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उत्तराखंड विस चुनाव: युवाओं के पास होगी 'सत्ता की चाभी', आकर्षित करने में जुटी पार्टियां

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान सत्ता की चाबी युवाओं के पास ही होगी. इस बात को राजनीतिक दल भी अच्छी तरह से जानते हैं और शायद इसीलिए पार्टियों ने अपनी राजनीतिक गुणा भाग में युवाओं को ही प्राथमिकता दी है. मौजूदा राजनीतिक मुद्दों को देखकर भी इस बात को आसानी से समझा जा सकता है. मसलन बेरोजगारी और शिक्षा जैसे विषयों पर राजनीतिक दल सबसे ज्यादा आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं, जो आने वाले चुनाव की दिशा को जाहिर कर रहा है. देखिए ईटीवी भारत की यह स्पेशल रिपोर्ट...

youth role in in uttarakhand assembly election
उत्तराखंड में युवा तय करेेंगे सरकार.
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Published : Feb 10, 2021, 6:28 PM IST

Updated : Feb 10, 2021, 7:34 PM IST

देहरादून: यूं तो युवा किसी भी चुनाव में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन एक युवा प्रदेश के लिए युवाओं का मुद्दा ज्यादा अहम होता है. खासकर तब जब युवाओं की संख्या उस प्रदेश में किसी भी राजनीतिक दल की किस्मत बदलने के लिए काफी हो. जी हां, 20 साल के उत्तराखंड में युवा ही राज्य की अगुवाई करने जा रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में युवा किसी भी राजनीतिक दल को सत्ता तक पहुंचाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे. यह बात साल 2017 के विधानसभा चुनाव से भी साबित होती है. साल 2017 में कुल 75 लाख 99 हज़ार 688 मतदाता थे, जिसमें 18 साल से लेकर 39 साल तक की उम्र वाले युवाओं की संख्या 42 लाख 85 हजार 621 थी. इस लिहाज से राज्य में साल 2017 के दौरान 57.17% युवा मतदाता थे, जबकि 18 से 19 साल के नए वोटर्स की संख्या साल 2017 में 2 लाख 54 हजार 137 थी और इन्हीं वोटर्स ने मोदी के चेहरे पर भाजपा का दामन थामा तो भाजपा ने ऐतिहासिक 57 सीटों पर जीत हासिल की.

अब यदि आगामी चुनाव को देखते हुए वोटर्स का आंकलन करें तो मौजूदा समय में राज्य में 78 लाख 15 हज़ार 192 मतदाता हैं, जिसमें इस बार 18 साल पूरा कर पहली बार वोटर बनने वालों की संख्या 77 हजार है. उधर राज्य में 1 लाख 40 हजार नए मतदाता शामिल हुए हैं. इन सभी आंकड़ों के लिहाज से राज्य में इस बार भी युवा वोटर की संख्या करीब 57 फीसदी ही है. यानी विधानसभा चुनाव 2022 भी युवाओं के मूड़ पर ही निर्भर रहने वाला है.

युवा तय करेंगे सरकार.

सुर्खियों में युवाओं के मुद्दे
उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देशभर में इस बार बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा बनकर सामने आया है. राज्य में भी विधानसभा चुनाव से पहले सत्ताधारी भाजपा की तरफ से युवा बेरोजगारों को रोजगार देने का दावा किया जा रहा है तो विपक्षी दल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी युवाओं पर ही दांव खेल रही है. इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने शिक्षा को भी बड़ा मुद्दा राज्य में बनाया है. स्वरोजगार के लिए बेहतर अवसर देने और उद्योग-धंधों को उत्तराखंड में स्थापित करने से जुड़े मुद्दे भी राज्य में काफी चर्चाओं में रहे. यानी प्रदेश में युवाओं से जुड़े मुद्दों को ही राजनीतिक दल तरजीह दे रहे हैं.

'फिसड्डी साबित हुई त्रिवेंद्र सरकार'
विपक्षी दल कांग्रेस कहती है कि उत्तराखंड में 1 लाख 50 हजार करोड़ का निवेश करने का दावा त्रिवेंद्र सरकार ने किया था. अब सरकार को जवाब देना चाहिए कि उत्तराखंड में यह निवेश कहां पर हुआ है और पांच बड़ी कंपनियों के नाम भी सबके सामने रखने चाहिए. कांग्रेस ने दावा किया कि प्रदेश में यदि सबसे ज्यादा सरकारी नौकरियों को किसी ने अपनी सरकार में दिलवाया है तो वह कांग्रेस की तिवारी सरकार थी. उद्योग को स्थापित करने में भी कांग्रेस की तिवारी सरकार ही सबसे आगे रही. इस लिहाज से उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार फिसड्डी ही साबित हुई है.

