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फ्रिज और वाटर कूलर की वजह से फीकी पड़ने लगी मिट्टी के घड़े की महक - उत्तराखंड समाचार

आधुनिकता की इस दौड़ में कम हुई मिट्टी के घड़ों की डिमांड. कारोबार बदलने को मजबूर कुम्हार.

मिट्टी के घड़े.
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Published : May 7, 2019, 11:51 PM IST

हल्द्वानी: कुछ सालों पहले तक गर्मियों में मिट्टी के घड़े का इस्तेमाल पानी को ठंडा रखने के लिए किया जाता था. लेकिन, आधुनिकता की दौड़ में मिट्टी के घड़े का स्थान फ्रिज और वाटर कूलर ने ले लिया है. मिट्टी के बर्तन का कारोबार करने वाले कुम्हार परिवार बदहाली की स्थिति से गुजर रहे हैं. गरीब का फ्रिज कहलाने वाला घड़ा अपनी पहचान दिनोंदिन खोता जा रहा है.

घटता घड़ों का कारोबार

मिट्टी से बनने वाले घड़े समेत कुम्हारों द्वारा बनाये जाने वाले अन्य समानों का चलन काफी कम हो गया है. बदलते दौर और बदलते परिवेश के चकाचौंध में लोग पुरानी चीजों को भूलते जा रहे हैं. हल्द्वानी में कई कुम्हार परिवार हैं, जो पिछले कई दशकों से मिट्टी के बर्तनों का कारोबार करते आ रहे हैं. कुम्हार बताते हैं कि सालों पहले गर्मियों में इनके द्वारा बनाये जाने वाले मिट्टी के घड़ों की खूब डिमांड थी. गर्मियों में रोजाना 30 से 35 घड़े बिक जाते थे. लेकिन अब हालत ये हो गया है कि एक दिन में पांच से दस घड़े बेचना भी बहुत मुश्किल है.

पढ़ें- पड़ताल: दून में प्रदूषण की वजह से बढ़ रही है अस्थमा रोगियों की संख्या

कुम्हारों का कहना है कि बाजार में घड़े सहित मिट्टी के बर्तनों की डिमांड धीरे-धीरे खत्म हो रही है. बिक्री न होने के चलते अब मिट्टी के काम से जुड़े कुम्हार इस कारोबार से मुंह मोड़ने लगे हैं. उन्होंने बताया कि कई परिवार ऐसे भी हैं जो इस कारोबार को छोड़कर अन्य कारोबार कर रहे हैं. कुम्हारों का कहना है कि इस काम में लागत ज्यादा लग रही है और बिक्री बेहद कम है. मिट्टी के बर्तनों से जुड़े व्यापार में घाटा उठाना पड़ रहा है.

वहीं, कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो अभी भी मिट्टी के घड़े के पानी के महत्व को खूब समझते हैं. लेकिन, ये गिनती मात्र के लोग हैं. कुल मिलाकर मिट्टी के बर्तनों का कारोबार करने वाले कुम्हार इस काम को समेटने लगे हैं और दूसरे धंधे की ओर बढ़ रहे हैं.

हल्द्वानी: कुछ सालों पहले तक गर्मियों में मिट्टी के घड़े का इस्तेमाल पानी को ठंडा रखने के लिए किया जाता था. लेकिन, आधुनिकता की दौड़ में मिट्टी के घड़े का स्थान फ्रिज और वाटर कूलर ने ले लिया है. मिट्टी के बर्तन का कारोबार करने वाले कुम्हार परिवार बदहाली की स्थिति से गुजर रहे हैं. गरीब का फ्रिज कहलाने वाला घड़ा अपनी पहचान दिनोंदिन खोता जा रहा है.

घटता घड़ों का कारोबार

मिट्टी से बनने वाले घड़े समेत कुम्हारों द्वारा बनाये जाने वाले अन्य समानों का चलन काफी कम हो गया है. बदलते दौर और बदलते परिवेश के चकाचौंध में लोग पुरानी चीजों को भूलते जा रहे हैं. हल्द्वानी में कई कुम्हार परिवार हैं, जो पिछले कई दशकों से मिट्टी के बर्तनों का कारोबार करते आ रहे हैं. कुम्हार बताते हैं कि सालों पहले गर्मियों में इनके द्वारा बनाये जाने वाले मिट्टी के घड़ों की खूब डिमांड थी. गर्मियों में रोजाना 30 से 35 घड़े बिक जाते थे. लेकिन अब हालत ये हो गया है कि एक दिन में पांच से दस घड़े बेचना भी बहुत मुश्किल है.

