हरिद्वार: कुष्ठ रोग से पीड़ित मरीजों को समाज में फैली गलत अवधारणाओं और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है. आज के अत्याधुनिक दौर में भी हमारे समाज में एक बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो छुआ-छूत और भेद भाव से दो-चार होता है. ऐसे ही ही पीड़ितों और वंचितों के लिए दिव्य प्रेम सेवा मिशन पिछले 25 सालों से काम कर रहा है. 27 मार्च को दिव्य प्रेम सेवा मिशन को पूरे 25 साल हो जाएंगे. इस मौके पर खुद देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद यहां एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होंगे.
कुष्ठ रोगियों का सरकारी और प्राइवेट अस्पताल इलाज नहीं करना चाहते. कुष्ठ रोगियों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए और उनकी तमाम समस्याओं को देखते हुए आज से 25 साल पहले हरिद्वार स्थित दिव्य प्रेम सेवा मिशन की स्थापना हुई. आज भी दिव्य प्रेम सेवा मिशन न केवल कुष्ठ रोगियों की देखभाल कर रहा है, बल्कि उन्हें नया जीवन देने का काम कर रहा है.
हरिद्वार के चंडी घाट पर स्थित दिव्य प्रेम सेवा मिशन देशभर के कुष्ठ रोगियों का इलाज करता है. चंडी घाट स्थित दिव्य प्रेम सेवा मिशन के नाम से संचालित यह संस्था आज से 25 साल पहले डॉ आशीष गौतम ने शुरू की थी.
मूलत: उत्तर प्रदेश के रहने वाले आशीष हरिद्वार में धार्मिक कार्यक्रम और पर्यावरण के लिए काम करने आए थे. जिसके बाद उन्होंने हरिद्वार की गंगा किनारे बनी झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले कुष्ठ रोगियों की बस्ती को देखा. तब उन्होंने इन लोगों के दर्द को महसूस किया. जिसके बाद दिव्य प्रेम सेवा मिशन की शुरुआत हुई.
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डॉ आशीष गौतम बताते हैं कि 25 साल पहले एक झोपड़ी से इस मिशन की शुरुआत हुई थी. आज उनके देश भर में लगभग 25 हजार लोग ऐसे हैं, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस संस्था से जुड़े हुए हैं. देश भर में तमाम शहरों में रहने वाले कुष्ठ रोगियों के लिए यहां पर इलाज की व्यवस्था की जाती है. यह वह लोग हैं जो या तो परिवार के साथ हरिद्वार में आकर बस गए या फिर एक व्यक्ति यहां पर आया और उसने दूसरे व्यक्ति से शादी कर ली दिव्य प्रेम सेवा मिशन इन लोगों के खाने पीने रहने और इलाज की पूरी व्यवस्था करता है.
डॉ. आशीष गौतम का कहना है कि इन लोगों की पीड़ा देखकर किसी का भी मन दर्द से भर जाए. यह लोग ऐसी बीमारी से ग्रसित हैं जो धीरे-धीरे अंगों को खराब कर देती है. इस बीमारी का भी इलाज है. यह जरूर है कि बीमारी के इलाज में समय जरूर लगता है. उन्होंने कहा हमारा प्रयास है कि उनकी बीमारी के लिए काम करके इनके बच्चों को भी मुख्यधारा से जोड़ा जाए. इसके लिए दिव्य प्रेम सेवा मिशन में ही छोटे बच्चों और बड़े बच्चों का स्कूल चलाया जाता है. जहां पर उन्हें तमाम शिक्षा दीक्षा दी जाती है.
दिव्य प्रेम सेवा मिशन से ही जुड़े संजय चतुर्वेदी इस मिशन में बतौर सचिव पद पर हैं. उनका कहना है कि इस संस्था से जब से जुड़े हैं तब से उन्होंने कुष्ठ रोगियों की पीड़ा को तो देखा और जाना ही है. साथ ही साथ संस्था के लोगों को यह अच्छा लगता है कि कुष्ठ रोगियों के बच्चे अब मुख्यधारा से जुड़ने लगे हैं दिव्य प्रेम सेवा मिशन लगभग 300 से अधिक बच्चों को 12वीं तक की शिक्षा देने के बाद अन्य दूसरे कोर्स भी करवा रहा है.
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ईटीवी भारत ने दिव्य प्रेम सेवा मिशन के कार्यों को देखने के लिए अस्पताल का रुख किया. हमने यहां इलाज करवाने आए अर्जुन नाम के वृद्ध व्यक्ति से बात की. अर्जुन ने बताया वह लगभग 25 साल से हरिद्वार में ही रह रहे हैं. वह यहां पर अपना इलाज करवाने फिलहाल रोज शाम आते हैं. अर्जुन के हाथ और पैर पूरी तरह से गल गए हैं.
