ETV Bharat / state

आईआईटी रुड़की में सेमिनार का आयोजन, GLOF से होने वाली तबाही को रोकने पर चर्चा

ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) के कारण उत्तराखंड को कई बार बड़ी आपदाओं का सामना करना पड़ा है. उत्तराखंड में आपदा बड़ी समस्या है. इस आपदाओं को कैसे कम किया जाए, इसी को लेकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी रुड़की) में एक सेमिनार का आयोजन किया जाए.

IIT Roorkee
IIT Roorkee
author img

By

Published : Jun 15, 2022, 5:49 PM IST

Updated : Jun 15, 2022, 6:58 PM IST

रुड़की: उत्तराखंड को हर साल आपदा के कारण भारी जानमाल का नुकसान झेलना पड़ता है. उत्तराखंड में आपदाओं को कैसे रोका जाए और इनसे होने वाले नुकसान को भी कैसे कम किया जाए, इसको लेकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी रुड़की) के वाटर रिसोर्स डेवलपमेंट डिपार्टमेंट की तरफ से एक सेमिनार का आयोजन किया है.

इस सेमिनार में जल संसाधन, भारतीय मानक ब्यूरो और आईआईटी रूड़की समेत उन संस्थानों के विशेषज्ञों ने भाग लिया. जो ग्लेशियर, झील, बाढ़ और भूस्खलन जैसे प्राकृतिक आपदों के कारण व समाधान पर लंबे समय से शोध कर रहे हो. सेमिनार में 2013 के केदारनाथ आपदा समेत उत्तराखंड में आई अन्य आपदा के कारणों पर विस्तार से चर्चा की गई. भविष्य में इन आपदाओं को कैसे रोका जा सके, इसको लेकर सभी ने अपने विचार रखे.

आईआईटी रुड़की में सेमिनार का आयोजन
पढ़ें- हिमालयी इलाकों में ग्लेशियर पिघलने से बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्रों में निर्माण को प्रतिबंधित करें : संसदीय पैनल

सेमिनार में हिमनद और भूस्खलन, झील के फटने के कारण और बाढ़ से संबंधित खतरों के साथ इसके मानचित्रण और मॉडलिंग के लिए मानक कोड के विकास से संबंधित वर्तमान मुद्दों और इससे जुड़े वैज्ञानिक समुदाय के विभिन्न समूहों के बीच विचारों का आदान-प्रदान किया गया. वहीं, उप महानिदेशक (मानकीकरण-द्वितीय संजय पंत ने कहा कि भारतीय हिमालयी क्षेत्र हिमनदों के पतले होने के कारण Glacial Lake Outburst Flood (जीएलओएफ) की चपेट में आते है.

इससे झील पर दबाव बढ़ता है और वो फटकर विनाशकारी बाढ़ का कारण बनता है. बीआईएस इस क्षेत्र में राष्ट्रीय मानकों को तैयार करने के रास्ते पर है, ताकि ऐसी घटनाओं के परिणामों को नियंत्रित किया जा सके और उनके वित्तीय, पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव को कम किया जा सके.

आईआईटी रुड़की के उप निदेशक प्रोफेसर मनोरंजन परिदा ने कहा कि ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) दुनिया के अधिकांश उच्च-पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका और बुनियादी ढांचे के लिए एक गंभीर और संभावित रूप से बढ़ता खतरा है. सम्मेलन मॉडलिंग दृष्टिकोण को एकीकृत करना है, जिससे जीएलओएफ ट्रिगरिंग, प्रभावित डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों की मात्रा का ठहराव और इस तरह की जलवायु से संबंधित आपदाओं के लिए अंतर्निहित सामाजिक भेद्यता के आंकलन के लिए वर्तमान और भविष्य दोनों की क्षमता कैप्चर हो सके.
पढ़ें- उत्तराखंड में पहली बार हिमनद को वर्षा आधारित नदियों से जोड़ा जाएगा, जानिए फायदा

आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर चंद्रशेखर प्रसाद ओझा ने बताया कि ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) का प्रमुख कारण बढ़ता तापमान है. हालांकि इस पर पूरी दुनिया में शोध हो रहा है कि इस तापमान को कैसे कम किया जाए, लेकिन आईआईटी रुड़की में जो सेमिनार आयोजित किया गया है, उसमें उत्तराखंड पर विशेष फोकस किया गया है कि कैसे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड के खतरे को कम किया जाए.

