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आसान नहीं संन्यास की डगर, पास करनी होती है कड़ी परीक्षा

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Published : Apr 6, 2021, 4:03 AM IST

क्या आप जानते हैं कि किसी भी संन्यासी को संत बनने से पहले एक कठिन परीक्षा से गुजरना होता है.

आसान नहीं संन्यास की डगर
आसान नहीं संन्यास की डगर

हरिद्वार: कहते हैं कुंभ के दौरान गंगा में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं. कुंभ का नाम सामने आते ही एक तस्वीर सामने आती है. जिसके बिना कुंभ शायद अधूरा माना जाता है. वो है अखाड़ों के संत.

शरीर पर भस्म लगाए और हाथों में चिलम लिए साधु हरिद्वार महाकुंभ में धूनी रमाए दिख जाते हैं, जो मेले में आकर्षण का केंद्र होते हैं. हरिद्वार महाकुंभ के दौरान साधु-संत विशेष तरह का तप करते दिखाई देते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि संतों को भी आम छात्रों को कई वर्षों तक कोर्स करना पड़ता है. जिसके बाद उन्हें दीक्षा मिलती है. महाकुंभ के दौरान यहां का सबसे बड़ा आकर्षण होता है साधु-संत. साधुओं को देखने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी लोग आते हैं. अखाड़ों में संन्यासियों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है.

जानकारी देते बैरागी कैंप के संन्यासी.

6 विषयों का होता है कोर्स

अप्रैल की भीषण गर्मी में बैरागी कैंप में तप करते साधुओं को देखकर हर कोई ठहर जाता है. भीषण गर्मी में कोयले के घेरे में तप करते साधु-संत महाकुंभ की शोभा में चार चांद लगाते हैं. बैरागी अखाड़े से जुड़े संत रामचरण दास त्यागी बताते है कि जैसे एक आम छात्र बीटेक या कोई अन्य कोर्स करता है. ठीक उसी प्रकार से वैष्णव संत भी तप के माध्यम से 18 वर्षो का कोर्स करते हैं. जिसमे 6 विषय होते हैं. जो तीन-तीन साल के होते है.

Haridwar Kumbh
साधु-संतों को भी देनी होती है परीक्षा.

18 साल पूरे करने के बाद ही तप पूरा होता है. संत रामचरण के मुताबिक तपस्या से ही यह सृष्टि चल रही है. बैरागी अखाड़े के संत रघुवीर दास बताते है कि तप में लगी धुनी की विशेषता है कि यह तपस्या माघ शुक्ल पंचमी से शुरू होकर दशहरा तक चलती है. रामानंदाचार्य के वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी पहले 3 साल में 5 धूनी लगा कर तपस्या करता है. फिर अगले 3 साल 7 धूनी, उससे अगले 3 साल 12 धूनी और आखिर में 84 धूनी लगाकर तपस्या करता है. आखिर में संत खप्पर (सिर पर धूनी रख कर) लगाकर 3-3 साल तपस्या करता है. जिसके करने के बाद 18 साल का कोर्स पूरा होता है.

Haridwar Kumbh
हरिद्वार में तपस्या करते साधु.

ये भी पढ़ें: महाकुंभ 2021: नागा साधुओं की धूनी है खास, जानिए इससे जुड़े रहस्य

रहस्यों से भरी होती है नागा साधुओं की जिंदगी

नागा साधुओं की जिंदगी कठिनाईयों से भरी हुई होती है. आम इंसान ऐसी जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता. इनके बारे में हर बात निराली होती है. जटाओं से लेकर शरीर पर भस्‍म तक, इनके जैसा कोई और नहीं दिखता. ये इतना कठिन जीवन जीते हैं जिसके बारे में आम लोग सोचते तक नहीं. नागा साधुओं का जीवन सबसे अलग होता है. इन लोगों को दुनिया में क्‍या हो रहा है, इस बारे में इन्‍हें कोई मतलब नहीं होता.

