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चैत्र नवरात्रि 2022: चौथे दिन कीजिए मां सुरेश्वरी देवी के दर्शन, यहीं की थी भगवान इंद्र ने तपस्या

आज चैत्र नवरात्रि 2022 का चौथा दिन है. आज आपको हरिद्वार के घने जंगलों के बीच स्थापित मां सुरेश्वरी देवी की सिद्धपीठ की महत्ता के बारे में बताएंगे. कहा जाता है कि इस मंदिर की गणना देश के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में की जाती है, जिसका उल्लेख स्कन्द पुराण के केदारखंड में भी मिलता है.

Siddhpeeth Maa Sureshwari Devi
सिद्धपीठ मां सुरेश्वरी देवी
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Published : Apr 5, 2022, 5:57 AM IST

हरिद्वार: चैत्र मास की नवरात्रि में ईटीवी भारत की टीम आपको गंगा नगरी हरिद्वार में स्थापित मां के अलग अलग रूपों के दर्शन करा रही है. ईटीवी भारत की टीम चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन आपको हरिद्वार के घने जंगलों के बीच स्थापित मां सुरेश्वरी देवी के सिद्धपीठ के दर्शन कराने जा रही है. हरिद्वार शहर से बाहर औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल के पास सूरकूट पर्वत के बियाबान जंगलों के बीच स्थित है मां दुर्गा व मां भगवती का संयुक्त स्थान, जो विश्व में सुरेश्वरी देवी मंदिर के नाम से विख्यात है.

वैसे तो राजाजी टाइगर रिजर्व के बीच स्थित अन्य लगभग सभी मंदिरों में जाने पर रोक है. लेकिन पौराणिक महत्व के इस मां सुरेश्वरी देवी के मंदिर में आज भी लोग सहजता से आते जाते हैं. हालांकि रात में मंदिर में रुकने की अनुमति चंद लोगों को छोड़ किसी को नहीं है. यहां आने-जाने वालों पर राजाजी टाइगर रिजर्व प्रशासन की कड़ी नजर रहती है.

चौथे दिन कीजिए मां सुरेश्वरी देवी के दर्शन.

सुरेश्वरी मंदिर हरिद्वार में स्थित एक प्राचीन मंदिर है. यह मंदिर देवी दुर्गा और देवी भगवती को समर्पित इकलौता मंदिर बताया जाता है. इस मंदिर को मां की एक सिद्धपीठ के रूप में भी जाना जाता है. भेल रानीपुर के घने जंगलों में सिद्धपीठ मां सुरेश्वरी देवी सूरकूट पर्वत पर कई सौ सालों से विराजमान हैं. इस मंदिर का अपना ही पौराणिक महत्व है. इस मंदिर की गणना देश के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में की जाती है, जिसका उल्लेख स्कन्द पुराण के केदारखंड में भी मिलता है.

भगवान इंद्र ने यहीं की थी तपस्या: मान्यता है कि सूरकूट पर्वत के इस स्थान पर भगवान इंद्र ने कठोर तप किया था. भगवान विष्णु द्वारा इंद्र को बताया गया था कि अगर आप गंगा जी के पश्चिमी भाग में स्थित सूरकूट पर्वत पर जहां महामाया देवी भगवती विराजती हैं, उस स्थान पर तप करें, तो आपकी परेशानी दूर होगी. उन्होंने यहां पर तप किया था, जिसके बाद उनका खोया राजपाट वापस मिला था. इंद्र का नाम सुरेश था. इसी कारण इस स्थान का नाम सुरेश्वरी देवी पड़ा.
पढ़ें- माता मनसा देवी के मंदिर में जरूर करें चरण पादुका के दर्शन, मन्नत जरूर पूरी होगी

देवी की तपस्थली: बताया जाता है कि जहां-जहां देवी ने तप किया वह स्थान सिद्धपीठ कहलाए. जहां पर देवी के अंग गिरे थे, वह शक्तिपीठ कहलाए. इस पौराणिक स्थान पर मां भगवती ने तप किया था इसीलिए इसे देवी का सिद्धपीठ कहा जाता है.

