हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार में संतों ने उस समय आपा खो दिया, जब पुलिस-प्रशासन की टीम सिंचाई विभाग की जमीन से अतिक्रमण हटवाने के लिए गई. प्रशासन की कार्रवाई के दौरान कई संत जेसीबी के सामने खड़े हो गए. पुलिस ने जब उन्हें जबरदस्ती हटाने का प्रयास किया तो एक संत गमझे से गला घोंटने तक का प्रयास करने लगा. हालांकि जब संत नहीं माने तो पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया और बाद में छोड़ भी दिया.
पुलिस-प्रशासन की टीम ने अवैध निर्माण की तारबाड़ तोड़ दी और संतों को 15 दिन का समय देते हुए खुद अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए. यदि संतों ऐसे नहीं किया तो प्रशासन की टीम बलपूर्वक सिंचाई विभाग की जमीन से अतिक्रमण हटवाएंगी. दरअसल, हरिद्वार के बैरागी कैंप में उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की सैकड़ों बीघा जमीन है. इस जमीन पर महाकुंभ और अर्द्धकुंभ के लिए संतों को अस्थाई रूप से निर्माण करने की सुविधा दी जाती है. बीते महाकुंभ में भी बैरागी संतों को अस्थाई निर्माण करने के लिए जमीन दी गई थी, पर कुछ संतों की ओर से महाकुंभ में अस्थाई निर्माण के लिए दी गई जमीन को घेरकर तारबाड़ कर डाली. साथ ही उसमें पक्के निर्माण भी कर दिए गए थे.
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पक्के निर्माण को हटाने के लिए उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की ओर से कार्रवाई चल रही है, जिसमें पहले भी अतिक्रमण हटाया गया है, मगर अभी भी बड़ी संख्या में अवैध निर्माण खड़ा हुआ है. जिसे हटाने के लिए सिंचाई विभाग की ओर से संतों को नोटिस जारी किए गए थे. बावजूद इसके संतों ने अतिक्रमण नहीं हटाया. आखिर में सिंचाई विभाग ने हरिद्वार पुलिस-प्रशासन की मदद ली.
सोमवार 30 जनवरी को पुलिस-प्रशासन की टीम जेसीबी लेकर अतिक्रमण को ध्वस्त करने के लिए पहुंची थी, लेकिन जैसे ही जेसीबी वहां पहुंची संतों ने हंगामा करना शुरू कर दिया. अखिल भारतीय श्रीपंच दिगंबर अखाड़े के महंत रामकिशन दास और निर्मोही अखाड़े के महंत गोविंददास आदि ने अतिक्रमण हटाने पहुंची टीम का जमकर विरोध किया.
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महंत गोविंद दास महाराज ने सिंचाई विभाग के अधिकारियों और पुलिस प्रशासन के सामने ही पटके से अपना गला घोंटकर जान देने की कोशिश भी की. एक संत ने अपने कपड़ों पर आग लगाने का प्रयास किया, हालांकि, संत को कहीं माचिस नहीं मिली. कुछ संत जेसीबी के आगे आकर उसमें बैठ गया. इससे पुलिस को कई संतों में हिरासत में लेना पड़ा. हालांकि, बाद में उन्हें छोड़ दिया गया, टीम की ओर से विरोध के बावजूद तारबाड़ को तोड़ दिया गया. लेकिन संतों की मांग पर उन्हें 15 दिन में स्वयं अवैध निर्माण हटाने का समय दिया गया.