हरिद्वार: इन दिनों बॉलीवुड में शेर सिंह राणा की बायोपिक का चर्चाएं जोरों पर हैं. लोग इस बायोपिक को लेकर तरह-तरह की बातें कर रहे हैं. कोई इसे शेर सिंह राणा पर लगे दागों को धुलने की कवायद बता रहा है तो कोई इसे पृथ्वीराज चौहान की अस्थियों से जोड़ कर देख रहा है. कुल मिलाकर ये एक ऐसी बायोपिक है जिससे बनने से पहले ही वबाल मचा हुआ है. शेर सिंह राणा की बायोपिक बनने से उठ रहे विवाद और इससे जुड़े हर एक छोटे बड़े सवालों के लेकर हमने शेर सिंह राणा से खास बातचीत की. जिसमें हमने शेर सिंह राणा के जीवन से जुड़े हर एक पहलू को जानने की कोशिश की. साथ ही शेर सिंह राणा के जीवन पर बन रही बायोपिक को लेकर भी उनसे सवाल-जबाव किए.
दरअसल, शेर सिंह राणा की कहानी किसी फिल्मी स्किप्ट की ही तरह है. जिसमें रोमांच, एक्शन के साथ ढेर सारा ड्रामा है. शेर सिंह राणा के शुरुआती दिनों की बात करें तो शेर सिंह राणा को शुरू से ही राजनीति का शौक था. 1998 में शेर सिंह राणा ने देहरादून के मशहूर डीएवी कॉलेज से छात्र संघ चुनाव लड़ा. जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा. शेर सिंह राणा के मुताबिक उस दौरान किसी अपने परिचित व्यक्ति ने ही उन्हें किडनैप कर लिया था. उसके बाद शेर सिंह राणा का नाम सबसे ज्यादा चर्चाओं में तब आया, जब उन्होंने खुद सामने आकर फूलन देवी की हत्या की जिम्मेदारी ली थी.
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25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा फूलन देवी के घर पहुंचा. वो वहां फूलन की पार्टी एकलव्य सेना में शामिल होने के बहाने गया था. फूलन ने उसे प्रसाद के तौर पर बनी खीर खिलाई. इसके बाद वो वहां से निकल गया. दोपहर 1 बजकर 30 मिनट पर फूलन अपने दिल्ली वाले बंगले के गेट पर खड़ी थीं. तभी तीन नकाबपोश आए और फूलन पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं. इसके बाद वो मारुति 800 में बैठकर भाग गए.
फूलन को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया. जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. इन तीन नकाबपोशों में शेर सिंह राणा एक था. उसने फूलन देवी को जान से मारने की बात कबूल भी की. वजह पूछने पर शेर सिंह राणा ने बताया कि उसने बेहमई में ठाकुरों के सामूहिक हत्याकांड का बदला लिया है.
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क्या था 22 ठाकुरों का हत्याकांड: चंबल के बीहड़ों से संसद तक का सफर तय करने वाली फूलन देवी ने 1981 में ठाकुरों की हत्या की थी. बताया जाता है कि मध्यप्रदेश का बेहमई गांव तब चर्चा में आया, जब फूलन देवी के साथ ठाकुर समाज के लोगों ने कई सप्ताह तक शारीरिक शोषण किया था. इसी का बदला लेने के लिए फूलन देवी 14 फरवरी 1981 को एक शादी में पुलिस की वर्दी पहनकर शामिल हुईं और एकसाथ 22 लोगों को एक लाइन में खड़ा करके गोली मार दी थी. जिसका बदला लेने के लिए शेर सिंह राणा ने फूलन देवी की हत्या की थी.
फूलन देवी की हत्या के मामले में शेर सिंह राणा को तिहाड़ जेल में भेज दिया गया था. वहां से शेर सिंह राणा ने अपने साथियों के साथ मिलकर प्लान बनाया. उनके साथी नकली उत्तराखंड पुलिस बनकर वारंट लेकर तिहाड़ जेल पहुंचे. जहां से शेर सिंह राणा को लेकर फरार हो गए. उसके बाद शेर सिंह राणा कलकत्ता, बांग्लादेश सहित नेपाल और दुबई होते हुए अफगानिस्तान पहुंचा. वहां पर अपनी जान पर खेलकर 2005 में पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां लेकर भारत लौटा था.
