नैनीताल: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के रुझानों को देखते हुए प्रदेश में बीजेपी की सरकार में वापसी तय मानी जा रही है. वहीं, इस बार कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामने वाली सरिता आर्य के लिए भी चुनाव परिणाम खुशी लेकर आया है. नैनीताल विधानसभा सीट ने सरिता आर्य ने 5 हजार से भी ज्यादा वोटों से जीत हासिल की है. सरिता ने कांग्रेस के संजीव आर्य को हराया है.
सरिता आर्य की जीत के बाद उनके समर्थक हल्द्वानी एमबीपीजी डिग्री कॉलेज में बने मतगणना केंद्र पहुंचे. इस दौरान सरिता आर्य का भाजपा कार्यकर्ताओं ने भव्य स्वागत किया. साथ ही भीमताल विधानसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार राम सिंह कैड़ा ने भी जीत दर्ज की है. राम सिंह लगातार दूसरी बार विधायक बने हैं.
बंशीधर भगत जीते: वहीं, कालाढूंगी विधानसभा सीट से पूर्व कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत ने 10 हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज की है. कुल मिलाकर नैनीताल की 6 विधानसभा सीटों में से 5 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का झंडा लहराया है. वहीं, हल्द्वानी सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी सुमित हृदयेश ने जीत हासिल की है. इस सीट से स्व. इंदिरा हृदयेश के बेटे सुमित हृदयेश पहली बार विधायक बनेंगे.
वहीं, बात अगर नैनीताल सीट की करें तो चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का दामन छोड़ सरिता आर्य बीजेपी में शामिल हुई थीं. आखिरी समय में बीजेपी ने भी सरिता आर्य पर अपना दांव खेला, जो सटीक साबित हुआ. सरिता आर्य ने नैनीताल सीट से 5 हजार से भी ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की है. ऐसे में आइए सरिता आर्य के राजनीतिक करियर पर एक नजर डालते हैं.
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नैनीताल सीट से मांग रही थी टिकटः सरिता आर्य नैनीताल सीट से पूर्व विधायक रही हैं. 2012 में वह नैनीताल सीट से विधायक रहीं. लेकिन 2017 में वह भाजपा के प्रत्याशी संजीव आर्य से हार गई थीं. वहीं, इस बार के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस से उत्तर प्रदेश की तर्ज पर महिलाओं को उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी टिकट देने की मांग की थी, लेकिन कांग्रेस की ओर से उनका टिकट काटे जाने की अटकलें लगातार सामने आ रही थी. वहीं, यशपाल आर्य और संजीव आर्य के भाजपा से कांग्रेस में शामिल होने के बाद सरिता आर्य ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया.
कांग्रेस ने सरिता आर्य को सभी पदों से हटाया: कांग्रेस को जैसे ही सरिता आर्य के बीजेपी ज्वाइन करने की भनक लगी, उन्होंने सरिता को पार्टी के सभी पदों से बर्खास्त कर दिया. इसके साथ ही सरिता आर्य को कांग्रेस से 6 साल के लिए निष्कासित भी कर दिया गया. कांग्रेस ने इसके लिए बाकायदा एक पत्र जारी किया था. अब इतिहास बदल चुका है. जिस सरिता आर्य को कांग्रेस ने टिकट के काबिल नहीं समझा, उन्हीं ने कांग्रेस के संजीव आर्य को हार का स्वाद चखा दिया.