हरिद्वार: जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के देहांत के बाद उनके शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के शंकराचार्य पद पर आसीन होने के बाद अखाड़ा परिषद लगातार उनका विरोध कर रहा है. अभी हाल ही में 17 अक्टूबर को जोशीमठ में हुए उनके अभिनंदन समारोह का भी अखाड़ा परिषद ने विरोध किया. जिसके बाद आज शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के मठ द्वारा एक प्रेस वार्ता की गई. जिसमें शंकराचार्य मठ के सचिव स्वामी सुबोधानंद (Math secretary Swami Subodhananda) ने शंकराचार्य विवाद पर मठ का पक्ष रखा.
स्वामी सुबोधानंद ने पूर्व शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती द्वारा शंकराचार्य पद पर आसीन होने के बाद से उठे विवाद पर मठ पक्ष रखा गया. उन्होंने कहा स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को पूरे विधि-विधान और सभी नियमों का पालन करते हुए शंकराचार्य बनाया गया है. उन्होंने कहा पूर्व में ऐसा कभी नहीं हुआ है कि अखाड़ों द्वारा किसी को शंकराचार्य बनाया गया हो.
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स्वामी सुबोधानंद ने अपने गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का उदाहरण देते हुए बताया कि उन्हें भी उनके गुरु द्वारा शिक्षा प्रदान की गई थी ना की किसी अखाड़े द्वारा. उन्होंने बताया पूर्व शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा लिखी गई वसीयत में इसका जिक्र किया गया है, जो कि उनके सामने ही लिखी गई थी. उन्होंने कहा जिस व्यक्ति को शंकराचार्य बनाना होता है उसकी शिक्षा बचपन से ही शुरू हो जाती है.
बता दें यह मामला 2020 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. याचिका में कहा गया है कि यह सुनिश्चित करने का एक जानबूझकर प्रयास किया गया है कि इस अदालत के समक्ष कार्यवाही निष्फल हो जाए और एक व्यक्ति जो योग्य नहीं है, अपात्र है. वह अनधिकृत रूप से पद ग्रहण कर लें. याचिका में बताया गया कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ बदरीनाथ के शंकराचार्य के रूप में अभिषेक से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट अंतरिम आदेश से रोके. उनके द्वारा गलत तरीके से उत्तराधिकारी घोषित किया गया है.
इसके लिए आवश्यक दस्तावेज दाखिल किए जा रहे हैं. आरोप लगाया कि नए शंकराचार्य की नियुक्ति पूरी तरह से झूठी है, क्योंकि यह नियुक्ति की स्वीकृत प्रक्रिया का पूर्ण उल्लंघन है. उधर, सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सनातन धर्म के विद्वानों ने पीठ के शंकराचार्य को लेकर चिंता जताई है. हिंदू विद्वानों के अनुसार शंकराचार्य के बिना कोई पीठ नहीं रह सकती. दरअसल, शंकराचार्य हिंदू धर्म की अद्वैत वेदांत परंपरा में मठों के प्रमुखों को कहा जाता है.