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लोक गायक दीपक आर्या ने कुमाऊंनी संस्कृति को बचाने का उठाया बीड़ा, ऐसे कर रहे हैं प्रयास

धीरे-धीरे अपना अस्तित्व हो रहे कुमाऊंनी संस्कृति को बचाने के लिए लोकगायक दीपक आर्या ने बीड़ा उठाया है. दीपक आर्या ने झोड़ा नृत्य को अपने गीतों के जरिए लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया है. दीपक आर्या का कहना है कि आने वाली पीढ़ी अपनी संस्कृति से दूर होती जा रही हैं.

Deepak Arya
दीपक आर्या
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Published : Jul 1, 2022, 5:29 PM IST

कालाढूंगीः उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का प्राचीन और प्रसिद्ध लोकनृत्य झोड़ा आज के दौर में अपना अस्तित्व और पहचान खोता जा रहा है. ऐसे में कोटाबाग निवासी लोकगायक दीपक आर्या ने कुमाऊं की संस्कृति को बचाने का प्रयास बीड़ा उठाया है. दीपक आर्या ने अपने कई गीतों में झोड़ा नृत्य को प्रस्तुत किया है. दीपक आर्या ने अभी तक हिट ले सुआ, माया जाल गीत धमाधम, मंगोली साहब जैसे हिट सॉन्ग में झोड़ा नृत्य को प्रस्तुत कर संस्कृति को बचाने का प्रयास किया है.

इसके अलावा दीपक आर्या अपनी कुमाऊंनी संस्कृति को बचाने के लिए युवाओं को जागरूक भी करते हैं. साथ ही प्रेरित भी करते हैं. दीपक आर्या का कहना है कि आज के इस आधुनिक जमाने में युवा डीजे की धुन पर थिरकना ज्यादा पसंद करते हैं, जबकि कुमाऊं के झोड़ा, चांचरी और छपेली नृत्य को भूलती जा रही है. इसके साथ ही कुमाऊं के वाद्ययंत्र भी अब युवाओं से दूर होते जा रहे हैं. हमारा प्रयास है कि इन लोकनृत्य और वाद्ययंत्रों को युवाओं तक किसी भी सूरत में पहुंचाया जाए.
ये भी पढ़ेंः हिरण-हाथी नृत्य के साथ बूढ़ी दिवाली का समापन, जौनसार बावर में दिखी लोक संस्कृति की झलक

क्या होता है झोड़ा नृत्यः झोड़ा उत्तराखंड का एक लोकनृत्य गान है. यह उत्तराखंड के कुमाऊंनी क्षेत्र में गाया और प्रदर्शित किया जाता है. लोकनृत्य गान इसलिए बोला जाता है क्योंकि यह एक ऐसा लोक नृत्य है, जिसमें स्थानीय लोग सामूहिक रूप से गोलाकार रूप में हाथ पकड़ गीत दोहराते हुए नृत्य करते हैं. साथ ही बीच में कलाकार हुड़के की धुन पर गीत गाता है.

कालाढूंगीः उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का प्राचीन और प्रसिद्ध लोकनृत्य झोड़ा आज के दौर में अपना अस्तित्व और पहचान खोता जा रहा है. ऐसे में कोटाबाग निवासी लोकगायक दीपक आर्या ने कुमाऊं की संस्कृति को बचाने का प्रयास बीड़ा उठाया है. दीपक आर्या ने अपने कई गीतों में झोड़ा नृत्य को प्रस्तुत किया है. दीपक आर्या ने अभी तक हिट ले सुआ, माया जाल गीत धमाधम, मंगोली साहब जैसे हिट सॉन्ग में झोड़ा नृत्य को प्रस्तुत कर संस्कृति को बचाने का प्रयास किया है.

इसके अलावा दीपक आर्या अपनी कुमाऊंनी संस्कृति को बचाने के लिए युवाओं को जागरूक भी करते हैं. साथ ही प्रेरित भी करते हैं. दीपक आर्या का कहना है कि आज के इस आधुनिक जमाने में युवा डीजे की धुन पर थिरकना ज्यादा पसंद करते हैं, जबकि कुमाऊं के झोड़ा, चांचरी और छपेली नृत्य को भूलती जा रही है. इसके साथ ही कुमाऊं के वाद्ययंत्र भी अब युवाओं से दूर होते जा रहे हैं. हमारा प्रयास है कि इन लोकनृत्य और वाद्ययंत्रों को युवाओं तक किसी भी सूरत में पहुंचाया जाए.
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क्या होता है झोड़ा नृत्यः झोड़ा उत्तराखंड का एक लोकनृत्य गान है. यह उत्तराखंड के कुमाऊंनी क्षेत्र में गाया और प्रदर्शित किया जाता है. लोकनृत्य गान इसलिए बोला जाता है क्योंकि यह एक ऐसा लोक नृत्य है, जिसमें स्थानीय लोग सामूहिक रूप से गोलाकार रूप में हाथ पकड़ गीत दोहराते हुए नृत्य करते हैं. साथ ही बीच में कलाकार हुड़के की धुन पर गीत गाता है.

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