हरिद्वार: आज हम आपको एक ऐसी महिला हंसी प्रहरी की कहानी से रूबरू करवाएंगे, जो कभी कुमाऊं विश्वविद्यालय की शान रही हैं. छात्रा यूनियन वाइस प्रेसिडेंट रहीं हंसी ने कुमाऊं विश्वविद्यालय से दो बार एमए की पढ़ाई अंग्रेजी में पास करने के बाद विश्वविद्यालय में ही लाइब्रेरियन की नौकरी की लेकिन आज ये हालात हैं कि पढ़ाई-लिखाई में तेज हंसी हरिद्वार की सड़कों, रेलवे स्टेशन, बस अड्डों और गंगा घाटों पर भिक्षा मांगने पर मजबूर हैं.
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर विधानसभा क्षेत्र के हवालबाग विकासखंड के अंतर्गत गोविंन्दपुर के पास रणखिला गांव पड़ता है. इसी गांव में पली-बढ़ीं हंसी 5 भाई-बहनों में से सबसे बड़ी बेटी हैं. पहाड़ी परिवार में सब कुछ बेहतर चल रहा था. परिवार की सबसे बड़ी बेटी हंसी पूरे गांव में अपनी पढ़ाई को लेकर चर्चा में रहती थी. पिता छोटा-मोटा रोजगार करते थे. अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्होंने दिन रात एक कर दिया था.
छात्रा यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट रह चुकी हैं हंसी
पिता का मान रखते हुये परिवार की सबसे बेटी हंसी गांव से छोटे से स्कूल से पास होकर कुमाऊं विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने पहुंच गईं. एडमिशन की तमाम प्रक्रिया और टेस्ट पास करने के बाद हंसी का दाखिला विश्वविद्यालय में हो गया. हंसी पढ़ाई लिखाई और दूसरी एक्टिविटीज में इतनी तेज थी कि साल 1999-2000 वह चर्चाओं में तब आईं जब कुमाऊं विश्वविद्यालय में छात्रा यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट बनीं. इसके साथ ही कुमाऊं विश्वविद्यालय से दो बार एमए की पढ़ाई अंग्रेजी और राजनीति विज्ञान में पास करने के बाद हंसी ने कुमाऊं विश्वविद्यालय में ही लाइब्रेरियन की नौकरी की.
हंसी विश्वविद्यालय में 4 साल लाइब्रेरियन भी रहीं
हंसी प्रहरी बताती हैं कि उन्होंने लगभग 4 साल विश्वविद्यालय में नौकरी की. उन्हें नौकरी इसलिए मिली क्योंकि वह विश्वविद्यालय में होने वाली तमाम एजुकेशन से संबंधित प्रतियोगिताओं में भाग लेती थीं. चाहे वह डिबेट हो या कल्चर प्रोग्राम या दूसरे अन्य कार्यक्रम, वह सभी में प्रथम आया करती थीं. इसके बाद उन्होंने 2008 तक कई प्राइवेट जॉब भी की.
2011 के बाद हंसी की जिंदगी में अचानक से मोड़ आया. ईटीवी भारत से बात करते हुये हंसी ने कहा कि वो नहीं चाहती हैं कि उनकी वजह से उनके दो भाई और बाकी परिवार के सदस्यों पर किसी तरह का भी फर्क पड़े. उन्होंने इतना जरूर बताया कि जो इस वक्त जिस तरह की जिंदगी जी रही हैं, वह शादी के बाद हुई आपसी तनातनी का नतीजा है. हंसी ने अपने परिवारिक मुद्दे पर ज्यादा खुलकर बात तो नहीं की लेकिन उनका कहना है कि जिस क्षेत्र से वह आती हैं, वहां पर अगर इस तरह की बातें वह अपने परिवार-ससुराल से बाहर आकर कहेंगी तो इसका असर उनके परिवार पर भी पड़ेगा.
शादीशुदा जिंदगी में हुई उथल-पुथल के बाद हंसी कुछ समय तक अवसाद में रहीं और इसी बीच उनका धर्म की ओर झुकाव भी हो गया. उन्होंने परिवार से अलग होकर धर्मनगरी में बसने की सोची और हरिद्वार पहुंच गईं, तब से ही वो अपने परिवार से अलग हैं. वो बताती हैं कि इस दौरान उनकी शारीरिक स्थिति भी गड़बड़ रहने लगी और वह सक्षम नहीं रहीं कि कहीं नौकरी कर सकें. इसी दौरान वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि वो आज ऐसी स्थिति में भिक्षा मांगने को मजबूर हैं लेकिन अब उनको लगता है कि अगर उनका सही सही इलाज हो रहने के लिए व्यवस्था हो बच्चे का लालन-पालन अच्छा हो तो आज भी वह काम करने के लिए तैयार हैं.