कुंभ में अखाड़ों का महत्व

शास्त्रों की विद्या रखने वाले साधुओं के अखाड़े का कुंभ मेले में काफी महत्व है. अखाड़ों की स्थापना आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को बचाने के लिए की थी. अखाड़ों के सदस्य शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण कहे जाते हैं. नागा साधु भी इन्हीं अखाड़ों का हिस्सा होते हैं. सबसे बड़ा जूना अखाड़ा, फिर निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वाण अखाड़ा, अटल अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा शामिल हैं.

Haridwar Kumbh
हरिद्वार महाकुंभ में भक्ति के रंग.

शुरुआत में प्रमुख अखाड़ों की संख्या केवल 4 थी, लेकिन वैचारिक मतभेदों के चलते बंटवारा होकर ये संख्या 13 पहुंच गई है. इन अखाड़ों के अपने प्रमुख और अपने नियम-कानून होते हैं. कुंभ मेले में अखाड़ों की शान देखने ही लायक होती है. ये अखाड़े केवल शाही स्नान के दिन ही कुंभ में भाग लेते हैं और जुलूस निकालकर नदी तट पर पहुंचते हैं. अखाड़ों के महामंडलेश्‍वर और श्री महंत रथों पर साधुओं और नागा बाबाओं के पूरे जुलूस के पीछे-पीछे शाही स्नान के लिए निकलते हैं.

एक महीने तक चलेगा महाकुंभ मेला

उत्तराखंड सरकार के मुताबिक एक अप्रैल से 30 अप्रैल तक महाकुंभ का आधिकारिक आयोजन हो रहा है. देश और विदेश से भारी तादात में स्नान करने के लिए श्रद्धालु यहां पर आते हैं. पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं.

कब-कब शाही स्नान

कुंभ मेले की अवधि कम करने के साथ ही शाही स्नान की संख्या में भी कमी की गई है. पहले जहां कुंभ मेले के दौरान 4 शाही स्नान होते थे. इस बार घटाकर 3 कर दिया गया है. हरिद्वार महाकुंभ मेला 2021 के दौरान अप्रैल के महीने में 3 शाही स्नान होंगे.

  • पहला शाही स्नान 12 अप्रैल (सोमवती अमावस्या).
  • दूसरा शाही स्नान 14 अप्रैल (बैसाखी).
  • तीसरा शाही स्नान 27 अप्रैल (पूर्णिमा के दिन).

हरिद्वार: कहते हैं कुंभ के दौरान गंगा में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं. कुंभ का नाम सामने आते ही एक तस्वीर सामने आती है. जिसके बिना कुंभ शायद अधूरा माना जाता है. वो है अखाड़ों के संत.

शरीर पर भस्म लगाए और हाथों में चिलम लिए साधु हरिद्वार महाकुंभ में धूनी रमाए दिख जाते हैं, जो मेले में आकर्षण का केंद्र होते हैं. हरिद्वार महाकुंभ के दौरान साधु-संत विशेष तरह का तप करते दिखाई देते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि संतों को भी आम छात्रों को कई वर्षों तक कोर्स करना पड़ता है. जिसके बाद उन्हें दीक्षा मिलती है. महाकुंभ के दौरान यहां का सबसे बड़ा आकर्षण होता है साधु-संत. साधुओं को देखने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी लोग आते हैं. अखाड़ों में संन्यासियों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है.

जानकारी देते बैरागी कैंप के संन्यासी.

6 विषयों का होता है कोर्स

अप्रैल की भीषण गर्मी में बैरागी कैंप में तप करते साधुओं को देखकर हर कोई ठहर जाता है. भीषण गर्मी में कोयले के घेरे में तप करते साधु-संत महाकुंभ की शोभा में चार चांद लगाते हैं. बैरागी अखाड़े से जुड़े संत रामचरण दास त्यागी बताते है कि जैसे एक आम छात्र बीटेक या कोई अन्य कोर्स करता है. ठीक उसी प्रकार से वैष्णव संत भी तप के माध्यम से 18 वर्षो का कोर्स करते हैं. जिसमे 6 विषय होते हैं. जो तीन-तीन साल के होते है.

Haridwar Kumbh
साधु-संतों को भी देनी होती है परीक्षा.

