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तेजी से खत्म हो रहा कैक्टस का संसार, देवभूमि में यहां किया जा रहा संरक्षण

वन अनुसंधान केंद्र इन दिनों विलुप्त होती जंगलों की कैक्टस प्रजाति के पौधों का संरक्षण का काम कर रहा है. कैक्टस मरुस्थली पौधा है.

तेजी से विलुप्त हो रहा कैक्टस पौधा.
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Published : May 24, 2019, 12:51 PM IST

हल्द्वानी: देवभूमि उत्तराखंड अपने बहुमूल्य वन संपदा के लिए जानी जाती है. लेकिन आमतौर पर पाया जाने वाला कैक्टस जंगलों से विलुप्त होने की कगार पर है. जो प्रकृति प्रेमियों लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है. वहीं हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र विलुप्त होते जा रहे कैक्टस प्रजाति के संरक्षण में लगा हुआ है. साथ ही वन अनुसंधान केंद्र द्वारा इसे बचाए रखने के लिए गार्डन तैयार किया गया है.

दरअसल, हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र इन दिनों जंगलों से विलुप्त होते कैक्टस के पौधों का संरक्षण करने में लगा हुआ है. कैक्टस मरुस्थली पौधा है, जिसे पनपने के लिए पानी की जरूरत बहुत कम पड़ती है. कैक्टस की करीब 55 से 60 प्रजातियां वन अनुसंधान केंद्र में लगाई गई हैं. जिनको राजस्थान, नार्थ ईस्ट और आंध्र प्रदेश से लाया गया है. इसमें कुछ चाइनीज प्रजातियों को भी शामिल किया गया है. वन अनुसंधान के क्षेत्राधिकारी मदन बिष्ट का कहना है कि कैक्टस प्रजाति के पौधों को बहुत सी दवाइयों को बनाने के इस्तेमाल में किया जाता है.

वन अनुसंधान केंद्र में कैक्टस का संरक्षण किया जा रहा है.

यहीं नहीं कुछ पौधे मनमोहक भी होते हैं, जिसको घरों में भी लगाया जा सकता है. इसके अलावा कई कैक्टस के पौधे धार्मिक आस्था के तौर पर भी लोग अपने घरों में लगाते हैं. हालांकि इतनी बड़ी मात्रा में कैक्टस के पौधे वन अनुसंधान केंद्र में लगाए जाने का उद्देश्य शोध करने वाले लोगों को इसकी जानकारी उपलब्ध करवाना है. मदर बिष्ट का कहना है कि कैक्टस प्रजाति के पौधे अब धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर हैं. जिनका संरक्षण करना अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य है. उन्होंने बताया कि कैक्टस प्रजाति में टॉर्च कैक्टस, मिलोन केक्टस, मोनवेलिया मुख्य पौधे हैं.

हल्द्वानी: देवभूमि उत्तराखंड अपने बहुमूल्य वन संपदा के लिए जानी जाती है. लेकिन आमतौर पर पाया जाने वाला कैक्टस जंगलों से विलुप्त होने की कगार पर है. जो प्रकृति प्रेमियों लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है. वहीं हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र विलुप्त होते जा रहे कैक्टस प्रजाति के संरक्षण में लगा हुआ है. साथ ही वन अनुसंधान केंद्र द्वारा इसे बचाए रखने के लिए गार्डन तैयार किया गया है.

दरअसल, हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र इन दिनों जंगलों से विलुप्त होते कैक्टस के पौधों का संरक्षण करने में लगा हुआ है. कैक्टस मरुस्थली पौधा है, जिसे पनपने के लिए पानी की जरूरत बहुत कम पड़ती है. कैक्टस की करीब 55 से 60 प्रजातियां वन अनुसंधान केंद्र में लगाई गई हैं. जिनको राजस्थान, नार्थ ईस्ट और आंध्र प्रदेश से लाया गया है. इसमें कुछ चाइनीज प्रजातियों को भी शामिल किया गया है. वन अनुसंधान के क्षेत्राधिकारी मदन बिष्ट का कहना है कि कैक्टस प्रजाति के पौधों को बहुत सी दवाइयों को बनाने के इस्तेमाल में किया जाता है.

वन अनुसंधान केंद्र में कैक्टस का संरक्षण किया जा रहा है.

यहीं नहीं कुछ पौधे मनमोहक भी होते हैं, जिसको घरों में भी लगाया जा सकता है. इसके अलावा कई कैक्टस के पौधे धार्मिक आस्था के तौर पर भी लोग अपने घरों में लगाते हैं. हालांकि इतनी बड़ी मात्रा में कैक्टस के पौधे वन अनुसंधान केंद्र में लगाए जाने का उद्देश्य शोध करने वाले लोगों को इसकी जानकारी उपलब्ध करवाना है. मदर बिष्ट का कहना है कि कैक्टस प्रजाति के पौधे अब धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर हैं. जिनका संरक्षण करना अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य है. उन्होंने बताया कि कैक्टस प्रजाति में टॉर्च कैक्टस, मिलोन केक्टस, मोनवेलिया मुख्य पौधे हैं.

Intro:स्लग- कैक्टस गार्डन ( विजुअल बाइट मेल से उठाएं)
रिपोर्टर -भावनाथ पंडित हल्द्वानी
एंकर- आमतौर पर कैक्टस जंगलों में पाया जाता है इसकी बहुत सी प्रजाति संरक्षण के अभाव में धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर खड़ी है। लिहाजा हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र इस विलुप्त होती कैक्टस प्रजाति के पौधों को संरक्षण करने का काम कर रहा है। जिसके मद्देनजर वन अनुसंधान केंद्र कैक्टस गार्डन बनाया है।


Body:दरअसल हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र इन दिनों विलुप्त होती जंगलों की कैक्टस प्रजाति के पौधों का संरक्षण का काम कर रहा है। कैक्टस मरुस्थल पौधा है जिसको पानी की जरूरत शून्य के बराबर होती है ।कैक्टस की करीब 55 से 60 प्रजातियां वन संधान केंद्र हल्द्वानी मैं लगाया गया है। इसको मुक्त राजस्थान नार्थ ईस्ट और आंध्र प्रदेश से लाया गया है कुछ प्रजातियां चाइना केक्टस प्रजाति की भी शामिल है।


Conclusion:वन अनुसंधान के क्षेत्राधिकारी मदन बिष्ट का कहना है कि कैक्टस प्रजाति के पौधों को बहुत सी दवाइयों को बनाने के इस्तेमाल में किया जाता है। यही नहीं कुछ पौधे मनमोहक भी होते हैं जिसको घर में भी लगाया जा सकता है। इसके अलावा कई कैक्टस के पौधे धार्मिक आस्था के तौर पर भी लोग अपने घरों में लगाते हैं । हालांकि इतनी बड़ी मात्रा में कैक्टस के पौधे वन अनुसंधान केंद्र में लगाए जाने का उद्देश्य है कि शोध करने वाले लोग इसके बारे में अन्य रोचक जानकारियां हासिल कर सकते हैं। मदर बिष्ट का कहना है कि कैक्टस प्रजाति के पौधे अब धीरे-धीरे विलुप्त के कगार पर हैं क्योंकि पर्यावरण के अनुसार अब कैक्टस के प्रजाति विलुप्त हो रहे हैं जिनका सन क्षण करना अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य है। उन्होंने बताया कि कैक्टस प्रजाति में टॉर्च कैक्टस ,मिलोन केक्टस,मोनवेलिया मुख्य पौधे हैं।

बाइट -मदन बिष्ट वन क्षेत्राधिकारी वन अनुसंधान केंद्र
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