कुष्ठ या चर्म रोग से मिलती है मुक्ति: भगवान इंद्र ने जब यहां मां के लिए तपस्या की थी तो भगवान इंद्र ने इस स्थान को वरदान दिया था कि कोई भी कुष्ठ या चर्म रोग से पीड़ित व्यक्ति यदि यहां आकर पूजा अर्चना करता है, तो उसे इन रोगों से मुक्ति मिल जाएगी.

यहां की मान्यता: माना जाता है कि पूरी श्रद्धा भाव से आकर मां के दर्शन करने वाले भक्तों के कष्टों को मां सुरेश्वरी देवी सहज दूर कर देती हैं. पुत्र की कामना करने वालों को पुत्र और धन की कामना करने वालो को धन, मोक्ष चाहने वालों को मोक्ष प्राप्ति कराती हैं. यही कारण है कि मां सुरेश्वरी देवी के दर्शन करने के लिए श्रृद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

नवरात्रि में सजता है दरबार: वैसे तो मां सुरेश्वरी देवी के मंदिर में पूरे साल ही श्रद्धालु मत्था टेकने पहुंचते हैं लेकिन नवरात्रों में इस मंदिर में मां के विशेष श्रृंगार के साथ पूजन होता है. नवरात्रि में अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी के दिन माँ के दर्शन का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि इस दिन देवता भी मां भगवती के दर्शन करने के लिए आते हैं.
पढ़ें- उत्तराखंड में चैत्र नवरात्रि पर मंदिरों में रौनक, मां भवानी से मन्नतें मांग रहे श्रद्धालु

दिख जाती है मां की सवारी: बताया जाता है की मां के इस स्थान की रक्षा स्वयं मां की सवारी कहा जाने वाला एक शेर करता है, जो इस मंदिर के आस पास ही कई बार देखा गया लेकिन आज तक के इतिहास में कभी इस शेर ने मंदिर आने-जाने वालों पर किसी तरह का कोई हमला नहीं किया.

क्या कहते हैं संचालक: सिद्धपीठ मां सुरेश्वरी देवी समिति के महामंत्री आशीष मारवाड़ी का कहना है कि इस सिद्धपीठ की मान्यता को न्यायालय ने भी माना है. शाम पांच बजे तक उसी वजह से उसे खोलने की अनुमति दी गई है. वे बताते हैं कि घने जंगल के बीच स्थापित होने के कारण जंगली जानवरों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन यह जानवर कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते. मां की सवारी बब्बर शेर को भी मंदिर के आस-पास देखा गया है. नवरात्रि में मां का रोजाना भंडारा चलता है. नवमी के दिन यहां विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है.

क्या कहते हैं श्रद्धालु: हरिद्वार से आए प्रदीप का कहना है कि प्रत्येक नवरात्रि में मां भगवती के दर्शन करने यहां पर आते हैं. यहां की मान्यता है कि आसपास के जिलों से भी बड़ी संख्या में लोग यहां मां के दर पर आकर मत्था टेकते हैं. यहां पर जंगल में जानवर तो बहुत देखे पर मां की ऐसी शक्ति और कृपा है कि कभी किसी पर जानवर ने हमला नहीं किया.

कैसे पहुंचें इस सिद्धपीठ तक: मां सुरेश्वरी के इस स्थान तक आने के लिए ऑटो, ई-रिक्शा या अपनी सवारी से आने की व्यवस्था है. रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से इसकी दूरी करीब 12 किलोमीटर है. ई-रिक्शा या ऑटो वाले यहां आने के लिए करीब ₹200-₹250 लेते हैं. यदि आप अपनी सवारी से यहां आना चाहते हैं तो रानीपुर भेल के सेक्टर पांच से होते हुए राजाजी टाइगर रिजर्व में स्थित मां सुरेश्वरी देवी के मंदिर आसानी से पहुंच सकते हैं. आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि मंदिर में आने का समय सुबह आठ से शाम साढ़े पांच तक का रखा गया है. इसके बाद यहां के लिए किसी को प्रवेश नहीं दिया जाता.

