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Republic Day flag: प्लास्टिक के झंडों पर बैन से बढ़ी खादी के तिरंगे की मांग, गांधी आश्रम में लौटी रौनक

गणतंत्र दिवस की तैयारियां तेज हो गई हैं. प्लास्टिक के तिरंगे इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगने के बाद गांधी आश्रम में खादी के तिरंगे झंडों की मांग बढ़ गई है. साथ ही गांधी आश्रम को भी अच्छा खासा मुनाफा हो रहा है.

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Published : Jan 25, 2023, 11:35 AM IST

खादी के तिरंगे की मांग बढ़ी

हल्द्वानी: गणतंत्र दिवस को देखते हुए खादी के तिरंगे झंडे की मांग बढ़ गई है. गणतंत्र दिवस की तैयारी सभी शिक्षण संस्थान, सरकारी व निजी दफ्तरों, राजनीतिक व सामाजिक संस्था के कार्यालयों में जोरों पर चल रही है. गणतंत्र दिवस की धमक शहर के बाजारों में दिखने लगी है. गणतंत्र दिवस के मौके पर खादी के बने तिरंगे झंडे के लिए लोगों में रुझान देखा जा रहा है. आजादी की लड़ाई की प्रतीक कहे जाने वाले सूती के तिरंगे झंडे का अपना ही महत्व है. देश को आजाद कराने में स्वाधीनता के सिपाहियों ने खादी के तिरंगे के साथ अंग्रेजों से लोहा लेते हुए, उनको भारत छोड़ने को मजबूर कर दिया था. जिसके बाद लोगों में तिरंगे के प्रति देश प्रेम की भावना जगी और तिरंगे के माध्यम से आज भी वो अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति जता रहे हैं.

गांधी आश्रम में तिरंगा लेने की होड़: किसी दौर में लोग आजादी का जश्न मनाने के लिए तिरंगे की खरीदारी गांधी आश्रम से कर देश प्रेम के जज्बे को दर्शाते थे. आज बदलते दौर में भी खादी के तिरंगे खरीदने के प्रति लोगों में रुचि देखने को मिल रही है. इसी का नतीजा है कि कुमाऊं मंडल के हल्द्वानी स्थित क्षेत्रीय गांधी आश्रम से जुड़ी दुकानों पर गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रा दिवस के मौके पर 15 से 20 लाख रुपए के खादी से बने झंडों का कारोबार होता है. क्षेत्रीय गांधी आश्रम कार्यालय खादी से बने (नांदेड़) महाराष्ट्र, (हुबली) कर्नाटक और ग्वालियर से भारतीय मानक ब्यूरो प्रमाणित (BIS) झंडे लाकर यहां बेचने का काम कर रहा है. यहां झंडों की खूब डिमांड आ रही है. क्षेत्रीय प्रबंधक गांधी आश्रम दीप चंद्र जोशी ने बताया कि प्लास्टिक से बने झंडों पर प्रतिबंध लगने के बाद अब लोगों में खादी के झंडों के प्रति रुझान देखने को मिला है.
पढ़ें-Hathichaud Grassland: हाथीचौड़ ग्रासलैंड रोकेगा मानव वन्यजीव संघर्ष, ऐसे बनाया प्राकृतिक वास

जिसका नतीजा है कि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर झंडे का कारोबार 15 से 20 लाख रुपए तक पहुंच गया है. उन्होंने बताया कि गांधी आश्रम में खादी से बने झंडे की कीमत 15 सौ रुपए से लेकर ₹6000 तक है. गांधी आश्रम में शुद्ध खादी से बने तिरंगे झंडे मिलते हैं. ऐसे में लोग पसंद भी करते हैं. गणतंत्र दिवस के मद्देनजर लोग तिरंगे की खरीदारी में लगे हुए हैं. सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं में झंडा रोहण के लिए लोग खादी भंडार आश्रम पहुंचकर अलग-अलग साइजों के झंडे की खरीददारी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि गांधी आश्रम के पास खादी से बने झंडे मिलते हैं जो भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) से प्रमाणित हैं. बाजारों में सूती के बने तिरंगे झंडे मिलते तो हैं, लेकिन वह BIS प्रमाणित झंडे नहीं होते हैं. BIS प्रमाणित झंडे की खासियत यह होती है कि झंडे का कभी भी रंग खराब नहीं होता है. हवा और बरसात से भी ये झंडे खराब नहीं होते.

