हल्द्वानी: एक दौर था जब ज्ञान अर्जित करने के लिए लोग पुस्तकालय पहुंचकर किताबों से ज्ञान अर्जित कई प्रतियोगी परीक्षा में मुकाम हासिल करते थे. हल्द्वानी शहर के बीचों-बीच बना 35 साल पुराना शासकीय पुस्तकालय आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. आलम यह है कि पुस्तकालय में किताबें रखने तक की जगह नहीं है. पुस्तकालय का भवन जर्जर हालत में है. छत से पानी टपक रहा है. यहां तक कि किताबों की सुरक्षा अलमारी के बजाय पॉलिथीन से ढककर की जा रही है.
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यही नहीं पुस्तकालय की व्यवस्थाएं ठीक नहीं होने और किताबें नहीं होने के चलते पाठक किताबें पढ़ने यहां नहीं पहुंच रहे हैं. ऐसे में किताबों को धीरे-धीरे अब दिमाग भी चाट रहे हैं. बताया जा रहा है कि पिछले चार सालों से पुस्तकालय में किसी भी प्रतियोगी परीक्षा का किताबें भी नहीं आई हैं. ऐसे में शासकीय पुस्तकालय अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है. पाठक प्रतियोगी परीक्षा की पुस्तकें पढ़ने आते तो हैं लेकिन उन्हें वह उपलब्ध नहीं होती है. जिसके कारण मजबूरन पाठक प्राइवेट पुस्तकालय की ओर रुख करते हैं.
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पुस्तकालय अध्यक्ष किरण जोशी ने बताया 1988 में कालाढूंगी रोड जीजीआइसी में शासकीय लाइब्रेरी खोली गई. 35 साल बाद भी शासकीय पुस्तकालय एक कमरे के खंडहर भवन में चल रहा है. पुस्तकालय के लिए भूमि भी उपलब्ध हुई, लेकिन आज तक उस भूमि पर पुस्तकालय के नाम पर एक ईंट भी नहीं लगी. लाइब्रेरी में करीब सात हजार किताबें हैं. वर्तमान समय में पुस्तकालय से 78 पाठक ही जुड़े हुए हैं. पुस्तकालय में बैठने के लिए केवल 5 लोगों की व्यवस्था है. भवन की हालत इतना जर्जर है कि कभी भी भवन का हिस्सा टूट कर गिर सकता है.
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पुस्तकालय में बैठने की व्यवस्था नहीं होने के कारण पाठक यहां से किताब घर ले जाकर पढ़ते हैं. पुस्तकालय में करीब तीन हजार किताबें अलमारी में लगी हैं, लेकिन अन्य किताबों के रखने की व्यवस्था नहीं है. खुले में रखी किताबों का भीगने का डर है. ऐसे में किताबों को पॉलिथीन से ढककर रखा गया है. जिससे बरसात में किताबें खराब न हो. यही नहीं पुस्तकालय में करीब 4 साल से कोई किताबें भी नहीं आई है.शिक्षा विभाग के अधीन चलने वाला शासकीय पुस्तकालय अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है. शिक्षा विभाग छात्रों को शिक्षा दिलाने के बड़े-बड़े दावे तो करता है लेकिन शिक्षा विभाग का दावा हल्द्वानी शासकीय पुस्तकालय से फेल नजर आ रहा है.