हरिद्वार: आज रंभा तृतीया है, हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रंभा तृतीया के रूप में मनाया जाता है. रंभा तृतीया के दिन सभी विवाहित महिलाएं पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. आज के दिन सुहागिनें भगवान शिव और पार्वती की पूजा करते हैं.
दाम्पत्य जीवन सुखमय बनाने के लिए महिलाएं रखती है व्रत
पूजा का उद्देश्य होता है कि उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय हो और उन्हें भगवान गणेश की तरह बुद्धिमान संतान की प्राप्ति हो. हिंदू मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में एक रत्न रंभा भी थी.
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समुद्र मंथन के दौरान हुई थी रंभा की उत्पत्ति
ऐसा माना जाता है कि स्वर्गलोक की अप्सरा रंभा अद्वितीय सुंदरी हैं. माता लक्ष्मी के साथ रंभा की उत्पत्ति हुई थी. लक्ष्मी के समान ही इनका वैभव है. कई साधक रंभा के नाम का जाप करके सम्मोहन सिद्धि प्राप्त करते हैं.
पंडित प्रतीक मिश्र पुरी ने बताई व्रत की मान्यता
पंडित प्रतीक मिश्र पुरी बताते हैं कि रंभा तृतीया के दिन विवाहित महिलाओं को चूड़ियों के जोड़े की पूजा करनी चाहिए. इस दिन चूड़ियों के जोड़े को स्वर्ग लोक की अप्सरा रंभा का स्वरूप मानकर पूजा जाता है. शास्त्रों के अनुसार रंभा तृतीया का व्रत अप्सरा रंभा ने सौभाग्य प्राप्त करने के लिए किया था. इसलिए इसे 'रंभा तृतीया' कहा जाता है. रंभा तृतीया का व्रत सभी सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और बुद्धिमान संतान प्राप्त करने के लिए करती हैं.
रंभा तृतीया के व्रत को कुंवारी कन्याएं भी मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए करती हैं. मान्यताओं के अनुसार जो भी कुंवारी कन्याएं पूरे श्रद्धा भाव से रंभा तृतीया का व्रत करती है, उन्हें मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है. इस व्रत को पुरुष भी रख सकते हैं.