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हरिद्वारः अधर में ऑटोमेटेड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक निर्माण, खोखले साबित हुए दावे

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Published : Jan 26, 2022, 5:56 PM IST

Updated : Jan 26, 2022, 10:08 PM IST

हरिद्वार में ऑटोमेटेड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक निर्माण किया जाना था, लेकिन ढाई साल बीत जाने के बाद भी निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया है. जबकि, पहले एक साल के भीतर पूरा करने का दावा किया गया था.

automated driving test track
ऑटोमेटेड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक निर्माण

हरिद्वारः करीब ढाई साल पहले हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र में ऑटोमेटेड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक निर्माण का कार्य शुरू किया गया था. उस समय दावे किए गए थे कि इस अत्याधुनिक टेस्टिंग ट्रैक का निर्माण एक साल के भीतर पूरा कर लिया जाएगा, लेकिन अभी तक आवंटित भूमि पर न तो भूमिगत उपकरण स्थापित हुए हैं और न ही बाउंड्री वॉल का काम पूरा हो पाया है.

इस ट्रैक की खासियत यह है कि लाइसेंस बनवाने से पहले अत्याधुनिक तरीके से आवेदक का टेस्ट लिया जा सकेगा. जो टेस्ट में पास होगा, उसी का लाइसेंस बन सकेगा. राज्य सरकार ने हरिद्वार में अत्याधुनिक ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक के लिए करीब 1 करोड़ 10 लाख रुपए स्वीकृत किए थे. इसके लिए सिडकुल स्थित एआरटीओ कार्यालय के पास बड़ा भूखंड भी आवंटित किया गया था.

अधर में ऑटोमेटेड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक निर्माण.

ये भी पढ़ेंः कुमाऊं मंडल के लोगों को मिलेगा ऑटोमेटिक ड्राइविंग टेस्टिंग ट्रैक का लाभ

कार्यदायी संस्था पेयजल निर्माण निगम ने इस ट्रैक को दो भागों में बनाने का काम शुरू किया था. पहले भाग में यहां पर ड्राइविंग ट्रैक बनाने के साथ यहां पर भूमिगत उन मशीनों को लगाया जाना था, जिनसे चालक की ड्राइविंग कुशलता को आंका जा सके. साथ ही इस ट्रैक को सुरक्षित रखने के लिए बाउंड्री वॉल का निर्माण होना था.

ये भी पढ़ेंः डीएल बनवाने के लिए अब करना होगा ये काम, मोबाइल बताएगा कैसे ड्राइवर हैं आप

यहां पर ढाई साल बीतने के बाद ट्रैक तो जरूर बना दिया गया है, लेकिन न तो अभी तक भूमिगत यंत्र लगे हैं और न ही बाउंड्री वॉल का काम ही पूरा हो पाया है. यह ट्रैक उत्तराखंड में पहला ऐसा सरकारी ड्राइविंग ट्रैक होगा, जहां नॉर्मल फीस जमा कर लाइसेंस बनवाया जा सकेगा, लेकिन चालक को इस ट्रैक की अनिवार्यताओं को पूरा करना जरूरी होगा.

बड़ी बात यह है कि अभी तक सहायक संभागीय परिवहन कार्यालय में दलालों का बोलबाला रहता है. जिस कारण ऐसे लोगों के भी लाइसेंस बन जाते हैं, जिन्हें वास्तव में वाहन चलाना आता ही नहीं और जब ऐसे लोगों के लाइसेंस बनते हैं तो ऐसे ही लोग सड़कों पर हादसों का बड़ा कारण बनते हैं.

ये भी पढ़ेंः गंगोत्री धाम में बर्फबारी से जम गई भागीरथी नदी, सफेद चादर की आगोश में कई गांव

वहीं, इस ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक के बनने के बाद केवल उन्हीं लोगों के लाइसेंस बन पाएंगे जो वास्तव में गाड़ी चलाना जानते हैं और आवश्यक दिशा निर्देशों का पूरी तरह से पालन करते हैं. एआरटीओ रत्नाकर सिंह ने बताया कि बीच में कोरोनाकाल के चलते इस प्रोजेक्ट में थोड़ा विलंब हुआ है, लेकिन अब यह प्रोजेक्ट अपने अंतिम चरण में है.

