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Year Ender 2022: हार कर जीतने वाले को कहते हैं बाजीगर! इन नेताओं पर सटीक बैठता है ये डायलॉग

साल 2022 अच्छी-बुरी यादों के साथ गुजरने वाला है और नई उम्मीदों से भरा नया साल हमारी दहलीज पर खड़ा है. उत्तराखंड की राजनीति के लिहाज से देखें तो साल 2022 उन नेताओं के नाम रहा, जो हार कर भी सिकंदर बने. इसमें सबसे पहला नाम तो प्रदेश के मुखिया सीएम पुष्कर सिंह धामी का आता है.

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Published : Dec 15, 2022, 5:10 PM IST

Updated : Dec 15, 2022, 8:12 PM IST

हार कर जीतने वाले को कहते हैं बाजीगर!

देहरादून: उत्तराखंड में साल 2022 राजनीतिक रूप से कुछ ऐसे नेताओं के नाम रहा, जो हारकर भी राजनीति में अपना दबदबा कायम रखने में कामयाब रहे. राजनीति में हार के बावजूद ऐसे नेताओं ने न केवल सत्ता के शीर्ष को हासिल किया, बल्कि राजनीतिक रूप से भी ऐसे ओहदे को पा लिया, जिसकी हार के बाद शायद ही उन्होंने खुद कल्पना की होगी. जाहिर है कि इसी खास राजनीतिक समीकरण के चलते ये साल न केवल राजनेताओं, बल्कि प्रदेश की आम जनता को भी याद रहेगा.

राजनीति में चुनाव ही राजनेताओं की असली परीक्षा होती है, एक जीत नेताओं के राजनीतिक भविष्य को बना भी देती है और एक हार किसी नेता की राजनीतिक मृत्यु की वजह भी बन जाती है. लेकिन ऐसे कम ही उदाहरण हैं, जब राजनीति में हार के बाद भी न केवल सत्ता के शीर्ष को किसी राजनेता ने पा लिया हो. बल्कि राजनीतिक रूप से मान-प्रतिष्ठा कम होने के बजाय और भी बढ़ गयी हो. फिलहाल ऐसे कई उदाहरण साल 2022 में उत्तराखंड के लोगों को देखने को मिले.
पढ़ें- Sports Year Ender 2022 : क्रिकेट की दुनिया से इन खिलाड़ियों ने लिया संन्यास, इनका फैसला सुनकर लोग हुए हैरान

हारे हुए नेताओं को मिली जगह: राज्य में सरकार के मुखिया से लेकर राष्ट्रीय पार्टियों के सबसे ऊंचे पद तक भी हारे हुए नेताओं को इस साल में जगह मिल गयी. किस्मत के धनी ऐसे ही लोगों में सबसे पहला नाम प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी परंपरागत सीट खटीमा में साल 2022 का विधानसभा चुनाव हार गए थे. राजनीतिक समीकरण के साथ उनकी जोरदार किस्मत ने उन्हें एक बार फिर हारने के बाद भी सत्ता के शीर्ष पर बनाए रखा.

हालांकि इसके बाद उन्होंने चंपावत सीट पर उपचुनाव को ऐतिहासिक रूप से जीतने में कामयाबी हासिल की, लेकिन चुनाव हारकर भी जिस तरह पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने में कामयाबी हासिल की, उसके बाद प्रदेश में उनकी किस्मत और बाजीगर फिल्म के "हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं" डायलॉग को खूब कहा और सुना गया.

राज्य में चुनाव हारने वालों की लंबी फेहरिस्त रही और इसमें कुछ चुनिंदा चेहरे ऐसे रहे, जिन्होंने साल 2022 में कुछ नए राजनीतिक समीकरणों के कारण इस साल को ऐतिहासिक बना दिया. वैसे मुख्यमंत्री इसमें कोई एक अकेले उदाहरण नहीं है. वैसे कुछ और चेहरे भी है जिनकी किस्मत की लकीरें साल 2022 में प्रबल रही.
पढ़ें- हरीश रावत ने सिंधिया को बताया मौसमी पक्षी, बोले- बीजेपी कमजोर होगी तो कांग्रेस में आ जाएंगे