खादी के तिरंगे की मांग बढ़ी

हल्द्वानी: गणतंत्र दिवस को देखते हुए खादी के तिरंगे झंडे की मांग बढ़ गई है. गणतंत्र दिवस की तैयारी सभी शिक्षण संस्थान, सरकारी व निजी दफ्तरों, राजनीतिक व सामाजिक संस्था के कार्यालयों में जोरों पर चल रही है. गणतंत्र दिवस की धमक शहर के बाजारों में दिखने लगी है. गणतंत्र दिवस के मौके पर खादी के बने तिरंगे झंडे के लिए लोगों में रुझान देखा जा रहा है. आजादी की लड़ाई की प्रतीक कहे जाने वाले सूती के तिरंगे झंडे का अपना ही महत्व है. देश को आजाद कराने में स्वाधीनता के सिपाहियों ने खादी के तिरंगे के साथ अंग्रेजों से लोहा लेते हुए, उनको भारत छोड़ने को मजबूर कर दिया था. जिसके बाद लोगों में तिरंगे के प्रति देश प्रेम की भावना जगी और तिरंगे के माध्यम से आज भी वो अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति जता रहे हैं.

गांधी आश्रम में तिरंगा लेने की होड़: किसी दौर में लोग आजादी का जश्न मनाने के लिए तिरंगे की खरीदारी गांधी आश्रम से कर देश प्रेम के जज्बे को दर्शाते थे. आज बदलते दौर में भी खादी के तिरंगे खरीदने के प्रति लोगों में रुचि देखने को मिल रही है. इसी का नतीजा है कि कुमाऊं मंडल के हल्द्वानी स्थित क्षेत्रीय गांधी आश्रम से जुड़ी दुकानों पर गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रा दिवस के मौके पर 15 से 20 लाख रुपए के खादी से बने झंडों का कारोबार होता है. क्षेत्रीय गांधी आश्रम कार्यालय खादी से बने (नांदेड़) महाराष्ट्र, (हुबली) कर्नाटक और ग्वालियर से भारतीय मानक ब्यूरो प्रमाणित (BIS) झंडे लाकर यहां बेचने का काम कर रहा है. यहां झंडों की खूब डिमांड आ रही है. क्षेत्रीय प्रबंधक गांधी आश्रम दीप चंद्र जोशी ने बताया कि प्लास्टिक से बने झंडों पर प्रतिबंध लगने के बाद अब लोगों में खादी के झंडों के प्रति रुझान देखने को मिला है.
पढ़ें-Hathichaud Grassland: हाथीचौड़ ग्रासलैंड रोकेगा मानव वन्यजीव संघर्ष, ऐसे बनाया प्राकृतिक वास

जिसका नतीजा है कि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर झंडे का कारोबार 15 से 20 लाख रुपए तक पहुंच गया है. उन्होंने बताया कि गांधी आश्रम में खादी से बने झंडे की कीमत 15 सौ रुपए से लेकर ₹6000 तक है. गांधी आश्रम में शुद्ध खादी से बने तिरंगे झंडे मिलते हैं. ऐसे में लोग पसंद भी करते हैं. गणतंत्र दिवस के मद्देनजर लोग तिरंगे की खरीदारी में लगे हुए हैं. सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं में झंडा रोहण के लिए लोग खादी भंडार आश्रम पहुंचकर अलग-अलग साइजों के झंडे की खरीददारी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि गांधी आश्रम के पास खादी से बने झंडे मिलते हैं जो भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) से प्रमाणित हैं. बाजारों में सूती के बने तिरंगे झंडे मिलते तो हैं, लेकिन वह BIS प्रमाणित झंडे नहीं होते हैं. BIS प्रमाणित झंडे की खासियत यह होती है कि झंडे का कभी भी रंग खराब नहीं होता है. हवा और बरसात से भी ये झंडे खराब नहीं होते.

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