ये भी पढ़ें: चमोली आपदा का दर्द जौनसार बाबर के पंजिया गांव में भी छलका, दो सगे भाई सहित चार लोग लापता

'रोजगार देने के लिए सरकार ने किया अभिनव प्रयोग'
उत्तराखंड में सेवायोजन कार्यालयों में करीब 10 लाख युवाओं के रजिस्ट्रेशन करवाए गए हैं और ये आंकड़ा साल दर साल बढ़ता जा रहा है. साफ है कि युवाओं को उत्तराखंड में रोजगार देने में सरकार कामयाब साबित नहीं हो पाई है, उधर कोरोना के चलते दूसरे राज्यों से भी रिवर्स पलायन कर कई युवा उत्तराखंड वापस लौटे हैं. मौजूदा खराब वित्तीय हालातों के चलते बड़ी संख्या में युवाओं की नौकरियां गई हैं. यही सब वह चुनौतियां हैं, जो त्रिवेंद्र सरकार के सामने मुंह बाहें खड़ी है. हालांकि भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष देवेंद्र भसीन कहते हैं कि त्रिवेंद्र सरकार ने राज्य में युवाओं के रोजगार के लिए अभिनव प्रयोग किए हैं. स्वरोजगार देने से लेकर सरकारी पदों पर भी रिक्तियों को भरने का काम किया जा रहा है.

युवाओं की भूमिका होगी महत्वपूर्ण
प्रदेश में भाजपा सोशल मीडिया के जरिए युवाओं को आकर्षित करने का काम कर रही है तो दूसरी तरफ पहली बार राज्य में अपना भाग्य आजमा रही आम आदमी पार्टी ने भी सोशल मीडिया के जरिए युवाओं को ही फोकस किया है. हालांकि इस मामले में कांग्रेस कुछ पिछड़ती हुई नजर आ रही है. राज्य में 70 विधानसभा ही हैं और इन सभी में युवाओं की अच्छी खासी संख्या है. सबसे खास बात यह है कि प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस विधानसभाओं में प्रतिद्वंदी पार्टी रही है. लिहाजा चुनाव में जीत-हार का अंतर भी आठ से 10% से ज्यादा नहीं रहता और इससे ज्यादा संख्या में युवाओं की मौजूदगी से आगामी चुनाव में युवाओं के हाथों में सत्ता की चाबी होगी यह कहना गलत नहीं होगा.

देहरादून: यूं तो युवा किसी भी चुनाव में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन एक युवा प्रदेश के लिए युवाओं का मुद्दा ज्यादा अहम होता है. खासकर तब जब युवाओं की संख्या उस प्रदेश में किसी भी राजनीतिक दल की किस्मत बदलने के लिए काफी हो. जी हां, 20 साल के उत्तराखंड में युवा ही राज्य की अगुवाई करने जा रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में युवा किसी भी राजनीतिक दल को सत्ता तक पहुंचाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे. यह बात साल 2017 के विधानसभा चुनाव से भी साबित होती है. साल 2017 में कुल 75 लाख 99 हज़ार 688 मतदाता थे, जिसमें 18 साल से लेकर 39 साल तक की उम्र वाले युवाओं की संख्या 42 लाख 85 हजार 621 थी. इस लिहाज से राज्य में साल 2017 के दौरान 57.17% युवा मतदाता थे, जबकि 18 से 19 साल के नए वोटर्स की संख्या साल 2017 में 2 लाख 54 हजार 137 थी और इन्हीं वोटर्स ने मोदी के चेहरे पर भाजपा का दामन थामा तो भाजपा ने ऐतिहासिक 57 सीटों पर जीत हासिल की.

अब यदि आगामी चुनाव को देखते हुए वोटर्स का आंकलन करें तो मौजूदा समय में राज्य में 78 लाख 15 हज़ार 192 मतदाता हैं, जिसमें इस बार 18 साल पूरा कर पहली बार वोटर बनने वालों की संख्या 77 हजार है. उधर राज्य में 1 लाख 40 हजार नए मतदाता शामिल हुए हैं. इन सभी आंकड़ों के लिहाज से राज्य में इस बार भी युवा वोटर की संख्या करीब 57 फीसदी ही है. यानी विधानसभा चुनाव 2022 भी युवाओं के मूड़ पर ही निर्भर रहने वाला है.

