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DRDO ने हासिल किया नया मुकाम, कूड़ा-कचरा और पिरूल से बायोगैस और बिजली की तैयार

Electricity and biogas prepared from Pirul leaves in Haldwani रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान केंद्र ने कूड़ा-कचरा और बायोमेडिकल वेस्ट के अलावा चीड़ के पिरूल से बिजली और बायोगैस तैयार की है, जिससे बिजली संकट दूर होगा.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 18, 2023, 3:40 PM IST

Updated : Oct 18, 2023, 5:05 PM IST

DRDO ने हासिल किया नया मुकाम

हल्द्वानी: रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान केंद्र यानी डीआरडीओ रिसर्च के क्षेत्र में कई उपलब्धियों के लिए जाना जाता है. इसी के तहत डीआरडीओ रिसर्च सेंटर गोरापड़ाव हल्द्वानी ने रिसर्च में एक और तकनीकी हासिल की है. कूड़ा-कचरा और बायोमेडिकल वेस्ट के साथ-साथ उत्तराखंड के जंगलों में मिलने वाले चीड़ के पिरूल से बिजली और बायोगैस तैयार किया है, जो भविष्य में ऊर्जा के क्षेत्र में कारगार साबित होगा.

Electricity and biogas prepared from Pirul leaves in Haldwani
कूड़ा-कचरा और चीड़ के पिरूल से बायोगैस और बिजली की तैयार

केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने कहा है कि पिरूल से उत्पाद तैयार करने के लिए वन विभाग ग्रामीणों से दो रुपया किलो पिरूल खरीद रहा है. डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने बायोमास गैसिफिकेशन प्लांट फॉर ट्रेड पाइन नीडल्स इजाद किया है. इस मशीन से 10 से 15 किलो सूखे पिरूल की मदद से 10 किलोवाट तक बिजली का उत्पादन किया जा सकता है.

इसके अलावा प्लाज्मा आधारित गैसीकरण प्रणाली के तहत कचरा, प्लास्टिक, रबर आदि अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण के लिए प्लाज्मा गैसीफिकेशन संयंत्र स्थापित किया गया है. इस मशीन से एक घंटे में 25 किलो कूड़े को 95 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. इस इकोफ्रेंडली मशीन से खतरनाक कूड़े, नॉन रिसाइकिलेबल वेस्ट, मेडिकल वेस्ट आदि को प्लाज्मा आधारित गैसीकरण से राख में तब्दील किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें: हाईब्रिड एनर्जी से हिमालयी राज्यों में दूर होगा बिजली संकट, खुलेंगे रोजगार के द्वार

डीआरडीओ के प्रमुख देवकांत पहाड़ सिंह ने बताया कि कूड़े कचरे से बायोमीथेन गैस और हाइड्रोजन तैयार किया जा रहा है. इसके बाद उसको सीएनजी ग्रेड तक लाने का काम किया गया है, जो सीएनजी गैस की तरह प्रयोग की जा सकती है. उन्होंने कहा कि इस तरह के रिसर्च से अपशिष्ट पदार्थ के निस्तारण के साथ-साथ उससे निकलने वाले गैस को भविष्य में अलग-अलग जगह पर प्रयोग में लाया जा सकता है.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में साइंस टेक्नोलॉजी कॉरिडोर बनाने की कवायद तेज, देहरादून में बन रही साइंस सिटी, रिसर्च एक्टिविटी बढ़ेगी

DRDO ने हासिल किया नया मुकाम

हल्द्वानी: रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान केंद्र यानी डीआरडीओ रिसर्च के क्षेत्र में कई उपलब्धियों के लिए जाना जाता है. इसी के तहत डीआरडीओ रिसर्च सेंटर गोरापड़ाव हल्द्वानी ने रिसर्च में एक और तकनीकी हासिल की है. कूड़ा-कचरा और बायोमेडिकल वेस्ट के साथ-साथ उत्तराखंड के जंगलों में मिलने वाले चीड़ के पिरूल से बिजली और बायोगैस तैयार किया है, जो भविष्य में ऊर्जा के क्षेत्र में कारगार साबित होगा.

Electricity and biogas prepared from Pirul leaves in Haldwani
कूड़ा-कचरा और चीड़ के पिरूल से बायोगैस और बिजली की तैयार

केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने कहा है कि पिरूल से उत्पाद तैयार करने के लिए वन विभाग ग्रामीणों से दो रुपया किलो पिरूल खरीद रहा है. डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने बायोमास गैसिफिकेशन प्लांट फॉर ट्रेड पाइन नीडल्स इजाद किया है. इस मशीन से 10 से 15 किलो सूखे पिरूल की मदद से 10 किलोवाट तक बिजली का उत्पादन किया जा सकता है.

इसके अलावा प्लाज्मा आधारित गैसीकरण प्रणाली के तहत कचरा, प्लास्टिक, रबर आदि अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण के लिए प्लाज्मा गैसीफिकेशन संयंत्र स्थापित किया गया है. इस मशीन से एक घंटे में 25 किलो कूड़े को 95 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. इस इकोफ्रेंडली मशीन से खतरनाक कूड़े, नॉन रिसाइकिलेबल वेस्ट, मेडिकल वेस्ट आदि को प्लाज्मा आधारित गैसीकरण से राख में तब्दील किया जा सकता है.

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डीआरडीओ के प्रमुख देवकांत पहाड़ सिंह ने बताया कि कूड़े कचरे से बायोमीथेन गैस और हाइड्रोजन तैयार किया जा रहा है. इसके बाद उसको सीएनजी ग्रेड तक लाने का काम किया गया है, जो सीएनजी गैस की तरह प्रयोग की जा सकती है. उन्होंने कहा कि इस तरह के रिसर्च से अपशिष्ट पदार्थ के निस्तारण के साथ-साथ उससे निकलने वाले गैस को भविष्य में अलग-अलग जगह पर प्रयोग में लाया जा सकता है.

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Last Updated : Oct 18, 2023, 5:05 PM IST
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