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140 साल पहले 52 पिलरों पर बनाई गई थी डांठ नहर, अब धरोहर घोषित करने की मांग

हल्द्वानी में जमीन से 40 फीट ऊपर बनी ब्रिटिशकालीन 52 डांठ नहर को अब धरोहर और पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग उठने लगी है. यहां के निवासियों का कहना है कि अगर इस नहर को पर्यटन स्थल के रूप में सरकार विकसित करती है तो आने वाले समय में यह राजस्व का जरिया बनने के साथ लोगों को रोजगार भी देगी.

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Published : Apr 11, 2022, 2:34 PM IST

हल्द्वानी: उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में फसलों की सिंचाई का मुख्य साधन अभी भी नहरें ही हैं. हल्द्वानी में एक ऐसी ब्रिटिशकालीन नहर है, जिसे अब धरोहर बनाने की मांग उठने लगी है. साल 1882 में अंग्रेजों में द्वारा बनाई गई 52 डांठ (पिलर) नहर अब जर्जर हो चुकी है. स्थानीय लोगों ने अब इस नहर का सौंदर्यीकरण करने के बाद पर्यटन के लिहाज से विकसित करने की मांग की है.

धरोहर के रूप में विकसित हो नहर: स्थानीय लोगों का कहना है कि कई दशकों से इस नहर का उपयोग नहीं हो रहा है. ऐसे में यह नहर अब धीरे-धीरे खंडर में तब्दील होती जा रही है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि इस नहर का सौंदर्यीकरण किया जाए और पर्यटन के रूप में विकसित किया जाए, जिससे हमारे प्रदेश का रेवेन्यू बढ़ेगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

ब्रिटिशकालीन 52 डांठ नहर को धरोहर और पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग

दर्जनों गांवों के खेतों की होती थी सिंचाई: अंग्रेजों द्वारा साल 1882 में बेल बसानी के जंगल के बीचों बीच 52 डांठ (पिलर) पर बनाई गई नहर कई दशकों से बंद पड़ी है. हल्द्वानी से महज 8 किलोमीटर दूर दर्जनों गांवों के किसान इसी नहर से फसलों की सिंचाई करते थे. हालांकि, संबंधित विभाग समय-समय पर इस नहर की मरम्मत करता है लेकिन भाखड़ा नदी से यहां आने वाला पानी सूखने के बाद इस नहर का उपयोग नहीं रहा. इन नहर में पानी आना ही बंद हो गया.

कारीगरी और इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना: फतेहपुर क्षेत्र से लगी ये ब्रिटिश कालीन 52 डांठ सिंचाई नहर अब धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो रही है. इस नहर को जमीन से करीब 40 फीट ऊपर 52 पिलरों पर बनाया गया था. करीब 140 साल पहले बनी इस नहर की कारीगरी और डिजाइन देखते ही बनती है. ऐसे में स्थानीय लोगों का मानना है कि अगर सरकार इस नहर को पर्यटन के लिहाज से विकसित करे, तो यह स्थान प्रदेश के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में शामिल हो सकता है.
पढ़ें- CM धामी ने मोटर होम का किया निरीक्षण, कहा-पर्यटन को पंख लगाना चाहती है सरकार

फतेहपुर गांव के जनप्रतिनिधि नीरज तिवारी का कहना है कि ब्रिटिशकालीन इस धरोहर को बचाने के लिए कई बार मुख्यमंत्री और अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं लेकिन इसके अस्तित्व को बचाने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा है. उनकी मांग है कि इस धरोहर को संरक्षित किया जाए, जिससे कि लोग इस ब्रिटिश कालीन धरोहर के विषय में जान सकें. साथ ही इसको पर्यटन क्षेत्र बनाया जाए, जिससे कि बाहर से आने वाले पर्यटक इस धरोहर की जानकारी हासिल कर सकें.

सिंचाई विभाग के अधीक्षण अभियंता रामबाबू सिंह ने बताया कि बरसात के दौरान नहर सिंचाई के लिए प्रयोग में लाई जाती है. बरसात से पहले टूटी-फूटी नहर को ठीक कर लिया जाता है, लेकिन इस नहर को धरोहर के तौर पर संरक्षित करने और इस नहर को बाहर से आने वाले पर्यटक देख सकें इसको लेकर कुमाऊं मंडल विकास निगम इस नहर का सुंदरीकरण करने जा रहा है, जिससे कि नहर के अस्तित्व को बचाया जा सके.