उसके बाद अपने परिजनों की मदद से पिलखुआ गाजियाबाद में पृथ्वीराज चौहान का मंदिर भी बनवाया. तब एक नामुमकिन सा लगने वाला काम शेर सिंह ने कर दिखाया. राणा ने पृथ्वीराज चौहान को ठाकुरों के वर्चस्व से जोड़ा. जिसके बाद ही शेर सिंह ठाकुरों में एक बड़ा नाम हो गया. अफगानिस्तान से लौटने के बाद शेर सिंह राणा ने पुलिस को बताया वह फरार नहीं हुआ था. उसे जेल में पता चला कि पृथ्वीराज चौहान की समाधि अफगानिस्तान में है. वहां उनका अपमान किया जाता है. इसलिए वो अफगानिस्तान गया और पृथ्वीराज सिंह चौहान की समाधि खुदवाकर थोड़ी मिट्टी इकट्ठी की.
भारत लौटकर उसने उस मिट्टी को इटावा भेजा और वहां के लोकल नेताओं की मदद से एक इवेंट ऑर्गनाइज किया. हालांकि उसकी इस कहानी की सच्चाई कभी साबित नहीं हो पाई. तब से करीब 14 साल जेल में बिताए. इस दौरान उन्होंने एक किताब लिखी. जिसका नाम जेल डायरी दिया गया. जिसमें बिहार से काबुल कंधार तक के उनके सफर का पूरा जिक्र है. जिसके आधार पर अब शेर सिंह राणा पर फिल्म भी बनाई जा रही है.
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साल 2012 में शेर सिंह राणा ने जेल से ही यूपी चुनाव का पर्चा भरा. साल 2014 में कोर्ट ने उसे फूलन देवी हत्याकांड में दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. 2016 में मामला हाईकोर्ट पहुंचा. जहां शेर सिंह राणा को बेल मिल गई. ठाकुरों की हत्या का बदला लेने के चलते ठाकुरों के बीच उसकी इमेज हीरो वाली बन गई. पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां वापस लाने वाली कहानी की मदद से भी उसे खूब माइलेज मिली. शेर सिंह राणा की इसी कहानी पर अब फिल्म बन रही है.
शेर सिंह राणा के जीवन पर बन रही बायोपिक इसकी स्टार कास्ट के कारण भी चर्चाओं में हैं. शेर सिंह राणा की बायोपिक में एक्शन स्टार विद्युत जामवाल मुख्य भूमिका में हैं. फिल्म निर्माता विनोद भानुशाली और निर्देशक नारायण सिंह की जोड़ी ने चर्चित शेर सिंह राणा के जीवन पर बायोपिक बना रहे हैं. शेर सिंह राणा की इस बायोपिक फिल्म में फूलन देवी की हत्या से लेकर उनकी जिंदगी से जुड़े कई विवाद पर पर्दे पर उतारे जाएंगे.
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शेर सिंह राणा का उत्तराखंड कनेक्शन: फूलन देवी के हत्यारे शेर सिंह राणा का जन्म उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के रुड़की में 17 मई 1976 में हुआ था. उनका असली नाम पंकज सिंह पुंढीर था. शेर सिंह राणा तब चर्चा में आए जब 25 जुलाई 2001 को ठाकुरों की मौत की जिम्मेदार 80 के दशक की बैंडिट क्वीन और तत्कालीन सपा सांसद फूलन देवी को दिल्ली में तीन नकाबपोश लोगों ने गोलियों से भून दिया था. बताया जाता है कि फूलन देवी ने जिन ठाकुरों को मारा था, उसमें शेर सिंह राणा के रिश्तेदार भी थे.