नैनीताल: नवरात्र में मंदिरों में श्रद्धालु की भीड़ लगी हुई है. वहीं नवरात्र में मंदिर परिसर शंख, घंटा- घड़ियाल की गगनभेदी आवाज से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया है. वहीं चैत्र नवरात्र पर सरोवर नगरी नैनीताल स्थिल मां नैना देवी मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है. धार्मिक मान्यता है कि चैत्र नवरात्र में सच्चे मन से मां भगवती की उपासना करने से हर मुराद पूरी है.
गौर हो कि साल में चार नवरात्र आती हैं, जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्र का अधिक महत्व है. वहीं हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए नवरात्र का खास महत्व है. जिसमें नौ दिनों तक पूरे विधि-विधान से मां शक्ति के नौ रूपों की उपासना की जाती है. वहीं नैनीताल स्थित मां नैना देवी मंदिर को माता शक्ति के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. जहां चैत्र नवरात्र पर स्थानीय लोगों के साथ ही देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. खुशहाली के लिए लोग मंदिर में मां की सच्चे मन से उपासना कर रहे हैं. धार्मिक मान्यता है कि चैत्र नवरात्र में सच्चे मन से मां भगवती की उपासना करने से सारे मनोरथ पूरे होते हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने भगवान शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया. जब माता सती को इस बात का पता चला तो वे बिना बुलाए ही अपने पिता दक्ष के यज्ञ में पहुंच गई. यज्ञ स्थल पर भगवान शिव के लिए कही गई अपमानजनक बातों को सती सहन नहीं कर पाईं और हवन कुंड में हीं अपने प्राण त्याग दिए. सती के प्राण त्यागने से आहत शिव क्रोधित हो गए और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे. इस कारण तीनों लोकों में हाहाकार मच गया. सृष्टि को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में बांट दिया.
इसके बाद ये अंग जहां-जहां गिरे थे, वहां-वहां देवी के शक्तिपीठ स्थापित हो गए. मान्यता है कि नैना देवी में माता सती के नेत्र गिरे थे. माना जाता है कि उसी स्थान पर मां नैना देवी का सिद्ध पीठ हो गया. वहीं नयनों की अश्रुधार ने यहां ताल का रूप ले लिया. तब से निरन्तर यहां देवी शक्ति के नैना देवी स्वरूप की पूजा-अर्चना होती है. कहा जाता है कि नैनी झील में नहाने से मानसरोवर झील में नहाने से के बराबर पुण्य मिलता है.