हरिद्वार: चैत्र मास की नवरात्रि में ईटीवी भारत की टीम आपको गंगा नगरी हरिद्वार में स्थापित मां के अलग अलग रूपों के दर्शन करा रही है. ईटीवी भारत की टीम चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन आपको हरिद्वार के घने जंगलों के बीच स्थापित मां सुरेश्वरी देवी के सिद्धपीठ के दर्शन कराने जा रही है. हरिद्वार शहर से बाहर औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल के पास सूरकूट पर्वत के बियाबान जंगलों के बीच स्थित है मां दुर्गा व मां भगवती का संयुक्त स्थान, जो विश्व में सुरेश्वरी देवी मंदिर के नाम से विख्यात है.

वैसे तो राजाजी टाइगर रिजर्व के बीच स्थित अन्य लगभग सभी मंदिरों में जाने पर रोक है. लेकिन पौराणिक महत्व के इस मां सुरेश्वरी देवी के मंदिर में आज भी लोग सहजता से आते जाते हैं. हालांकि रात में मंदिर में रुकने की अनुमति चंद लोगों को छोड़ किसी को नहीं है. यहां आने-जाने वालों पर राजाजी टाइगर रिजर्व प्रशासन की कड़ी नजर रहती है.

चौथे दिन कीजिए मां सुरेश्वरी देवी के दर्शन.

सुरेश्वरी मंदिर हरिद्वार में स्थित एक प्राचीन मंदिर है. यह मंदिर देवी दुर्गा और देवी भगवती को समर्पित इकलौता मंदिर बताया जाता है. इस मंदिर को मां की एक सिद्धपीठ के रूप में भी जाना जाता है. भेल रानीपुर के घने जंगलों में सिद्धपीठ मां सुरेश्वरी देवी सूरकूट पर्वत पर कई सौ सालों से विराजमान हैं. इस मंदिर का अपना ही पौराणिक महत्व है. इस मंदिर की गणना देश के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में की जाती है, जिसका उल्लेख स्कन्द पुराण के केदारखंड में भी मिलता है.

भगवान इंद्र ने यहीं की थी तपस्या: मान्यता है कि सूरकूट पर्वत के इस स्थान पर भगवान इंद्र ने कठोर तप किया था. भगवान विष्णु द्वारा इंद्र को बताया गया था कि अगर आप गंगा जी के पश्चिमी भाग में स्थित सूरकूट पर्वत पर जहां महामाया देवी भगवती विराजती हैं, उस स्थान पर तप करें, तो आपकी परेशानी दूर होगी. उन्होंने यहां पर तप किया था, जिसके बाद उनका खोया राजपाट वापस मिला था. इंद्र का नाम सुरेश था. इसी कारण इस स्थान का नाम सुरेश्वरी देवी पड़ा.
पढ़ें- माता मनसा देवी के मंदिर में जरूर करें चरण पादुका के दर्शन, मन्नत जरूर पूरी होगी

देवी की तपस्थली: बताया जाता है कि जहां-जहां देवी ने तप किया वह स्थान सिद्धपीठ कहलाए. जहां पर देवी के अंग गिरे थे, वह शक्तिपीठ कहलाए. इस पौराणिक स्थान पर मां भगवती ने तप किया था इसीलिए इसे देवी का सिद्धपीठ कहा जाता है.