रुड़की: उत्तराखंड को हर साल आपदा के कारण भारी जानमाल का नुकसान झेलना पड़ता है. उत्तराखंड में आपदाओं को कैसे रोका जाए और इनसे होने वाले नुकसान को भी कैसे कम किया जाए, इसको लेकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी रुड़की) के वाटर रिसोर्स डेवलपमेंट डिपार्टमेंट की तरफ से एक सेमिनार का आयोजन किया है.

इस सेमिनार में जल संसाधन, भारतीय मानक ब्यूरो और आईआईटी रूड़की समेत उन संस्थानों के विशेषज्ञों ने भाग लिया. जो ग्लेशियर, झील, बाढ़ और भूस्खलन जैसे प्राकृतिक आपदों के कारण व समाधान पर लंबे समय से शोध कर रहे हो. सेमिनार में 2013 के केदारनाथ आपदा समेत उत्तराखंड में आई अन्य आपदा के कारणों पर विस्तार से चर्चा की गई. भविष्य में इन आपदाओं को कैसे रोका जा सके, इसको लेकर सभी ने अपने विचार रखे.

आईआईटी रुड़की में सेमिनार का आयोजन
पढ़ें- हिमालयी इलाकों में ग्लेशियर पिघलने से बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्रों में निर्माण को प्रतिबंधित करें : संसदीय पैनल

सेमिनार में हिमनद और भूस्खलन, झील के फटने के कारण और बाढ़ से संबंधित खतरों के साथ इसके मानचित्रण और मॉडलिंग के लिए मानक कोड के विकास से संबंधित वर्तमान मुद्दों और इससे जुड़े वैज्ञानिक समुदाय के विभिन्न समूहों के बीच विचारों का आदान-प्रदान किया गया. वहीं, उप महानिदेशक (मानकीकरण-द्वितीय संजय पंत ने कहा कि भारतीय हिमालयी क्षेत्र हिमनदों के पतले होने के कारण Glacial Lake Outburst Flood (जीएलओएफ) की चपेट में आते है.

इससे झील पर दबाव बढ़ता है और वो फटकर विनाशकारी बाढ़ का कारण बनता है. बीआईएस इस क्षेत्र में राष्ट्रीय मानकों को तैयार करने के रास्ते पर है, ताकि ऐसी घटनाओं के परिणामों को नियंत्रित किया जा सके और उनके वित्तीय, पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव को कम किया जा सके.

आईआईटी रुड़की के उप निदेशक प्रोफेसर मनोरंजन परिदा ने कहा कि ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) दुनिया के अधिकांश उच्च-पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका और बुनियादी ढांचे के लिए एक गंभीर और संभावित रूप से बढ़ता खतरा है. सम्मेलन मॉडलिंग दृष्टिकोण को एकीकृत करना है, जिससे जीएलओएफ ट्रिगरिंग, प्रभावित डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों की मात्रा का ठहराव और इस तरह की जलवायु से संबंधित आपदाओं के लिए अंतर्निहित सामाजिक भेद्यता के आंकलन के लिए वर्तमान और भविष्य दोनों की क्षमता कैप्चर हो सके.
पढ़ें- उत्तराखंड में पहली बार हिमनद को वर्षा आधारित नदियों से जोड़ा जाएगा, जानिए फायदा

आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर चंद्रशेखर प्रसाद ओझा ने बताया कि ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) का प्रमुख कारण बढ़ता तापमान है. हालांकि इस पर पूरी दुनिया में शोध हो रहा है कि इस तापमान को कैसे कम किया जाए, लेकिन आईआईटी रुड़की में जो सेमिनार आयोजित किया गया है, उसमें उत्तराखंड पर विशेष फोकस किया गया है कि कैसे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड के खतरे को कम किया जाए.

Last Updated : Jun 15, 2022, 6:58 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.