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रक्षाबंधन पर्व: पुरोहित ने मां गंगा में घंटों बैठकर की रक्षा सूत्र की पूजा, जानें क्या है महत्व

हरिद्वार में रक्षाबंधन के दिन सभी तीर्थ पुरोहित कई घंटों तक एक साथ मां गंगा में खड़े होकर मंत्रोच्चारण और रक्षा सूत्र (जनेऊ) की विशेष पूजा करतें हैं. जिसे पूरे साल धारण करते हैं. माना जाता है कि यही रक्षा सूत्र बाह्मणों और इसे धारण करने वालों की रक्षा करता है.

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रक्षा सूत्र
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Published : Aug 3, 2020, 5:57 PM IST

Updated : Aug 3, 2020, 7:04 PM IST

हरिद्वारः पूरे देशभर में रक्षाबंधन का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है, लेकिन हरिद्वार में रक्षाबंधन अलग तरह से मनाई जाती है. यहां तीर्थ पुरोहित गंगा घाटों में बैठकर रक्षा सूत्र (जनेऊ) और सूर्य की विशेष पूजा करते हैं. इस रक्षा सूत्र को पुरोहित समेत अन्य लोग धारण करते हैं. इतना ही नहीं श्राद्ध के बाद तीर्थ पुरोहित समाज अपने पितरों को आज के दिन ही तर्पण भी देते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.

हरिद्वार में रक्षाबंधन के साथ यहां के तीर्थ पुरोहितों की ओर से सावनी उपाक्रम का त्योहार भी मनाया जाता है. इस दिन सभी तीर्थ पुरोहित कई घंटों तक एक साथ मां गंगा में खड़े होकर मंत्रोच्चारण और पूजा-पाठ करते हैं. मान्यता है कि सावनी उपाक्रम वाले दिन तीर्थ पुरोहितों की ओर से गंगा में सामूहिक स्नान और पूजा-पाठ करने से जग का कल्याण व समस्त पापों का विनाश होता है. सामूहिक स्नान के दौरान सभी युवा और बुजुर्ग संकल्प लेकर रक्षा सूत्र की पूजा भी करते हैं.

पुरोहित ने मां गंगा में घंटों बैठकर की रक्षा सूत्र की पूजा.

ये भी पढ़ेंः आज है राखी का त्योहार, नैनीताल की दीप्ति ने फौजी भाइयों के लिए भेजा 'डोरी में प्यार'

तीर्थ पुरोहित श्रीकांत वशिष्ठ का कहना है कि हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार आज के दिन ब्राह्मण समाज की ओर से इस पर्व को हिमाद्री संकल्प के साथ प्रारंभ किया जाता है. सभी तीर्थ पुरोहित अपने पितरों का तर्पण और गंगा में स्नान करते हैं. गंगा में पहले संकल्प लिया जाता है. इस कार्य में युवा भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. इस पूजा में रक्षा सूत्र (जनेऊ) की पूजा होती है. जिसे पूरे साल धारण करते हैं. माना जाता है कि यही रक्षा सूत्र बाह्मणों और इसे धारण करने वालों की रक्षा करता है.

क्या है रक्षा सूत्र (जनेऊ)-
अकसर आपने कई लोगों को बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे देखा होगा. इस धागे को ही जनेऊ कहा जाता है. यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है. जनेऊ में मुख्‍यरूप से तीन धागे होते हैं. प्रथम यह तीन सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं.

द्वितीय यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और तृतीय यह सत्व, रज और तम का प्रतीक है. जबकि, चतुर्थ यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है. वहीं, पंचम यह तीन आश्रमों का प्रतीक है. संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है. रक्षा सूत्र यज्ञोपवीत की लंबाई 96 अंगुल होती है.

हरिद्वारः पूरे देशभर में रक्षाबंधन का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है, लेकिन हरिद्वार में रक्षाबंधन अलग तरह से मनाई जाती है. यहां तीर्थ पुरोहित गंगा घाटों में बैठकर रक्षा सूत्र (जनेऊ) और सूर्य की विशेष पूजा करते हैं. इस रक्षा सूत्र को पुरोहित समेत अन्य लोग धारण करते हैं. इतना ही नहीं श्राद्ध के बाद तीर्थ पुरोहित समाज अपने पितरों को आज के दिन ही तर्पण भी देते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.

हरिद्वार में रक्षाबंधन के साथ यहां के तीर्थ पुरोहितों की ओर से सावनी उपाक्रम का त्योहार भी मनाया जाता है. इस दिन सभी तीर्थ पुरोहित कई घंटों तक एक साथ मां गंगा में खड़े होकर मंत्रोच्चारण और पूजा-पाठ करते हैं. मान्यता है कि सावनी उपाक्रम वाले दिन तीर्थ पुरोहितों की ओर से गंगा में सामूहिक स्नान और पूजा-पाठ करने से जग का कल्याण व समस्त पापों का विनाश होता है. सामूहिक स्नान के दौरान सभी युवा और बुजुर्ग संकल्प लेकर रक्षा सूत्र की पूजा भी करते हैं.

पुरोहित ने मां गंगा में घंटों बैठकर की रक्षा सूत्र की पूजा.

ये भी पढ़ेंः आज है राखी का त्योहार, नैनीताल की दीप्ति ने फौजी भाइयों के लिए भेजा 'डोरी में प्यार'

तीर्थ पुरोहित श्रीकांत वशिष्ठ का कहना है कि हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार आज के दिन ब्राह्मण समाज की ओर से इस पर्व को हिमाद्री संकल्प के साथ प्रारंभ किया जाता है. सभी तीर्थ पुरोहित अपने पितरों का तर्पण और गंगा में स्नान करते हैं. गंगा में पहले संकल्प लिया जाता है. इस कार्य में युवा भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. इस पूजा में रक्षा सूत्र (जनेऊ) की पूजा होती है. जिसे पूरे साल धारण करते हैं. माना जाता है कि यही रक्षा सूत्र बाह्मणों और इसे धारण करने वालों की रक्षा करता है.

क्या है रक्षा सूत्र (जनेऊ)-
अकसर आपने कई लोगों को बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे देखा होगा. इस धागे को ही जनेऊ कहा जाता है. यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है. जनेऊ में मुख्‍यरूप से तीन धागे होते हैं. प्रथम यह तीन सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं.

द्वितीय यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और तृतीय यह सत्व, रज और तम का प्रतीक है. जबकि, चतुर्थ यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है. वहीं, पंचम यह तीन आश्रमों का प्रतीक है. संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है. रक्षा सूत्र यज्ञोपवीत की लंबाई 96 अंगुल होती है.

Last Updated : Aug 3, 2020, 7:04 PM IST
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