कुष्ठ या चर्म रोग से मिलती है मुक्ति: भगवान इंद्र ने जब यहां मां के लिए तपस्या की थी तो भगवान इंद्र ने इस स्थान को वरदान दिया था कि कोई भी कुष्ठ या चर्म रोग से पीड़ित व्यक्ति यदि यहां आकर पूजा अर्चना करता है, तो उसे इन रोगों से मुक्ति मिल जाएगी.

यहां की मान्यता: माना जाता है कि पूरी श्रद्धा भाव से आकर मां के दर्शन करने वाले भक्तों के कष्टों को मां सुरेश्वरी देवी सहज दूर कर देती हैं. पुत्र की कामना करने वालों को पुत्र और धन की कामना करने वालो को धन, मोक्ष चाहने वालों को मोक्ष प्राप्ति कराती हैं. यही कारण है कि मां सुरेश्वरी देवी के दर्शन करने के लिए श्रृद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

नवरात्रि में सजता है दरबार: वैसे तो मां सुरेश्वरी देवी के मंदिर में पूरे साल ही श्रद्धालु मत्था टेकने पहुंचते हैं लेकिन नवरात्रों में इस मंदिर में मां के विशेष श्रृंगार के साथ पूजन होता है. नवरात्रि में अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी के दिन माँ के दर्शन का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि इस दिन देवता भी मां भगवती के दर्शन करने के लिए आते हैं.
पढ़ें- उत्तराखंड में चैत्र नवरात्रि पर मंदिरों में रौनक, मां भवानी से मन्नतें मांग रहे श्रद्धालु

दिख जाती है मां की सवारी: बताया जाता है की मां के इस स्थान की रक्षा स्वयं मां की सवारी कहा जाने वाला एक शेर करता है, जो इस मंदिर के आस पास ही कई बार देखा गया लेकिन आज तक के इतिहास में कभी इस शेर ने मंदिर आने-जाने वालों पर किसी तरह का कोई हमला नहीं किया.

क्या कहते हैं संचालक: सिद्धपीठ मां सुरेश्वरी देवी समिति के महामंत्री आशीष मारवाड़ी का कहना है कि इस सिद्धपीठ की मान्यता को न्यायालय ने भी माना है. शाम पांच बजे तक उसी वजह से उसे खोलने की अनुमति दी गई है. वे बताते हैं कि घने जंगल के बीच स्थापित होने के कारण जंगली जानवरों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन यह जानवर कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते. मां की सवारी बब्बर शेर को भी मंदिर के आस-पास देखा गया है. नवरात्रि में मां का रोजाना भंडारा चलता है. नवमी के दिन यहां विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है.

क्या कहते हैं श्रद्धालु: हरिद्वार से आए प्रदीप का कहना है कि प्रत्येक नवरात्रि में मां भगवती के दर्शन करने यहां पर आते हैं. यहां की मान्यता है कि आसपास के जिलों से भी बड़ी संख्या में लोग यहां मां के दर पर आकर मत्था टेकते हैं. यहां पर जंगल में जानवर तो बहुत देखे पर मां की ऐसी शक्ति और कृपा है कि कभी किसी पर जानवर ने हमला नहीं किया.

कैसे पहुंचें इस सिद्धपीठ तक: मां सुरेश्वरी के इस स्थान तक आने के लिए ऑटो, ई-रिक्शा या अपनी सवारी से आने की व्यवस्था है. रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से इसकी दूरी करीब 12 किलोमीटर है. ई-रिक्शा या ऑटो वाले यहां आने के लिए करीब ₹200-₹250 लेते हैं. यदि आप अपनी सवारी से यहां आना चाहते हैं तो रानीपुर भेल के सेक्टर पांच से होते हुए राजाजी टाइगर रिजर्व में स्थित मां सुरेश्वरी देवी के मंदिर आसानी से पहुंच सकते हैं. आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि मंदिर में आने का समय सुबह आठ से शाम साढ़े पांच तक का रखा गया है. इसके बाद यहां के लिए किसी को प्रवेश नहीं दिया जाता.

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