हंसी ने ईटीवी भारत से बयां की जिंदगी की कहानी
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए हंसी ने अपनी जिंदगी के कई राज खोले. वो कहती हैं कि वह साल 2012 के बाद से ही हरिद्वार में भिक्षा मांग कर अपना और अपने 6 साल के बच्चे का लालन-पालन कर रही हैं. हंसी के दो बच्चे हैं. बेटी नानी के साथ रहती है और बेट उनके साथ ही फुटपाथ पर जीवन बिता रहा है.
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फर्राटेदार इंग्लिश बोलने वाली हंसी जब भी समय होता है तो अपने बेटे को फुटपाथ पर ही बैठकर अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत और तमाम भाषाओं का ज्ञान देती है. वह चाहती है कि जो भी उनके पास शिक्षा का ज्ञान है वह अपने बेटे और बेटी को देकर जाएं. वो अपने बेटे को सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ाती हैं. उनकी इच्छा यही है कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर सरकारी नौकरी करें और अधिकारी बनें.
कई बार मुख्यमंत्री से लगाई गुहार
इतना ही नहीं, वह खुद कई बार मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुकी हैं कि उनकी सहायता की जाए. कई बार सचिवालय विधानसभा में भी चक्कर काट चुकी हैं. इस बात के दस्तावेज भी हंसी के पास मौजूद हैं. वह कहती हैं कि अगर सरकार उनकी सहायता करती है तो आज भी वह बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकती हैं.
अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दे रहीं हंसी
अपनी मां के साथ सड़कों पर चलते हुए फुटपाथ पर बैठे हुए अठखेलियां करता हुआ उनका बेटा भी अब अपनी मां के साथ इसी जीवन में रंग में मिल गया है. बच्चा बड़े होकर ऑफिसर बनना चाहता है. आंखों में सपने सजाए इस मासूम को भले ही अभी यह मालूम न हो कि वह अभी समाज के किस वर्ग में अपना जीवन बिता रहा है लेकिन आंखों में दिखती उम्मीद यह जरूर बताती है की हो न हो कल यह बच्चा ही अपनी मां का नाम रोशन जरूर करेगा.
पूर्व केंद्रीय मंत्री को टक्कर दे चुकी हैं हंसी
ईटीवी भारत ने जब हंसी के बारे में और जानकारी जुटाई तो पता लगा कि हंसा अपने गांव का कोई छोटा-मोटा नाम नहीं हैं. साल 2002 में हंसा ने वर्तमान दोनों सांसद प्रदीप टम्टा और अजय टम्टा के खिलाफ सोमेश्वर विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था. ग्रामीणों ने हंसी के पढ़े-लिखे होने के बाद खुद उनको ये चुनाव लड़ने को कहा था. इतना ही नहीं, हंसी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और मौजूदा सांसद अजय टम्टा से 2000 वोट अधिक हासिल किए थे.
राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा ने सुध लेने की बात कही
हंसी के बारे में जब ईटीवी भारत ने राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा से बात की तो उन्होंने भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि हंसी उस चुनाव में एक पढ़ी लिखी उम्मीदवार थी. अंत समय तक यही लगता रहा था कि ये लड़की कुछ फेरबदल कर सकती है, लेकिन वो चुनाव जीत न सकी. प्रदीप टम्टा ने जब ये सुना कि वो अब भीख मांगने पर मजबूर हैं तो उन्होंने उसकी न केवल सुध लेने की बात कहीं बल्कि उसका हलचान भी जाना.
एक अपील...
इस खबर के जरिये ईटीवी भारत का मकसद सरकार तक यह बात पहुंचाना है कि पहाड़ की एक शिक्षित होनहार छात्रा सड़कों पर भिक्षुक का जीवन जीने को मजबूर है. अगर सरकार से कुछ भी सहायता मिलती है तो उम्मीद है कि हंसी के सिर पर एक छत जरूर हो जाएगी और वो अपने साथ ही अपने बच्चों को अच्छा जीवन दे सकेगी.