बाउंड्री वॉल का काम पूरा होते ही यहां पर भूमिगत उपकरणों को फिट कर इस ट्रैक को शुरू कर दिया जाएगा. बरहाल, इस ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक के बनने के बाद लोगों को जहां दलालों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. वहीं, सही आदमी का समय से लाइसेंस बन सकेगा.

हरिद्वारः करीब ढाई साल पहले हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र में ऑटोमेटेड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक निर्माण का कार्य शुरू किया गया था. उस समय दावे किए गए थे कि इस अत्याधुनिक टेस्टिंग ट्रैक का निर्माण एक साल के भीतर पूरा कर लिया जाएगा, लेकिन अभी तक आवंटित भूमि पर न तो भूमिगत उपकरण स्थापित हुए हैं और न ही बाउंड्री वॉल का काम पूरा हो पाया है.

इस ट्रैक की खासियत यह है कि लाइसेंस बनवाने से पहले अत्याधुनिक तरीके से आवेदक का टेस्ट लिया जा सकेगा. जो टेस्ट में पास होगा, उसी का लाइसेंस बन सकेगा. राज्य सरकार ने हरिद्वार में अत्याधुनिक ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक के लिए करीब 1 करोड़ 10 लाख रुपए स्वीकृत किए थे. इसके लिए सिडकुल स्थित एआरटीओ कार्यालय के पास बड़ा भूखंड भी आवंटित किया गया था.

अधर में ऑटोमेटेड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक निर्माण.

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कार्यदायी संस्था पेयजल निर्माण निगम ने इस ट्रैक को दो भागों में बनाने का काम शुरू किया था. पहले भाग में यहां पर ड्राइविंग ट्रैक बनाने के साथ यहां पर भूमिगत उन मशीनों को लगाया जाना था, जिनसे चालक की ड्राइविंग कुशलता को आंका जा सके. साथ ही इस ट्रैक को सुरक्षित रखने के लिए बाउंड्री वॉल का निर्माण होना था.

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यहां पर ढाई साल बीतने के बाद ट्रैक तो जरूर बना दिया गया है, लेकिन न तो अभी तक भूमिगत यंत्र लगे हैं और न ही बाउंड्री वॉल का काम ही पूरा हो पाया है. यह ट्रैक उत्तराखंड में पहला ऐसा सरकारी ड्राइविंग ट्रैक होगा, जहां नॉर्मल फीस जमा कर लाइसेंस बनवाया जा सकेगा, लेकिन चालक को इस ट्रैक की अनिवार्यताओं को पूरा करना जरूरी होगा.

बड़ी बात यह है कि अभी तक सहायक संभागीय परिवहन कार्यालय में दलालों का बोलबाला रहता है. जिस कारण ऐसे लोगों के भी लाइसेंस बन जाते हैं, जिन्हें वास्तव में वाहन चलाना आता ही नहीं और जब ऐसे लोगों के लाइसेंस बनते हैं तो ऐसे ही लोग सड़कों पर हादसों का बड़ा कारण बनते हैं.

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वहीं, इस ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक के बनने के बाद केवल उन्हीं लोगों के लाइसेंस बन पाएंगे जो वास्तव में गाड़ी चलाना जानते हैं और आवश्यक दिशा निर्देशों का पूरी तरह से पालन करते हैं. एआरटीओ रत्नाकर सिंह ने बताया कि बीच में कोरोनाकाल के चलते इस प्रोजेक्ट में थोड़ा विलंब हुआ है, लेकिन अब यह प्रोजेक्ट अपने अंतिम चरण में है.

बाउंड्री वॉल का काम पूरा होते ही यहां पर भूमिगत उपकरणों को फिट कर इस ट्रैक को शुरू कर दिया जाएगा. बरहाल, इस ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक के बनने के बाद लोगों को जहां दलालों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. वहीं, सही आदमी का समय से लाइसेंस बन सकेगा.

Last Updated : Jan 26, 2022, 10:08 PM IST
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