हरिद्वार: उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय (Uttarakhand Sanskrit University) के व्याकरण विभागाध्यक्ष डॉ शैलेश कुमार तिवारी (Shailesh Kumar Tiwari challenged) ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय (University of Cambridge) के शोध छात्र ऋषिराज पोपट (Cambridge University student RishiRaj popat) पर निशाना साधा है. डॉ शैलेश कुमार तिवारी का आरोप है कि सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए ऋषिराज पोपट ने संस्कृत व्याकरण की महती आचार्य परंपरा का घोर अपमान किया है. इसके साथ ही शैलेश कुमार तिवारी ने शास्त्रार्थ के लिए ऋषिराज पोपट को चुनौती है.
डॉ शैलेश कुमार तिवारी का कहना है कि जिन प्रयोगों की सिद्धि के लिए उनके द्वारा सर्वथा गलत तर्क दिया गया है, वह प्रयोग आचार्य पाणिनि के विशेष सूत्रों से ही सिद्ध हो जाते हैं. फिर भी मनगढ़ंत तर्क की कल्पना ऋषिराज पोपट ने की है. इससे उनका आचार्य के प्रति अविश्वास ही प्रकट हो रहा है. यह उनके शीर्षक "हम पाणिनि पर विश्वास करते हैं" के विरुद्ध है.
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उन्होंने कहा कि संस्कृत जगत के विद्वान इसका विरोध करते हैं और इस विषय पर ऑनलाइन या ऑफलाइन शास्त्रार्थ के लिए तैयार हैं. डॉ शैलेश कुमार तिवारी की मानें तो कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के शोध छात्र ऋषिराज पोपट के अनौचित्यपूर्ण तर्क का जिसमें आचार्य कात्यायन एवं आचार्य पतंजलि के पाणिनिय सूत्र "विप्रतिषेधे परं कार्यम" के परम इस अंश पर प्रदत्त व्याख्यान का खंडन किया गया एवं अपना मनगढ़ंत, सर्वथा दुर्भावना पूर्ण अनुचित तर्क़ प्रस्तुत किया.
कौन हैं ऋषिराज पोपट: 27 साल के ऋषिराज पोपट ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज में पीएचडी के छात्र हैं. वो मूल रूप से भारत के ही रहने वाले हैं. ऋषिराज पोपट ने पुरानी संस्कृत व्याकरण की एक गुत्थी को सुलझाने का दावा किया है. ऋषिराज पोपट ने ईसा पूर्व पांचवीं सदी के संस्कृत विद्धान पाणिनि के नियम को सुलझाने का दावा किया है. पाणिनि प्राचीन संस्कृत भाषा और व्याकरण के विद्वान थे.
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क्या थी उलझन: भारत में संस्कृत भाषा का काफी महत्व है. हालांकि ये चलत प्रचलन में नहीं है, लेकिन संस्कृत को भारत में विज्ञान, दर्शन, कविताओं और धर्मनिरपेक्ष साहित्य में इस्तेमाल किया जाता रहा है. पाणिनि को व्याकरण में अष्टध्यायी कहा जाता है. ये एक ऐसी व्यवस्था पर आधारित है, जो एल्गोरिद्म (Algorithm) की तरह काम करता है और किसी शब्द के मूल और प्रत्यय को व्याकरणिक रूप से सही शब्दों और वाक्यों को बदल देता है. हालांकि पाणिनि के दो या उसके अधिक नियम एक साथ लागू हो जाते हैं और इससे विवाद पैदा होता है.
ऋषिराज पोपट ने इन सूत्रों को अलग तरीके से पारिभाषित किया है. उन्होंने कहा है कि पाणिनि का नियम शब्द के बाईं और दाईं तरफ के हिसाब से लागू होते हैं. पाणिनि का कहना था कि दाईं तरफ से लगने वाले नियम को प्रमाणिक माना जाए. जब पाणिनि के इस सूत्र पर उन्होंने काम किया तो पता चला कि पाणिनि का नियम 'लैंग्वेज मशीन' पर सटीक बैठता है और इसमें कोई अपवाद भी नजर नहीं आता है. बहरहाल उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण विभागाध्यक्ष डॉ शैलेश कुमार तिवारी ने ऋषिराज पोपट के दावों पर सवाल खड़े किए हैं.
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