हल्द्वानी: उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत की आज 133वीं जयंती है. पंडित गोविंद बल्लभ पंत को आधुनिक उत्तर भारत के निर्माता के रूप में याद किया जाता है. ऐसे में उत्तराखंड सहित पूरे देश में गोविंद बल्लभ को उनकी जयंती पर स्मरण याद किया जा रहा है.
अल्मोड़ा में जन्मे थे गोविंद बल्लभ पंत
10 सितंबर 1887 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव में जन्मे पंडित गोविंद बल्लभ पंत महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और जाने-माने वकील थे. इसके साथ-साथ उन्होंने उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री से लेकर भारत के गृह मंत्री तक का पदभार भी संभाला था.
भारत रत्न तक का सफर संघर्ष भरा रहा
गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 1887 को अल्मोड़ा के खूंट (धामस) गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था. गोविंद बल्लभ पंत के पिता का नाम मनोरथ पंत और मां का नाम गोविंदी बाई पंत था. छोटी सी उम्र में गोविंद बल्लभ पंत के पिता की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी परवरिश उनके नाना बद्री दत्त जोशी ने की. गोविंद बल्लभ पंत ने 10 वर्ष की उम्र तक शिक्षा घर पर ही रहकर ग्रहण की. उन्होंने प्राथमिक शिक्षा रामजस कॉलेज से प्राप्त की.
महज 12 साल की उम्र में हुआ विवाह
12 वर्ष की आयु में जब वह कक्षा 7 में पढ़ाई कर रहे थे, तभी उनकी शादी गंगा देवी से हो गई. जिसके बाद उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा अल्मोड़ा से पूरी की. 1905 में गोविंद बल्लभ पंत अल्मोड़ा छोड़ इलाहाबाद चले गए, जहां उन्होंने वकालत की पढ़ाई करते हुए राजनीतिक के क्षेत्र में भी अपनी रुचि दिखाई और कांग्रेस के स्वयंसेवक के तौर पर काम करते रहे.
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कानून की परीक्षा में सर्वोच्च अंक हासिल किये
शिक्षा में उनकी रुचि और लगन के परिणाम स्वरूप वर्ष 1909 में उन्हें कानून की परीक्षा में सर्वोच्च अंक हासिल हुए. उनकी उपलब्धि को देखते हुए कॉलेज ने उन्हें लेम्सडेन अवॉर्ड से सम्मानित किया. जिसके बाद गोविंद बल्लभ पंत वापस अल्मोड़ा आ गए और अल्मोड़ा से उन्होंने वकालत की शुरुआत की.
व्यक्तिगत संघर्ष से भी गुजरे गोविंद बल्लभ पंत
वर्ष 1909 में उनके पुत्र की बीमारी से मौत हो गई. जिसके कुछ दिन बाद पत्नी गंगा देवी की भी मृत्यु हो गई. उस समय उनकी उम्र 23 वर्ष की थी, जिसके बाद परिवार वालों ने 1912 में उनकी दूसरी शादी अल्मोड़ा की रहने वाली कलादेवी से कराई, लेकिन दो साल बाद 1914 में दूसरी पत्नी कमला देवी की भी मौत हो गई. जिसके बाद उन्होंने 1916 में कलावती देवी से तीसरी शादी की.
निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत
इस बीच गोविंद बल्लभ पंत का नैनीताल और काशीपुर आना-जाना शुरू हो गया और काशीपुर में उन्होंने 1914 में प्रेम सभा की स्थापना की और शिक्षा समिति के अध्यक्ष बने. उन्होंने निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के लिए राष्ट्रीय आंदोलन की भी शुरुआत की. दिसंबर 1921 में महात्मा गांधी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन के रास्ते उन्होंने अपना राजनीतिक सफर शुरू किया.
सत्याग्रह आंदोलन का बने हिस्सा
9 अगस्त 1924 को काकोरी कांड में कुछ क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाना लूट लिया था. जिसमें पंत ने मुकदमे की पैरवी की. 1930 में नमक सत्याग्रह में भी इन्होंने भाग लिया और मई 1930 में देहरादून जेल में भी रहे. गोविंद बल्लभ पंत ने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया.
1937 में उत्तर प्रदेश के पहले सीएम बने
सन 1921, 1930, 1932 और 1934 में करीब 7 साल तक वह जेल में रहे. 17 जुलाई 1937 से लेकर 2 नवंबर 1939 में संयुक्त प्रांत यानी यूपी के पहले मुख्यमंत्री बने. जिसके बाद उन्हें दोबारा 1 अप्रैल 1946 से 15 अगस्त 1947 तक संयुक्त प्रांत यूपी के मुख्यमंत्री का दायित्व सौंपा गया. जब भारतवर्ष का अपना संविधान बना और संयुक्त प्रांत का नाम बदलकर उत्तर प्रदेश रखा गया तो फिर तीसरी बार उन्हें उसी पद के लिए सभी की सहमति से मुख्यमंत्री बनाया गया. इस प्रकार स्वतंत्र भारत में 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसंबर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने रहे.
1955 में केंद्रीय गृह मंत्री का पदभार संभाला
सरदार बल्लभ भाई पटेल की मृत्यु के बाद 10 जनवरी 1955 को गोविंद बल्लभ पंत ने केंद्रीय गृह मंत्री का पदभार संभाला. सन 1957 में गणतंत्र दिवस पर महान देशभक्त कुशल प्रशासक भारतीय संविधान के ज्ञाता, जमीदारी प्रथा को खत्म करने और हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाए जाने पर उन्हें सर्वोच्च उपाधि भारत रत्न से विभूषित किया गया.
7 मई 1961 को गोविंद बल्लभ पंत का हुआ निधन
7 मई 1961 को हृदय गति रुकने के कारण उनकी मृत्यु हो गई. उस समय वह भारत के केंद्रीय गृहमंत्री थे. गोविंद बल्लभ पंत भारत रत्न प्राप्त करने वाले उत्तराखंड के पहले व्यक्ति हैं. इसीलिए आज भी गोविंद बल्लभ पंत को हिमालय पुत्र के नाम से जाना जाता है.
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दी श्रद्धांजलि
भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत की 133वीं जयंती पर उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. साथ ही देश की राजनीति में उनके योगदान को याद किया.