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रुड़की: कौमी एकता की मिसाल बना 'ढंडेरा गांव', सालों से कायम है आपसी सौहार्द

वर्तमान समय में जहां देश में मजहबी उन्माद चरम पर है, ऐसे में शिक्षानगरी का ढंडेरा गांव यकीनन भाईचारे की नजीर बना हुआ है. यहां मंदिर और मस्जिद एक-दूसरे के सामने होने के बाद भी आपसी प्रेम बरकरार है.

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ढंडेरा गांव
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Published : Jan 4, 2020, 10:23 AM IST

रुड़की: मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन हैं, हिंदुस्तां हमारा ये पंक्तियां देश की मूल आत्मा है. हमारा मजहब को लेकर खाई खोदने वालों की अपनी फितरत हो सकती है, लेकिन इस खाई को पाटने वाले भी बेशुमार हैं. मजहबी ऊंच-नीच के माहौल के बीच शिक्षानगरी से सटा ढंडेरा गांव यकीनन भाईचारे की नजीर बना हुआ है. यहां कई दशकों से मंदिर और मस्जिद एक दूसरे के सामने हैं. जहां दोनों धर्म के लोग आपसी सौहार्द भाव की मिसाल दे रहे हैं.

कौमी एकता की मिसाल

वहीं ग्रामीण बताते हैं कि गांव के भीतर एक मस्जिद थी, लेकिन बढ़ती आबादी के कारण 1965 में गुलाम बारी ने मस्जिद के लिए भूमि दान दी थी, जिसके बाद फाटक के पास साबरी मस्जिद का निर्माण किया गया जहां पर रोजाना लोग नमाज अता करते आ रहे हैं. बाकायदा माइक से अजान दी जाती है, तो वहीं मस्जिद के सामने साल 1975 में जसवीर राणा व शमशेर राणा ने अपनी भूमि मंदिर के लिए दान दी थी.

इस भूमि पर मां दुर्गा का मंदिर का निर्माण कराया गया, जहां रोजाना पूजा-अर्चना करने के साथ ही आरती, जागरण आदि कार्यक्रम होते रहते हैं, लेकिन दोनों ही समुदाय के लोगों ने कभी भी कोई एतराज नहीं किया. वहीं अलग-अलग आस्था के लोग जब एकता का पैगाम दे रहे हैं.

यह भी पढे़ंः देश में स्वच्छता सर्वेक्षण में मुनि की रेती नगर पालिका बनी नंबर वन

दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे का सम्मान करने के साथ ही अजान और आरती का एहतराम करते है. वहीं आज देश में सीएए को लेकर विरोध व समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं तो वही इन धार्मिक स्थलों से मोहब्बत व भाईचारे का संदेश दिया जा रहा है.

रुड़की: मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन हैं, हिंदुस्तां हमारा ये पंक्तियां देश की मूल आत्मा है. हमारा मजहब को लेकर खाई खोदने वालों की अपनी फितरत हो सकती है, लेकिन इस खाई को पाटने वाले भी बेशुमार हैं. मजहबी ऊंच-नीच के माहौल के बीच शिक्षानगरी से सटा ढंडेरा गांव यकीनन भाईचारे की नजीर बना हुआ है. यहां कई दशकों से मंदिर और मस्जिद एक दूसरे के सामने हैं. जहां दोनों धर्म के लोग आपसी सौहार्द भाव की मिसाल दे रहे हैं.

कौमी एकता की मिसाल

वहीं ग्रामीण बताते हैं कि गांव के भीतर एक मस्जिद थी, लेकिन बढ़ती आबादी के कारण 1965 में गुलाम बारी ने मस्जिद के लिए भूमि दान दी थी, जिसके बाद फाटक के पास साबरी मस्जिद का निर्माण किया गया जहां पर रोजाना लोग नमाज अता करते आ रहे हैं. बाकायदा माइक से अजान दी जाती है, तो वहीं मस्जिद के सामने साल 1975 में जसवीर राणा व शमशेर राणा ने अपनी भूमि मंदिर के लिए दान दी थी.

इस भूमि पर मां दुर्गा का मंदिर का निर्माण कराया गया, जहां रोजाना पूजा-अर्चना करने के साथ ही आरती, जागरण आदि कार्यक्रम होते रहते हैं, लेकिन दोनों ही समुदाय के लोगों ने कभी भी कोई एतराज नहीं किया. वहीं अलग-अलग आस्था के लोग जब एकता का पैगाम दे रहे हैं.

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दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे का सम्मान करने के साथ ही अजान और आरती का एहतराम करते है. वहीं आज देश में सीएए को लेकर विरोध व समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं तो वही इन धार्मिक स्थलों से मोहब्बत व भाईचारे का संदेश दिया जा रहा है.

Intro:रुड़की

रूड़की: मज़हब नही सिखाता आपस मे बेर रखना हिंदी है हम वतन है ये हिंदुस्ता हमारा,, मजहब को लेकर खाई खोदने वालों की अपनी फितरत हो सकती है लेकिन इस खाई को पाटने वाले भी बेशुमार हैं। मजहबी ऊंच-नीच के माहौल के बीच शिक्षानगरी से सटा ढंडेरा गांव यकीनन भाईचारे की नजीर बना हुआ है। यहां कई दशकों से मंदिर और मस्जिद एक दूसरे के सामने खड़े हैं। अंतर है तो सिर्फ एक सड़क का। आज तक यहां न तो अज़ान के लाउडस्पीकर ने आरती में कोई बाधा खड़ी की है और ना ही आरती के घंटों से अजान में खलल पड़ा है। वहीं अज़ान करने वाले आरती का एहतराम करते हैं तो आरती करने वाले अज़ान का सम्मान करते हैं।
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वहीं ग्रामीण बताते हैं कि गाँव के भीतर एक मस्जिद थी। लेकिन बढ़ती आबादी के कारण 1965 में गुलाम बारी ने भूमि को मस्जिद के लिये दान दी थी। जिसके बाद फाटक के पास साबरी मस्जिद का निर्माण किया गया जहाँ पर रोजाना लोग नमाज़ अदा करते आ रहे है बाकायदा तोर पर माइक से अजान दी जाती है। तो वहीं मस्जिद के सामने साल 1975 में जसवीर राणा व शमशेर राणा ने अपनी भूमि मंदिर के लिए दान दी थी। इस भूमि पर शेरे वाली माता मंदिर का निर्माण कराया गया। जहां रोजाना पूजा अर्चना करने के साथ ही आरती, जागरण आदि कार्क्रम होता रहता है। लेकिन दोनों ही समुदाय के लोगो ने कभी भी कोई एतराज नही किया है। और दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे का सम्मान करने के साथ ही अज़ान और आरती का एहतराम करते है। वहीं आज देश में सीएए को लेकर विरोध व समर्थन में प्रदर्शन हो रहे है तो वही इन धार्मिक स्थलों से मोहब्बत व भाई चारे का सन्देश दिया जा रहा है।

बाइट-- हरिद्वार सिंह पुजारी माता मंदिर,, पहचान कॉफी कलर टोपा व्हाइट चादर
बाइट-- नरेश (स्थानीय निवास) पीछे सीमेंट की बारी रखी हैं
बाइट-- राव रब्बानी (प्रबंधक साबरी मज़्ज़िद) व्हाइट कलर टोपा प्रिंट वाला
बाइट-- राव साजिद (स्थानीय निवासी) व्हाइट चादर लपेटे हुए Conclusion:
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