रुड़की: देश में इन दिनों किसान आंदोलन की गूंज है. दिल्ली बॉर्डर पर किसान कृषि बिलों के विरोध में धरने पर बैठे हैं. ऐसे में खेती का काम प्रभावित न हो इसके लिए घर की महिलाओं और बच्चों ने जिम्मा ले लिया है. रुड़की खेतों में महिलाओं और बच्चों के काम करने के दृश्य इन दिनों आम हैं. इससे आंदोलन में गए उनके घर के पुरुष सदस्यों को भी बल मिल रहा है. वो लोग दिल्ली बॉर्डर पर धरने पर डटे हुए हैं.
रुड़की के मंगलौंर में महिलाएं खुद खेतों की बागडोर संभाल कर आंदोलन कर रहे किसानों की हौसला अफजाई कर रही हैं. दरअसल उत्तराखंड के किसान भी दिल्ली बॉर्डर पर धरने पर बैठे हैं. ऐसे में खेती के कार्य उनकी महिलाएं व बच्चे कर रहे हैं.
ईटीवी भारत ने गांव और खेत-खलिहानों का जायजा लिया तो मालूम हुआ कि इसका का जिम्मा किसानों के घरों की महिलाओं ने अपने सर ले लिया है. महिलाएं और बच्चो खेतों में खूब पसीना बहा रहे हैं.
किसानों के घरों की महिलाओं और बच्चों का कहना है कि जब तक बिल वापसी नहीं तब तक घर वापसी नहीं. पशुओं के चारे से लेकर खेतों की सिंचाई, जुताई का कार्य अब महिलाएं और बच्चे कर रहे हैं. साल भर की मेहनत के बाद खेतों में खड़ी गन्ने की फसल महिलायें व बच्चे ही काट रहे हैं.
उत्तराखंड के मैदानी जिलों में गन्ने की फसल से ही किसानों का जीवन यापन होता है. कृषि कानूनों के विरोध में किसान अपनी फसलों को छोड़कर दिल्ली बॉर्डर पर धरने पर बैठे हुए हैं.
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महिलाओं और बच्चों का कहना है कि सरकार किसान विरोधी नीतियों पर चलकर उनकी मुश्किलें बढ़ाने का काम कर रही है. देश का किसान किसी भी सूरत में डिगने वाला नहीं है. महिलाओं ने साफ कहा है कि जब तक उनके घर के किसान धरने पर हैं, तब तक वह खेतों में खुद काम करेंगी.