जब हमने उनसे पूछा कि परिवार को छोड़ने की नौबत क्यों आई तो उन्होंने बताया कि जब उनको यह बीमारी हुई तो परिवार के लोगों ने ही उनसे दूरी बना ली. इतना ही नहीं जब वह घर से बाहर निकलते तो लोग उनके बारे में अजीब अजीब बातें करते थे. कोई उन्हें अपने पास नहीं बैठने देता था. जिसके बाद उन्होंने एक रोज घर छोड़ने का मन बनाया. उन्होंने दिल्ली और दिल्ली के बाद हरिद्वार आने का फैसला किया. तब से वह अकेले ही भिक्षुक के रूप में अपना जीवन यापन कर रहे हैं.
ऐसा ही एक महिला से भी हमने बात की. जिसमें उन्होंने बताया कि उन्होंने यहां आकर शादी कर ली है. जब वह उत्तर प्रदेश में रहती थी तो समाज उन्हें बड़ी हीन भावना से देखता था. उनके हाथ और पैर बीमारी से पूरी तरह खराब होने लगे थे. ऐसे में परिवार के लोगों ने उन्हें घर से जाने तक के लिए कह दिया था. आज भी परिवार में उनके भाई, भाभी, मां-बाप सब हैं, मगर फिर भी कोई उनके बारे में जानने की कोशिश नही करता.
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दिव्य प्रेम सेवा मिशन के चंडी घाट स्थित इस आश्रम की व्यवस्थाएं देखने के बाद हमने कुष्ठ रोगियों के बच्चों के लिए की गई शिक्षा व्यवस्था को भी देखा. इसके लिए हम ऋषिकेश और हरिद्वार रोड पर बने सेवा कुंज विद्यालय और हॉस्टल पहुंचे. यहां लगभग 300 से अधिक बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. 12वीं तक इन बच्चों को यहीं शिक्षा दी जाती है. उसके बाद जो बच्चा जिस फील्ड में जाना चाहता है, संस्था उसे आगे पढ़ाने लिखाने के लिए भेजती है.
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स्कूल में चल रही स्मार्ट क्लास और उसमें बैठे बच्चे अलग-अलग राज्यों से हैं. यहां के छात्र बताते हैं कि उनके परिवार के सदस्य इस बीमारी से पीड़ित हैं. ऐसे में समाज के दूसरे लोग उन्हें अपने आसपास नहीं बैठने देते. शिक्षा दीक्षा लेने में भी काफी दिक्कतें आती हैं . इसीलिए परिवार के लोगों ने उन्हें यहां भेजा है. 10 से 15 सालों से यहीं पढ़ रहे हैं.
क्या होता है कुष्ठ रोग: दिव्य प्रेम सेवा मिशन में ही रोगियों का इलाज करने के लिए पिछले 15 सालों से डॉक्टर अनिल रावत अपनी सेवाएं दे रहे हैं. अनिल रावत का कहना है कि इन मरीजों को सरकारी अस्पताल के डॉक्टर भी नहीं देखते. ऐसे में उनके द्वारा यहां पर 15 सालों से कार्य किया जा रहा है. लगभग अभी भी डेढ़ सौ से 200 मरीज वह देख रहे हैं. यहां पर आने के बाद मरीजों की मलहम-पट्टी की जाती है और उन्हें उनको दवाई दी जाती है. उन्हें क्या करना है क्या नहीं करना है इस बारे में भी बताया जाता है.
डॉ अनिल रावत का कहना है कि कुष्ठ रोग किसी भी व्यक्ति को हो सकता है. खासकर उस व्यक्ति को जिस व्यक्ति के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. यह रोग आंख, नाक, हाथ पैर जैसी जगहों पर होता है. यह रोग पहले उस जगह की नसों को कमजोर करता है. उसमें घाव बनने शुरू हो जाते हैं. उसके बाद धीरे-धीरे धीरे-धीरे वह शरीर का हिस्सा गलने लगता है. डॉ अनिल रावत कहते हैं कि समाज में आज भी इन लोगों को स्वीकार नहीं किया जाता है.
कैसे काम करता है यह मिशन: दिव्य प्रेम सेवा मिशन लगभग 25 साल से कार्य कर रहा है. 27 मार्च को दिव्य प्रेम सेवा मिशन को पूरे 25 साल हो जाएंगे. इस मौके पर खुद देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद यहां एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होंगे. बताया जाता है जब रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति बनने से पहले ही इस संस्थान से जुड़ गए थे.
डॉ आशीष गौतम बताते हैं कि पूरे देश भर में लगभग 25000 ऐसे लोग हैं जो इस संस्था से जुड़े हुए हैं. यह संस्था किसी से डोनेशन नहीं लेती. जो लोग यहां आते हैं वह यहां के कार्यों को देखते हैं. बहुत सारे लोग यहां पर वॉलंटियर के तौर पर काम करते हैं. इस मिशन का जो उद्देश्य कुष्ठ रोगियों की सेवा और उनके बच्चों को पढ़ा लिखा कर अच्छा जीवन देना है, जो निरंतर जारी रहेगा.