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नदी के बीचों-बीच प्रसिद्ध मां गर्जिया देवी का पावन धाम, जानिए मंदिर की मान्यता और इतिहास

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Published : Apr 7, 2022, 4:22 PM IST

Updated : Apr 7, 2022, 7:46 PM IST

रामनगर में गर्जिया नामक स्थान पर कोसी नदी के बीच गर्जिया माता का मंदिर लाखों श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है. चैत्र नवरात्र पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है. मान्यता है कि यहां पर जो भी मनोकामना सच्चे दिल से मांगी जाती है, वह पूरी हो जाती है.

maa Girija Devi holy abode
मां गर्जिया देवी का पावन धाम

रामनगरः उत्तराखंड के मंदिरों में इन दिनों चैत्र नवरात्र की धूम मची है. देवी के मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. रामनगर में कोसी नदी के दो धाराओं के बीच एक टीले पर स्थित गर्जिया देवी के मंदिर में भी दूर-दूर से भक्त अपनी मनोकामना के लिए पहुंच रहे हैं. वैसे तो यहां सालों भक्तों की भीड़ लगी रहती है. लेकिन नवरात्र के दौरान यहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं.

राजा विराट ने की थी देवी की उपासनाः रामनगर में कोसी नदी के दो धाराओं के बीचों बीच एक किले में स्थित विश्व प्रसिद्ध गर्जिया देवी मंदिर में दूर-दूर से भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं. नवरात्र के दिनों यहां सुबह 4 बजे से ही भक्तों का जमावड़ा लग रहा है, जो मां के दर्शनों के लिए पहुंच रहे हैं. कहा जाता है कि महाभारत काल में राजा विराट ने यहां देवी की तपस्या की थी. तब से ही टीले में शक्तिपुंज की स्थापना हुई है. यहां जो भी भक्त सच्चे मन से मनोकामना लेकर आता है. मां उसकी मनोकामना पूरी करती है.

नदी के बीचों-बीच प्रसिद्ध मां गर्जिया देवी का पावन धाम

गर्जिया देवी करती हैं निवासः इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि हजारों साल पहले एक मिट्टी का बड़ा सा टीला कोसी नदी के साथ बहकर आया था और बटुक भैरव देवता उस टीले में विराजमान गर्जिया माता को देखकर उन्हें रोकते हुए कहते हैं, 'देवी ठहरो और यहां मेरे साथ निवास करो'. हजारों साल पहले बटुक भैरव द्वारा रोका हुआ यह टीला आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है. जहां गिरिराज हिमालय की पुत्री गर्जिया देवी निवास करती हैं. जिन्हें हम माता पार्वती का एक दूसरा रूप भी कहते हैं. उत्तराखंड में गिरिजा माता को गर्जिया देवी के नाम से भी जाना जाता है.
ये भी पढ़ेंः आरोग्य और स्वच्छता की देवी हैं मां शीतला देवी, यहां चेचक से मिलती है मुक्ति, नहीं जाता कोई खाली हाथ

विरान घने जंगल के बीच मंदिरः गर्जिया देवी का यह मंदिर रामनगर से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जानकार बताते हैं कि 19वीं सदी में गर्जिया माता का अस्तित्व आज के समय जैसा नहीं था, बल्कि यहां पर विरान घना जंगल हुआ करता था. साल 1950 में श्री 108 महादेव गिरि बाबा यहां पहुंचे तो उनके शिष्य ने यहां एक झोपड़ी बनाई. जिसमें उनके शिष्य ने गर्जिया मां की उपासना की. महादेव गिरि एक नागा बाबा और तांत्रिक थे, जिन्हें कई सिद्धियां प्राप्त थी. यही नागा बाबा एक जमाने में जापान के फौज के सिपाही थे और इन्हीं नागा बाबा ने राजस्थान से भैरव, गणेश और तीन महादेवी की मूर्तियों को लाकर यहां पर स्थापित की थी.

पूरी होती है मनोकामनाः आपको जानकर हैरानी होगी कि जब नागा बाबा मूर्ति स्थापना कर रहे थे. उसी समय एक शेर ने अत्यंत तेज गर्जना की जिस वजह से उन्होंने इसे एक संकेत मानकर इस देवी का नाम गर्जिया देवी रख दिया. मूर्ति स्थापना होने के बाद प्राचीन कुटिया को हटाकर पक्की कुटिया बनाई गई. टीले को काटकर सीढ़िया बनाई गई. ऐसी मान्यता है कि यहां पर जो भी मनोकामना सच्चे दिल से मांगी जाती है, वह मनोकामना पूरी हो जाती है.