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कुम्हारों का कहना है कि बाजार में घड़े सहित मिट्टी के बर्तनों की डिमांड धीरे-धीरे खत्म हो रही है. बिक्री न होने के चलते अब मिट्टी के काम से जुड़े कुम्हार इस कारोबार से मुंह मोड़ने लगे हैं. उन्होंने बताया कि कई परिवार ऐसे भी हैं जो इस कारोबार को छोड़कर अन्य कारोबार कर रहे हैं. कुम्हारों का कहना है कि इस काम में लागत ज्यादा लग रही है और बिक्री बेहद कम है. मिट्टी के बर्तनों से जुड़े व्यापार में घाटा उठाना पड़ रहा है.

वहीं, कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो अभी भी मिट्टी के घड़े के पानी के महत्व को खूब समझते हैं. लेकिन, ये गिनती मात्र के लोग हैं. कुल मिलाकर मिट्टी के बर्तनों का कारोबार करने वाले कुम्हार इस काम को समेटने लगे हैं और दूसरे धंधे की ओर बढ़ रहे हैं.

Intro:स्लग- गर्मियों में ठंडी हुई मिट्टी के घड़े की पहचान।
रिपोर्टर- भावनाथ पंडित /हल्द्वानी
एंकर- कुछ सालों पहले तक गर्मियों में मिट्टी के घड़ा का पहचान ठंडे पानी रखने के रूप में किया जाता था। आधुनिकता की दौड़ में मिट्टी के घड़े का स्थान आप फ्रिज और वाटर कूलर ने ले लिया है। मिट्टी के बर्तन का कारोबार करने वाले कुम्हार परिवार अब बदहाली के स्थिति में गुजर रहा है। गरीब का फ्रिज कहलाने वाला घड़ा आखिर क्यों अपना पहचान हो रहा है देखिए एक रिपोर्ट.......


Body:मिट्टी से घड़ा सहित अन्य बर्तन बनाने वाले कुम्हार का कारोबार अब धीरे-धीरे विलुप्त की ओर जा रहा है। बदलते दौर और बदलते परिवेश के चकाचौंध भरी दुनिया में लोग अब पुरानी चीजों को भूलते जा रहे हैं। हल्द्वानी में कई कुम्हार परिवार है जो पिछले कई दशकों से मिट्टी के बर्तनों का कारोबार करते आ रहे हैं। कई वर्षों पहले गर्मियों में इनके द्वारा बनाई गई मिट्टी का घर का डिमांड खूब हुआ करता था। कभी गर्मियों में रोजाना 30-35 घड़े बेचने वाले दुकानदार अब बदहाली की ओर हैं। क्योंकि गर्मियों में बिकने वाला घड़े का स्थान फ्रिज और वाटर कूलर ले लिया है। मिट्टी बर्तन कारोबार करने वालों का कहना है कि अब रोजाना 5 से 10 घड़े ही बेच पा रहे हैं। बाजार में घड़े सहित मिट्टी के बर्तनों की डिमांड धीरे-धीरे खत्म हो रही है। बिक्री नहीं होने के चलते अब वह लोग इस कारोबार से मुंह मोड़ रहे हैं । कई परिवार ऐसे हैं जो इस कारोबार को छोड़कर अन्य कारोबार भी कर रहे हैं। कारोबारियों को करना है कि अब इस काम में लागत ज्यादा लग रहा है और बिक्री कम हो रही है जिसके चलते उनको अब इस व्यापार से घाटा उठाना पड़ रहा है।

बाइट- मिट्टी बर्तन कारोबारी
बाइट- मिट्टी बर्तन कारोबारी

हालांकि गर्मी के इस सीजन में अभी भी कुछ लोग घड़े के शुद्ध पानी पर ही विश्वास करते हैं । कई लोगों विश्वास है कि घड़े का पानी शुद्ध होता है और स्वास्थ्यवर्धक होता है जबकि फ्रिज और वाटर कूलर का पानी नुकसानदायक होता है ।

बाइट -घड़ा खरीदार
बाइट -खरीदार


Conclusion:कुल मिलाकर मिट्टी का कारोबार चाहे वह घड़े का हो या अन्य बर्तनों का धीरे-धीरे सी मिटने को तैयार है। लेकिन आधुनिकता के दौर में हम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का सहारा ले रहे हैं। ऐसे में जरूरत है कि कुम्हारों की मेहनत को साकार किया जाए और उनकी मिट्टी की महक को लौट आया जा सके जिससे बना घड़ा भीषण गर्मी में ठंडे पानी का सहारा बनता था।
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