हरिद्वारः किसी भी धार्मिक तीर्थ स्थल पर श्रद्धालु का तीर्थाटन तभी सफल माना जाता है, जब श्रद्धालु पुरोहित से पूजा कर उसे दान दक्षिणा से संतुष्ट कर ले. ऐसा माना जाता है कि भारत में मौजूद सभी तीर्थ स्थानों पर जो तीर्थ पुरोहित धार्मिक क्रिया एवं कर्मकांड कराने के लिए मौजूद हैं उनको भगवान श्रीराम ने स्वयं तीर्थ स्थानों पर नियुक्त किया है. कहा जाता है कि तीर्थ पुरोहित बनाने के पीछे भगवान श्रीराम से जुड़ी एक बहुत ही रोचक घटना जुड़ी हुई है.
मान्यता के अनुसार लंका नरेश रावण का वध करने के बाद जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम पुनः अयोध्या पहुंचे तो उसके बाद वह तीर्थाटन पर निकले, क्योंकि भगवान श्रीराम पर ब्राह्मण रावण के वध करने के कारण ब्रह्म हत्या का पाप लगा हुआ था.
इसीलिए तीर्थ स्थानों पर मौजूद ब्राह्मणों ने उन्हें श्राद्ध एवं तर्पण कर्मकांड करवाने से मना कर दिया. जिसके बाद श्रीराम ने तीर्थ स्थलों पर मौजूद ब्रह्मचारी ब्राह्मण बालकों से श्राद्ध तर्पण की क्रिया संपन्न कराई, लेकिन ऐसा करने के कारण ब्रह्मचारी बालक ब्राह्मणों को उनके परिवार वालों ने अपनाने से मना कर दिया एवं घरों से बाहर निकाल दिया.
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जिसके बाद जब यह ब्रह्मचारी ब्राह्मण बालक अपनी इस दुविधा को लेकर भगवान श्रीराम के पास पहुंचे तो उन्होंने सभी ब्राह्मण बालकों को विभिन्न विभिन्न तीर्थ स्थलों पर नियुक्त कर दिया. जिसके बाद से ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीराम के आशीर्वाद से ही यह सभी ब्राह्मण बालक तीर्थ स्थानों के तीर्थ पुरोहित के रूप में पहचाने जाने लगे.
तीर्थ स्थानों पर तीर्थ पुरोहितों की महत्ता बहुत ही महत्वपूर्ण होती है. ऐसा माना जाता है कि बिना तीर्थ पुरोहितों के दर्शन किए एवं उनके द्वारा कराए गए पूजा-पाठ और उनको दान दक्षिणा दिए बिना किसी भी तीर्थ स्थल की यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती.