हरिद्वारः हिंदू दर्शन में मनुष्य को शतायु माना गया है. इसके तहत जन्म से लेकर 25 साल की आयु तक ब्रह्मचर्य फिर 50 साल तक गृहस्थ, 50 से 75 साल की उम्र को वानप्रस्थ और बाकी बचे जीवन को संन्यास आश्रम के रूप में विभाजित किया गया है. धर्मनगरी हरिद्वार में स्थित आर्य वानप्रस्थ आश्रम विलुप्त हो चुकी वानप्रस्थ जीवन शैली से परिचय कराता है. यहां अभी भी सैकड़ों बुजुर्ग वानप्रस्थ जीवन शैली को जी कर आध्यात्मिक चिंतन कर रहे हैं.
ज्वालापुर में है वानप्रस्थ आश्रम: जी हां, ज्वालापुर क्षेत्र में करीब सौ साल पुराने आर्य वानप्रस्थ आश्रम हिंदू धर्म की वानप्रस्थ जीवन धारणा को जीवंत रखे हुए है. ऐसे में हरिद्वार का वानप्रस्थ आश्रम विलुप्त हो चुकी वानप्रस्थ जीवन शैली से परिचय कराता है. यहां साढ़े तीन सौ से ज्यादा बुजुर्ग कुटिया में रहते हैं. ये लोग रिटायरमेंट के बाद आध्यात्मिक चिंतन करते हुए अपने जीवन को नई दिशा दे रहे हैं.
नौकरी से रिटायर होकर अपनाई वानप्रस्थ जीवनशैली: हरिद्वार आर्य वानप्रस्थ आश्रम में रहने वाले बुजुर्ग यहां निराश्रित होकर नहीं रहते. इनमें से ज्यादातर बुजुर्ग संपन्न परिवारों से आते हैं. बड़े पदों पर रहकर रिटायर हो चुके हैं. ये लोग अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद बच्चों की सहमति से वानप्रस्थ जीवन शैली को अपना कर जी रहे हैं.
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95 साल पहले महात्मा नारायण स्वामी ने स्थापित किया था आर्य वानप्रस्थ आश्रम: आर्य समाज के संत महात्मा नारायण स्वामी ने साल 1928 में हरिद्वार में व्यवस्थित ढंग से वानप्रस्थ आश्रम बनाया था. यह एक साधारण वृद्धावस्था आश्रम नहीं है, बल्कि यहां रहकर बुजुर्ग ध्यान और अध्ययन के जरिए अपनी आध्यात्मिक चेतना को बढ़ाते हैं.
वेदों, ग्रंथों में है चार आश्रम का वर्णन: मान्यताओं के मुताबिक, वानप्रस्थ शब्द का अर्थ वन की ओर प्रस्थान करना होता है. महाभारत काल और पुरानी कथाओं में भी वानप्रस्थ जीवन शैली को अपनाने का वर्णन मिलता है. ऐसे में हरिद्वार का अनूठा वानप्रस्थ आश्रम प्राचीन धारणा को आज भी जीवंत रखे हुए है.