18 साल पूरे करने के बाद ही तप पूरा होता है. संत रामचरण के मुताबिक तपस्या से ही यह सृष्टि चल रही है. बैरागी अखाड़े के संत रघुवीर दास बताते है कि तप में लगी धुनी की विशेषता है कि यह तपस्या माघ शुक्ल पंचमी से शुरू होकर दशहरा तक चलती है. रामानंदाचार्य के वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी पहले 3 साल में 5 धूनी लगा कर तपस्या करता है. फिर अगले 3 साल 7 धूनी, उससे अगले 3 साल 12 धूनी और आखिर में 84 धूनी लगाकर तपस्या करता है. आखिर में संत खप्पर (सिर पर धूनी रख कर) लगाकर 3-3 साल तपस्या करता है. जिसके करने के बाद 18 साल का कोर्स पूरा होता है.

Haridwar Kumbh
हरिद्वार में तपस्या करते साधु.

ये भी पढ़ें: महाकुंभ 2021: नागा साधुओं की धूनी है खास, जानिए इससे जुड़े रहस्य

रहस्यों से भरी होती है नागा साधुओं की जिंदगी

नागा साधुओं की जिंदगी कठिनाईयों से भरी हुई होती है. आम इंसान ऐसी जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता. इनके बारे में हर बात निराली होती है. जटाओं से लेकर शरीर पर भस्‍म तक, इनके जैसा कोई और नहीं दिखता. ये इतना कठिन जीवन जीते हैं जिसके बारे में आम लोग सोचते तक नहीं. नागा साधुओं का जीवन सबसे अलग होता है. इन लोगों को दुनिया में क्‍या हो रहा है, इस बारे में इन्‍हें कोई मतलब नहीं होता.

कुंभ में अखाड़ों का महत्व

शास्त्रों की विद्या रखने वाले साधुओं के अखाड़े का कुंभ मेले में काफी महत्व है. अखाड़ों की स्थापना आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को बचाने के लिए की थी. अखाड़ों के सदस्य शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण कहे जाते हैं. नागा साधु भी इन्हीं अखाड़ों का हिस्सा होते हैं. सबसे बड़ा जूना अखाड़ा, फिर निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वाण अखाड़ा, अटल अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा शामिल हैं.

Haridwar Kumbh
हरिद्वार महाकुंभ में भक्ति के रंग.

शुरुआत में प्रमुख अखाड़ों की संख्या केवल 4 थी, लेकिन वैचारिक मतभेदों के चलते बंटवारा होकर ये संख्या 13 पहुंच गई है. इन अखाड़ों के अपने प्रमुख और अपने नियम-कानून होते हैं. कुंभ मेले में अखाड़ों की शान देखने ही लायक होती है. ये अखाड़े केवल शाही स्नान के दिन ही कुंभ में भाग लेते हैं और जुलूस निकालकर नदी तट पर पहुंचते हैं. अखाड़ों के महामंडलेश्‍वर और श्री महंत रथों पर साधुओं और नागा बाबाओं के पूरे जुलूस के पीछे-पीछे शाही स्नान के लिए निकलते हैं.

एक महीने तक चलेगा महाकुंभ मेला

उत्तराखंड सरकार के मुताबिक एक अप्रैल से 30 अप्रैल तक महाकुंभ का आधिकारिक आयोजन हो रहा है. देश और विदेश से भारी तादात में स्नान करने के लिए श्रद्धालु यहां पर आते हैं. पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं.

कब-कब शाही स्नान

कुंभ मेले की अवधि कम करने के साथ ही शाही स्नान की संख्या में भी कमी की गई है. पहले जहां कुंभ मेले के दौरान 4 शाही स्नान होते थे. इस बार घटाकर 3 कर दिया गया है. हरिद्वार महाकुंभ मेला 2021 के दौरान अप्रैल के महीने में 3 शाही स्नान होंगे.

  • पहला शाही स्नान 12 अप्रैल (सोमवती अमावस्या).
  • दूसरा शाही स्नान 14 अप्रैल (बैसाखी).
  • तीसरा शाही स्नान 27 अप्रैल (पूर्णिमा के दिन).
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