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भोजन माताओं की मांगों को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई, राज्य और केंद्र सरकार से 6 हफ्ते में मांगा जवाब

हाईकोर्ट में भोजन माताओं के मामले पर सुनवाई (Hearing on case of bhojan mata) हुई. जिसमें हाईकोर्ट ने राज्य सरकार व केंद्र सरकार से 6 हफ्तों में जवाब पेश करने को कहा है.

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भोजन माताओं की मांगों को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई
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Published : Dec 9, 2022, 7:39 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने प्रदेश के भोजन माताओं की विभिन्न मांगो को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई (Hearing on case of bhojan mata ) की. मामले को सुनने के बाद न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने सरकार व केंद्र सरकार से छह सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 6 हफ्ते बाद की जाएगी.

मामले के अनुसार प्रगतिशील भोजन माता संगठन ने याचिका दायर कर कहा है कि प्रदेश की भोजन माताएं पिछले 18 -19 सालों से सरकारी स्कूलों में भोजन बनाने का कार्य कर रही हैं. सरकार के द्वारा भोजनमाताओं को न्यूनतम वेतन नहीं दिया जा रहा है. उनके द्वारा स्कूलों में भोजन बनाने के अलावा स्कूल के प्रांगण, कमरों की सफाई, झाड़ियां काटने ,भोजन बनाने के लिए लकड़ियां इक्कठा करने का कार्य भी किया जाता है.
पढे़ं- तो क्या इतिहास बन जाएगा उत्तराखंड का जोशीमठ, अस्तित्व बचाने में जुटे वैज्ञानिक

चुनाव ड्यूटी व अन्य कार्यक्रमों में भी उनसे भोजन बनाने का कार्य कराया जाता है. कोविड के दौरान उनकी ड्यूटी कोविड सेंटरों में भी लगाई गई. उन्हें सुरक्षा के कोई उपकरण तक नहीं दिए गए. इसके एवज में उन्हें मात्र 2000 हजार रुपया दिया जा रहा है. इतना कार्य करने के बाद सरकार उन्हें निकालने की प्रक्रिया चला रहा है, जो असवैंधानिक होने के साथ साथ अवमानवीय भी है.

याचिका में बताया गया इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी भोजन माताओं को न्यूनतम वेतन देने के आदेश दिए हैं. याचिका में संगठन की तरफ से कोर्ट से प्राथर्ना की है कि उन्हें न्यूनतम वेतन, भोजन बनाने के लिए गैस, चुनाव व अन्य ड्यूटी का मानदेय दिया जाये.
पढे़ं- तो इसलिए जोशीमठ में हो रहा भूधंसाव, वैज्ञानिकों ने बताई वजह

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने प्रदेश के भोजन माताओं की विभिन्न मांगो को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई (Hearing on case of bhojan mata ) की. मामले को सुनने के बाद न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने सरकार व केंद्र सरकार से छह सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 6 हफ्ते बाद की जाएगी.

मामले के अनुसार प्रगतिशील भोजन माता संगठन ने याचिका दायर कर कहा है कि प्रदेश की भोजन माताएं पिछले 18 -19 सालों से सरकारी स्कूलों में भोजन बनाने का कार्य कर रही हैं. सरकार के द्वारा भोजनमाताओं को न्यूनतम वेतन नहीं दिया जा रहा है. उनके द्वारा स्कूलों में भोजन बनाने के अलावा स्कूल के प्रांगण, कमरों की सफाई, झाड़ियां काटने ,भोजन बनाने के लिए लकड़ियां इक्कठा करने का कार्य भी किया जाता है.
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चुनाव ड्यूटी व अन्य कार्यक्रमों में भी उनसे भोजन बनाने का कार्य कराया जाता है. कोविड के दौरान उनकी ड्यूटी कोविड सेंटरों में भी लगाई गई. उन्हें सुरक्षा के कोई उपकरण तक नहीं दिए गए. इसके एवज में उन्हें मात्र 2000 हजार रुपया दिया जा रहा है. इतना कार्य करने के बाद सरकार उन्हें निकालने की प्रक्रिया चला रहा है, जो असवैंधानिक होने के साथ साथ अवमानवीय भी है.

याचिका में बताया गया इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी भोजन माताओं को न्यूनतम वेतन देने के आदेश दिए हैं. याचिका में संगठन की तरफ से कोर्ट से प्राथर्ना की है कि उन्हें न्यूनतम वेतन, भोजन बनाने के लिए गैस, चुनाव व अन्य ड्यूटी का मानदेय दिया जाये.
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