हल्द्वानी: इस वर्ष का पहला सूर्य ग्रहण 10 जून यानी गुरुवार को लगने जा रहा है. इस दिन वट सावित्री व्रत भी है, ये त्योहार ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है. यह व्रत अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु के लिए किया जाता है. इसी दिन शनि जयंती मनाने की भी परंपरा है.
इस बार खास बात यह है कि इस दिन सूर्यग्रहण भी लग रहा है. सुहागिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करके और उसके चारों ओर परिक्रमा कर सूत बांधकर व्रत करने का महत्व है. पति की लंबी आयु , परिवार की सुख शांति और खुशहाली की इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं. हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है. इस दिन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं.
आइए जानते हैं क्या कह रहे ज्योतिष
ज्योतिषाचार्य नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक हिंदू धर्म में वट वृक्ष में भगवान ब्रह्मा विष्णु और महेश का वास स्थल माना जाता है. वट सावित्री के दिन सुहागन स्त्रियां बरगद के वृक्ष की पूजा कर अपने पति की दीर्घायु और परिवारिक सुख शांति, वैवाहिक जीवन की खुशहाली की कामना करती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो पत्नी इस व्रत को सच्ची श्रद्धा के साथ करती हैं, उसे न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि उसके पति के सभी कष्ट भी दूर हो जाते हैं. आमतौर पर इस दिन सुहागन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करती हैं. विवाहित महिलाएं और कुंवारी लड़कियां पीले वस्त्र पहनती हैं और भगवान की उपासना करती हैं. महिलाएं अखण्ड सौभाग्य व परिवार की समृद्धि के लिए ये व्रत करती हैं.
महिलाएं इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर भगवान सूर्य को अर्घ देकर व्रत का संकल्प लेकर सोलह सिंगार के साथ वट वृक्ष के नीचे विधि विधान से वट सावित्री की पूजा करती है. अखंड सौभाग्य के लिए सूत या कलावा को बरगद के पेड़ में कम से कम 5,11,21,51, या फिर 108 बार बरगद के पेड़ की परिक्रमा कर उसमें धागा बांधकर पूजा का विशेष महत्व है. इसके अलावा वट वृक्ष के नीचे सत्यवान और सावित्री की कथा भी सुनना विशेष फलदायी माना जाता है
ज्योतिष नवीन चंद्र जोशी के मुताबिक इस बार वट सावित्री के पूजा का विशेष योग बन रहा है. श्रेष्ठ पूजा का मुहूर्त सुबह 6:45 से लेकर 11: 55 मिनट तक रहेगा.
पढ़ें: उत्तराखंड में 1576 प्रजातियों के पौधे संरक्षित श्रेणी में, वनस्पतियों को बचाने की कोशिश
ज्योतिष के अनुसार अगर कोई इस संक्रमण महामारी में कोई बाहर जा कर पूजा नहीं करना चाहता है तो घर में ही बरगद के पत्ते के अलावा कलश में वेदमाता गायत्री का आह्वान कर पूजा संपन्न कर सकता है.