हल्द्वानी: देव प्रबोधिनी एकादशी 4 नवंबर शुक्रवार को मनाया जाएगा. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु 4 महीने की चिरनिद्रा के बाद जागृत होते हैं. इसलिए इस एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है. देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन से शुभ कार्य और विवाह आरंभ हो जाते हैं.
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. उत्तराखंड में देव प्रबोधिनी को बूढ़ी दीपावली और इगास पर्व के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन माता तुलसी का विधि विधान से पूजा करने का विशेष महत्व है.
ज्योतिष अनुसार एकादशी तिथि 3 नवंबर को शाम 7 बजकर 30 मिनट से शुरू होगा और 4 नवंबर को शाम 6 बजकर 8 मिनट पर खत्म होगा. जबकि एकादशी व्रत का परायण 5 नवंबर को सुबह 6 बजकर 40 के बाद किया जाएगा.
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ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी ने कहा इस दिन तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह करवाया जाता है. इस दिन घर के आंगन में विष्णु भगवान के पैरों की आकृति बनानी चाहिए और मुख्य द्वार पर दोनों तरफ शाम के वक्त दीए जलाने चाहिए. उसके बाद रात में भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी समेत अन्य देवताओं का पूजन करना चाहिए. उसके बाद शंख और घंटियां बजाकर भगवान विष्णु को उठाना चाहिए.
मान्यता है कि इस व्रत को करने से मनुष्यों का उत्थान और मोक्ष की प्राप्ति होती है. गरुड़ पुराण के अनुसार इस व्रत को करने वाला विष्णु लोक का अधिकारी हो जाता है. ज्योतिषाचार्य डॉ नवीन चंद्र जोशी ने बताया कि उत्तराखंड में प्रबोधिनी एकादशी के दिन कई जगहों पर पर बूढ़ी दीपावली और कुछ जगहों पर इगास पर्व मनाया जाता है.