हल्द्वानी: उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में फसलों की सिंचाई का मुख्य साधन अभी भी नहरें ही हैं. हल्द्वानी में एक ऐसी ब्रिटिशकालीन नहर है, जिसे अब धरोहर बनाने की मांग उठने लगी है. साल 1882 में अंग्रेजों में द्वारा बनाई गई 52 डांठ (पिलर) नहर अब जर्जर हो चुकी है. स्थानीय लोगों ने अब इस नहर का सौंदर्यीकरण करने के बाद पर्यटन के लिहाज से विकसित करने की मांग की है.

धरोहर के रूप में विकसित हो नहर: स्थानीय लोगों का कहना है कि कई दशकों से इस नहर का उपयोग नहीं हो रहा है. ऐसे में यह नहर अब धीरे-धीरे खंडर में तब्दील होती जा रही है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि इस नहर का सौंदर्यीकरण किया जाए और पर्यटन के रूप में विकसित किया जाए, जिससे हमारे प्रदेश का रेवेन्यू बढ़ेगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

ब्रिटिशकालीन 52 डांठ नहर को धरोहर और पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग

दर्जनों गांवों के खेतों की होती थी सिंचाई: अंग्रेजों द्वारा साल 1882 में बेल बसानी के जंगल के बीचों बीच 52 डांठ (पिलर) पर बनाई गई नहर कई दशकों से बंद पड़ी है. हल्द्वानी से महज 8 किलोमीटर दूर दर्जनों गांवों के किसान इसी नहर से फसलों की सिंचाई करते थे. हालांकि, संबंधित विभाग समय-समय पर इस नहर की मरम्मत करता है लेकिन भाखड़ा नदी से यहां आने वाला पानी सूखने के बाद इस नहर का उपयोग नहीं रहा. इन नहर में पानी आना ही बंद हो गया.

कारीगरी और इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना: फतेहपुर क्षेत्र से लगी ये ब्रिटिश कालीन 52 डांठ सिंचाई नहर अब धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो रही है. इस नहर को जमीन से करीब 40 फीट ऊपर 52 पिलरों पर बनाया गया था. करीब 140 साल पहले बनी इस नहर की कारीगरी और डिजाइन देखते ही बनती है. ऐसे में स्थानीय लोगों का मानना है कि अगर सरकार इस नहर को पर्यटन के लिहाज से विकसित करे, तो यह स्थान प्रदेश के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में शामिल हो सकता है.
पढ़ें- CM धामी ने मोटर होम का किया निरीक्षण, कहा-पर्यटन को पंख लगाना चाहती है सरकार

फतेहपुर गांव के जनप्रतिनिधि नीरज तिवारी का कहना है कि ब्रिटिशकालीन इस धरोहर को बचाने के लिए कई बार मुख्यमंत्री और अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं लेकिन इसके अस्तित्व को बचाने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा है. उनकी मांग है कि इस धरोहर को संरक्षित किया जाए, जिससे कि लोग इस ब्रिटिश कालीन धरोहर के विषय में जान सकें. साथ ही इसको पर्यटन क्षेत्र बनाया जाए, जिससे कि बाहर से आने वाले पर्यटक इस धरोहर की जानकारी हासिल कर सकें.

सिंचाई विभाग के अधीक्षण अभियंता रामबाबू सिंह ने बताया कि बरसात के दौरान नहर सिंचाई के लिए प्रयोग में लाई जाती है. बरसात से पहले टूटी-फूटी नहर को ठीक कर लिया जाता है, लेकिन इस नहर को धरोहर के तौर पर संरक्षित करने और इस नहर को बाहर से आने वाले पर्यटक देख सकें इसको लेकर कुमाऊं मंडल विकास निगम इस नहर का सुंदरीकरण करने जा रहा है, जिससे कि नहर के अस्तित्व को बचाया जा सके.

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