जानिए कौन से हैं वो चेहरे: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी विधानसभा सीट हारकर राजनीतिक रूप से सहानुभूति के कारण एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे. भाजपा में ही बदरीनाथ विधानसभा सीट से चुनाव हारने के बावजूद महेंद्र भट्ट को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की ताकतवर सीट दे दी गई. ऐसे उदाहरण कांग्रेस में भी रहे जहां रानीखेत सीट से विधानसभा चुनाव हारने के बाद करण माहरा को कुछ खास राजनीतिक समीकरण के बाद कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया. इस मामले में यशपाल आर्य की किस्मत भी जोरदार रही, यशपाल आर्य ने भाजपा में कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ज्वॉइन की, लेकिन कांग्रेस की हार के बावजूद भी यशपाल आर्य ने कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष की सीट झटककर कैबिनेट मंत्री स्तर का अपना रुतबा विपक्ष में होने के बावजूद भी बरकरार रखा.

कांग्रेस ने भी हारे हुए को दी तवज्जो: भाजपा भले ही इसे किस्मत की लकीरों से जोड़ रही है और पार्टी के भीतर राजनीतिक समीकरणों को इसकी वजह बता रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के नेता इसके पीछे हारे हुए नेताओं की मेहनत को प्रमुखता दे रहे हैं. कांग्रेस पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट कहते हैं कि करण माहरा के हारने के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष बनने के पीछे उनकी किस्मत हो सकती है, लेकिन उनका संघर्ष उनको इस पद पर लाने के लिए प्रमुख वजह था. क्योंकि कांग्रेस हाईकमान पार्टी में निरंतर काम करने वालों को ही इनाम देती है और करण माहरा का संघर्ष इस इनाम की वजह है.
पढ़ें- उत्तराखंड में एक बार फिर मजार को लेकर मचा बवाल, जानें पूरा माजरा

जाहिर है कि किसी भी शीर्ष पद तक पहुंचने के लिए उस राजनेता की मेहनत महत्वपूर्ण होती है, लेकिन राजनीतिक समीकरण और प्रबल किस्मत की वजह से राजनीति में कई बार आपको वो सब मिल जाता है, जिसके बारे में आपने सोचा भी नहीं होता है.

वरिष्ठ पत्रकार भगीरथ शर्मा कहते हैं कि उत्तराखंड के लिए साल 2022 कई मायनों में खास रहेगा और उनमें से एक वजह हार कर भी बड़े पद पाने वाले ये नेता होंगे. भविष्य में जब भी इस तरह की परिस्थितियां बनेंगी तो साल 2022 के इन समीकरणों को जरूर चर्चा में लाया जाएगा, जब सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर राजनीतिक दलों ने अपने विधानसभा चुनाव में मात खाने वाले सिपहसलारों को चुना हो.

हार कर जीतने वाले को कहते हैं बाजीगर!

देहरादून: उत्तराखंड में साल 2022 राजनीतिक रूप से कुछ ऐसे नेताओं के नाम रहा, जो हारकर भी राजनीति में अपना दबदबा कायम रखने में कामयाब रहे. राजनीति में हार के बावजूद ऐसे नेताओं ने न केवल सत्ता के शीर्ष को हासिल किया, बल्कि राजनीतिक रूप से भी ऐसे ओहदे को पा लिया, जिसकी हार के बाद शायद ही उन्होंने खुद कल्पना की होगी. जाहिर है कि इसी खास राजनीतिक समीकरण के चलते ये साल न केवल राजनेताओं, बल्कि प्रदेश की आम जनता को भी याद रहेगा.

राजनीति में चुनाव ही राजनेताओं की असली परीक्षा होती है, एक जीत नेताओं के राजनीतिक भविष्य को बना भी देती है और एक हार किसी नेता की राजनीतिक मृत्यु की वजह भी बन जाती है. लेकिन ऐसे कम ही उदाहरण हैं, जब राजनीति में हार के बाद भी न केवल सत्ता के शीर्ष को किसी राजनेता ने पा लिया हो. बल्कि राजनीतिक रूप से मान-प्रतिष्ठा कम होने के बजाय और भी बढ़ गयी हो. फिलहाल ऐसे कई उदाहरण साल 2022 में उत्तराखंड के लोगों को देखने को मिले.
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हारे हुए नेताओं को मिली जगह: राज्य में सरकार के मुखिया से लेकर राष्ट्रीय पार्टियों के सबसे ऊंचे पद तक भी हारे हुए नेताओं को इस साल में जगह मिल गयी. किस्मत के धनी ऐसे ही लोगों में सबसे पहला नाम प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी परंपरागत सीट खटीमा में साल 2022 का विधानसभा चुनाव हार गए थे. राजनीतिक समीकरण के साथ उनकी जोरदार किस्मत ने उन्हें एक बार फिर हारने के बाद भी सत्ता के शीर्ष पर बनाए रखा.

