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देसी फ्रिज पर आधुनिकता की मार, कुम्हार परिवारों को पेट पालना हुआ मुश्किल - pottery business in haldwani

हल्द्वानी में मिट्टी के बर्तनों का कारोबार करने वाले कुम्हार अब अपने काम से मुंह मोड़ रहे हैं क्योंकि गर्मी के सीजन में अब घड़ों की बिक्री कम हो गई है. पहले जहां 35 से 40 घड़े रोज बिकते थे. वहीं अब 4 से 5 घड़े ही बिकते हैं.

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Published : Apr 18, 2022, 10:04 AM IST

Updated : Apr 18, 2022, 10:14 AM IST

हल्द्वानी: जितनी रफ्तार से जमाना हाईटेक हो रहा है, उसी तेजी से हमारे कुम्हार (Potters of Haldwani) भी अपने काम से मुंह मोड़ रहे हैं. फ्रिज ने कुम्हारों की रोटी छीन ली है. आम तौर पर मिट्टी के घड़ों का इस्तेमाल गर्मी में पानी को ठंडा करने के लिए किया जाता है, लेकिन बीते कुछ सालों में घड़ों की बिक्री पर ब्रेक लग गया है. आलम ये है कि मिट्टी के बर्तनों का कारोबार करने वाले वाले कुम्हारों की अब लागत भी नहीं निकल रही है.

बदलते परिवेश से कुम्हार का काम करने वाले कई लोग खस्ताहाल हो गए हैं. क्योंकि लोग घड़े की जगह पर फ्रिज का इस्तेमाल करने लगे हैं, जिस वजह से देसी फ्रिज कहे जाने वाले मिट्टी के घड़े की बिक्री कम ही होती है. हल्द्वानी के कुम्हार मगन लाल कहते हैं कि अब उनके कारोबार में दम नहीं रहा. आजकल प्रतिदिन से 5 से 10 घड़े ही बिक रहे हैं, जबकि 5 साल पहले तक औसतन प्रतिदिन 30 से 35 घड़े बिक जाते थे.

देसी फ्रिज पर आधुनिकता की मार.

मगन लाल कहते हैं कि बाजार में मांग ना होने के कारण कुम्हार भी इस कारोबार से मुंह मोड़ चुके हैं. उनके बच्चे इस काम को सीखना ही नहीं चाहते हैं, जो कुम्हार अब ये कारोबार कर रहे हैं, उनकी लागत तक नहीं निकल रही है. क्योंकि लोग अब घड़ों से मुंह मोड़ रहे हैं. सिर्फ गिने चुने कुम्हार ही बचे हैं, जो ये कार्य कर रहे हैं.
पढ़ें- हनुमान जयंती पर जलालपुर में हुए बवाल के बाद पुलिस ने निकाल फ्लैग मार्च, ड्रोन कैमरे से रखी जा रही नजर

हल्द्वानी के कुम्हार राजीव का कहना है कि उनका परिवार पिछले 27 सालों से मिट्टी के बर्तन बनाने का कारोबार कर रहा है. लेकिन अब उनके कारोबार में वो बात नहीं रही. महंगाई बढ़ चुकी है. बाजार में डिमांड ना होने की वजह से मिट्टी के बर्तनों का कारोबार लगातार घट रहा है. उम्मीद भी नहीं है कि आगे घड़ों का कारोबार चलेगा या नहीं.

हल्द्वानी: जितनी रफ्तार से जमाना हाईटेक हो रहा है, उसी तेजी से हमारे कुम्हार (Potters of Haldwani) भी अपने काम से मुंह मोड़ रहे हैं. फ्रिज ने कुम्हारों की रोटी छीन ली है. आम तौर पर मिट्टी के घड़ों का इस्तेमाल गर्मी में पानी को ठंडा करने के लिए किया जाता है, लेकिन बीते कुछ सालों में घड़ों की बिक्री पर ब्रेक लग गया है. आलम ये है कि मिट्टी के बर्तनों का कारोबार करने वाले वाले कुम्हारों की अब लागत भी नहीं निकल रही है.

बदलते परिवेश से कुम्हार का काम करने वाले कई लोग खस्ताहाल हो गए हैं. क्योंकि लोग घड़े की जगह पर फ्रिज का इस्तेमाल करने लगे हैं, जिस वजह से देसी फ्रिज कहे जाने वाले मिट्टी के घड़े की बिक्री कम ही होती है. हल्द्वानी के कुम्हार मगन लाल कहते हैं कि अब उनके कारोबार में दम नहीं रहा. आजकल प्रतिदिन से 5 से 10 घड़े ही बिक रहे हैं, जबकि 5 साल पहले तक औसतन प्रतिदिन 30 से 35 घड़े बिक जाते थे.

देसी फ्रिज पर आधुनिकता की मार.

मगन लाल कहते हैं कि बाजार में मांग ना होने के कारण कुम्हार भी इस कारोबार से मुंह मोड़ चुके हैं. उनके बच्चे इस काम को सीखना ही नहीं चाहते हैं, जो कुम्हार अब ये कारोबार कर रहे हैं, उनकी लागत तक नहीं निकल रही है. क्योंकि लोग अब घड़ों से मुंह मोड़ रहे हैं. सिर्फ गिने चुने कुम्हार ही बचे हैं, जो ये कार्य कर रहे हैं.
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हल्द्वानी के कुम्हार राजीव का कहना है कि उनका परिवार पिछले 27 सालों से मिट्टी के बर्तन बनाने का कारोबार कर रहा है. लेकिन अब उनके कारोबार में वो बात नहीं रही. महंगाई बढ़ चुकी है. बाजार में डिमांड ना होने की वजह से मिट्टी के बर्तनों का कारोबार लगातार घट रहा है. उम्मीद भी नहीं है कि आगे घड़ों का कारोबार चलेगा या नहीं.

Last Updated : Apr 18, 2022, 10:14 AM IST
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