रामनगरः उत्तराखंड के मंदिरों में इन दिनों चैत्र नवरात्र की धूम मची है. देवी के मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. रामनगर में कोसी नदी के दो धाराओं के बीच एक टीले पर स्थित गर्जिया देवी के मंदिर में भी दूर-दूर से भक्त अपनी मनोकामना के लिए पहुंच रहे हैं. वैसे तो यहां सालों भक्तों की भीड़ लगी रहती है. लेकिन नवरात्र के दौरान यहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं.

राजा विराट ने की थी देवी की उपासनाः रामनगर में कोसी नदी के दो धाराओं के बीचों बीच एक किले में स्थित विश्व प्रसिद्ध गर्जिया देवी मंदिर में दूर-दूर से भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं. नवरात्र के दिनों यहां सुबह 4 बजे से ही भक्तों का जमावड़ा लग रहा है, जो मां के दर्शनों के लिए पहुंच रहे हैं. कहा जाता है कि महाभारत काल में राजा विराट ने यहां देवी की तपस्या की थी. तब से ही टीले में शक्तिपुंज की स्थापना हुई है. यहां जो भी भक्त सच्चे मन से मनोकामना लेकर आता है. मां उसकी मनोकामना पूरी करती है.

नदी के बीचों-बीच प्रसिद्ध मां गर्जिया देवी का पावन धाम

गर्जिया देवी करती हैं निवासः इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि हजारों साल पहले एक मिट्टी का बड़ा सा टीला कोसी नदी के साथ बहकर आया था और बटुक भैरव देवता उस टीले में विराजमान गर्जिया माता को देखकर उन्हें रोकते हुए कहते हैं, 'देवी ठहरो और यहां मेरे साथ निवास करो'. हजारों साल पहले बटुक भैरव द्वारा रोका हुआ यह टीला आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है. जहां गिरिराज हिमालय की पुत्री गर्जिया देवी निवास करती हैं. जिन्हें हम माता पार्वती का एक दूसरा रूप भी कहते हैं. उत्तराखंड में गिरिजा माता को गर्जिया देवी के नाम से भी जाना जाता है.
ये भी पढ़ेंः आरोग्य और स्वच्छता की देवी हैं मां शीतला देवी, यहां चेचक से मिलती है मुक्ति, नहीं जाता कोई खाली हाथ

विरान घने जंगल के बीच मंदिरः गर्जिया देवी का यह मंदिर रामनगर से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जानकार बताते हैं कि 19वीं सदी में गर्जिया माता का अस्तित्व आज के समय जैसा नहीं था, बल्कि यहां पर विरान घना जंगल हुआ करता था. साल 1950 में श्री 108 महादेव गिरि बाबा यहां पहुंचे तो उनके शिष्य ने यहां एक झोपड़ी बनाई. जिसमें उनके शिष्य ने गर्जिया मां की उपासना की. महादेव गिरि एक नागा बाबा और तांत्रिक थे, जिन्हें कई सिद्धियां प्राप्त थी. यही नागा बाबा एक जमाने में जापान के फौज के सिपाही थे और इन्हीं नागा बाबा ने राजस्थान से भैरव, गणेश और तीन महादेवी की मूर्तियों को लाकर यहां पर स्थापित की थी.

पूरी होती है मनोकामनाः आपको जानकर हैरानी होगी कि जब नागा बाबा मूर्ति स्थापना कर रहे थे. उसी समय एक शेर ने अत्यंत तेज गर्जना की जिस वजह से उन्होंने इसे एक संकेत मानकर इस देवी का नाम गर्जिया देवी रख दिया. मूर्ति स्थापना होने के बाद प्राचीन कुटिया को हटाकर पक्की कुटिया बनाई गई. टीले को काटकर सीढ़िया बनाई गई. ऐसी मान्यता है कि यहां पर जो भी मनोकामना सच्चे दिल से मांगी जाती है, वह मनोकामना पूरी हो जाती है.

Last Updated : Apr 7, 2022, 7:46 PM IST
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