हालांकि इसके बाद उन्होंने चंपावत सीट पर उपचुनाव को ऐतिहासिक रूप से जीतने में कामयाबी हासिल की, लेकिन चुनाव हारकर भी जिस तरह पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने में कामयाबी हासिल की, उसके बाद प्रदेश में उनकी किस्मत और बाजीगर फिल्म के "हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं" डायलॉग को खूब कहा और सुना गया.

राज्य में चुनाव हारने वालों की लंबी फेहरिस्त रही और इसमें कुछ चुनिंदा चेहरे ऐसे रहे, जिन्होंने साल 2022 में कुछ नए राजनीतिक समीकरणों के कारण इस साल को ऐतिहासिक बना दिया. वैसे मुख्यमंत्री इसमें कोई एक अकेले उदाहरण नहीं है. वैसे कुछ और चेहरे भी है जिनकी किस्मत की लकीरें साल 2022 में प्रबल रही.
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जानिए कौन से हैं वो चेहरे: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी विधानसभा सीट हारकर राजनीतिक रूप से सहानुभूति के कारण एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे. भाजपा में ही बदरीनाथ विधानसभा सीट से चुनाव हारने के बावजूद महेंद्र भट्ट को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की ताकतवर सीट दे दी गई. ऐसे उदाहरण कांग्रेस में भी रहे जहां रानीखेत सीट से विधानसभा चुनाव हारने के बाद करण माहरा को कुछ खास राजनीतिक समीकरण के बाद कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया. इस मामले में यशपाल आर्य की किस्मत भी जोरदार रही, यशपाल आर्य ने भाजपा में कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ज्वॉइन की, लेकिन कांग्रेस की हार के बावजूद भी यशपाल आर्य ने कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष की सीट झटककर कैबिनेट मंत्री स्तर का अपना रुतबा विपक्ष में होने के बावजूद भी बरकरार रखा.

कांग्रेस ने भी हारे हुए को दी तवज्जो: भाजपा भले ही इसे किस्मत की लकीरों से जोड़ रही है और पार्टी के भीतर राजनीतिक समीकरणों को इसकी वजह बता रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के नेता इसके पीछे हारे हुए नेताओं की मेहनत को प्रमुखता दे रहे हैं. कांग्रेस पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट कहते हैं कि करण माहरा के हारने के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष बनने के पीछे उनकी किस्मत हो सकती है, लेकिन उनका संघर्ष उनको इस पद पर लाने के लिए प्रमुख वजह था. क्योंकि कांग्रेस हाईकमान पार्टी में निरंतर काम करने वालों को ही इनाम देती है और करण माहरा का संघर्ष इस इनाम की वजह है.
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जाहिर है कि किसी भी शीर्ष पद तक पहुंचने के लिए उस राजनेता की मेहनत महत्वपूर्ण होती है, लेकिन राजनीतिक समीकरण और प्रबल किस्मत की वजह से राजनीति में कई बार आपको वो सब मिल जाता है, जिसके बारे में आपने सोचा भी नहीं होता है.

वरिष्ठ पत्रकार भगीरथ शर्मा कहते हैं कि उत्तराखंड के लिए साल 2022 कई मायनों में खास रहेगा और उनमें से एक वजह हार कर भी बड़े पद पाने वाले ये नेता होंगे. भविष्य में जब भी इस तरह की परिस्थितियां बनेंगी तो साल 2022 के इन समीकरणों को जरूर चर्चा में लाया जाएगा, जब सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर राजनीतिक दलों ने अपने विधानसभा चुनाव में मात खाने वाले सिपहसलारों को चुना हो.

Last Updated : Dec 15, 2022, 8:12 PM IST
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