युवा तय करेंगे सरकार.

सुर्खियों में युवाओं के मुद्दे
उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देशभर में इस बार बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा बनकर सामने आया है. राज्य में भी विधानसभा चुनाव से पहले सत्ताधारी भाजपा की तरफ से युवा बेरोजगारों को रोजगार देने का दावा किया जा रहा है तो विपक्षी दल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी युवाओं पर ही दांव खेल रही है. इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने शिक्षा को भी बड़ा मुद्दा राज्य में बनाया है. स्वरोजगार के लिए बेहतर अवसर देने और उद्योग-धंधों को उत्तराखंड में स्थापित करने से जुड़े मुद्दे भी राज्य में काफी चर्चाओं में रहे. यानी प्रदेश में युवाओं से जुड़े मुद्दों को ही राजनीतिक दल तरजीह दे रहे हैं.

'फिसड्डी साबित हुई त्रिवेंद्र सरकार'
विपक्षी दल कांग्रेस कहती है कि उत्तराखंड में 1 लाख 50 हजार करोड़ का निवेश करने का दावा त्रिवेंद्र सरकार ने किया था. अब सरकार को जवाब देना चाहिए कि उत्तराखंड में यह निवेश कहां पर हुआ है और पांच बड़ी कंपनियों के नाम भी सबके सामने रखने चाहिए. कांग्रेस ने दावा किया कि प्रदेश में यदि सबसे ज्यादा सरकारी नौकरियों को किसी ने अपनी सरकार में दिलवाया है तो वह कांग्रेस की तिवारी सरकार थी. उद्योग को स्थापित करने में भी कांग्रेस की तिवारी सरकार ही सबसे आगे रही. इस लिहाज से उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार फिसड्डी ही साबित हुई है.

ये भी पढ़ें: चमोली आपदा का दर्द जौनसार बाबर के पंजिया गांव में भी छलका, दो सगे भाई सहित चार लोग लापता

'रोजगार देने के लिए सरकार ने किया अभिनव प्रयोग'
उत्तराखंड में सेवायोजन कार्यालयों में करीब 10 लाख युवाओं के रजिस्ट्रेशन करवाए गए हैं और ये आंकड़ा साल दर साल बढ़ता जा रहा है. साफ है कि युवाओं को उत्तराखंड में रोजगार देने में सरकार कामयाब साबित नहीं हो पाई है, उधर कोरोना के चलते दूसरे राज्यों से भी रिवर्स पलायन कर कई युवा उत्तराखंड वापस लौटे हैं. मौजूदा खराब वित्तीय हालातों के चलते बड़ी संख्या में युवाओं की नौकरियां गई हैं. यही सब वह चुनौतियां हैं, जो त्रिवेंद्र सरकार के सामने मुंह बाहें खड़ी है. हालांकि भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष देवेंद्र भसीन कहते हैं कि त्रिवेंद्र सरकार ने राज्य में युवाओं के रोजगार के लिए अभिनव प्रयोग किए हैं. स्वरोजगार देने से लेकर सरकारी पदों पर भी रिक्तियों को भरने का काम किया जा रहा है.

युवाओं की भूमिका होगी महत्वपूर्ण
प्रदेश में भाजपा सोशल मीडिया के जरिए युवाओं को आकर्षित करने का काम कर रही है तो दूसरी तरफ पहली बार राज्य में अपना भाग्य आजमा रही आम आदमी पार्टी ने भी सोशल मीडिया के जरिए युवाओं को ही फोकस किया है. हालांकि इस मामले में कांग्रेस कुछ पिछड़ती हुई नजर आ रही है. राज्य में 70 विधानसभा ही हैं और इन सभी में युवाओं की अच्छी खासी संख्या है. सबसे खास बात यह है कि प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस विधानसभाओं में प्रतिद्वंदी पार्टी रही है. लिहाजा चुनाव में जीत-हार का अंतर भी आठ से 10% से ज्यादा नहीं रहता और इससे ज्यादा संख्या में युवाओं की मौजूदगी से आगामी चुनाव में युवाओं के हाथों में सत्ता की चाबी होगी यह कहना गलत नहीं होगा.

Last Updated : Feb 10, 2021, 7:34 PM IST
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