब को 300 रुपये दिए जाते थे, वहीं आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए तीन श्रेणियां बनाई गई थी. सरकारी सेटअप से लिए गए सैंपल सिर्फ जांच के लिए निजी लैब को देने पर प्रति सैंपल 400 रुपये का भुगतान करना होता है. निजी लैब खुद कोविड जांच के लिए नमूना लेती है तो उस सूरत में उसे 700 रुपये का भुगतान होता है. वहीं घर जाकर सैंपल लेने पर 900 रुपए का भुगतान होता है. इन दरों में समय-समय पर बदलाव किया जाता है. निजी लैब को 30 प्रतिशत भुगतान पहले ही किया जा चुका था.

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बता दें कि नैनीताल हाईकोर्ट ने कुंभ के दौरान 1-30 अप्रैल तक 50 हजार टेस्ट रोज़ाना करने के निर्देश दिए थे. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए आईसीएमआर की ओर से अधिकृत 9 एजेंसियों और 22 निजी लैब ने चार लाख कोविड टेस्ट किए थे. इनमें से ज़्यादातर एंटीजन टेस्ट थे. इसके अलावा सरकारी लैब में भी टेस्ट कराए गए थे.

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