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सिस्टम में फंसे रोप-वे प्रोजेक्ट, सरकारें आती रहीं, घोषणाएं करती रहीं

रोप-वे से न सिर्फ पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी, बल्कि देश-विदेश में पर्यटन के क्षेत्र में उत्तराखंड की नई पहचान बनेगी. बशर्ते सरकारी सिस्टम से ये बाहर निकल पाएं.

रोपवे प्रोजेक्ट
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Published : Sep 27, 2019, 1:29 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार देशी-विदेशी सैलानियों को आकर्षित करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है. प्रदेश का पर्यटन विभाग बोलिविया के लापॉज और मैक्सिको शहर की तरह उत्तराखंड में भी मास रैपिड ट्रांजिट सिस्टम की रोपवे प्रणाली को बढ़ावा देने को कोशिश कर रहे हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक उत्तराखंड का रुख कर सकें. पर्यटन विभाग देहरादून से मसूरी, केदारनाथ, नैनीताल और यमुनोत्री में भी रोपवे लगाने का खाका तैयार किया जा चुका है, लेकिन धरातल पर कितना काम हुआ है, आइए आपको बताते हैं.

मसूरी-देहरादून रोपवे
उत्तराखंड सरकार ऐसे बड़े रोपवे पर काम रही है जिसमें एक घंटे में एक हजार से ज्यादा लोग आसानी से आ जा सकें. इसके लिए सरकार ने मसूरी-देहरादून रोपवे का टेंडर भी कर दिया है. सारी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद भी अभी तक एग्रीमेंट पर साइन नहीं हुआ है. हालांकि, फ्रांस के टेक्नीशियन उत्तराखंड आकर जगहों का सर्वे भी कर चुके हैं. इसके साथ ही टेक्निकल इस्टीमेट भी बना लिया गया है और आगामी 3-4 महीने में इसका कार्य भी शुरू हो जाएगा.

पढ़ें- पर्यटन दिवसः आस्था, संस्कृति और प्रकृति का अदभुद संगम है 'जखोल-देवक्यारा', प्राकृतिक दृश्य कराते हैं एक नए संसार का एहसास

16 मिनट में देहरादून से मसूरी
करीब 300 करोड़ की लागत से बनने वाले मसूरी-देहरादून रोपवे की लंबाई करीब 5.5 किलोमीटर की है. इस रोपवे को फ्रांस और इंडियन कॉलेब्रेशन कंपनी बना रही है. रोपवे के बनने से बाहर से आने वाले सैलानियों को काफी राहत मिलेगी. इस रोपवे से सैलानी मात्र 16 मिनट में मसूरी पहुंच पाएंगे. इस रोपवे की एक घंटे में एक हजार यात्रियों को ले जाने की क्षमता होगी. प्रोजेक्ट के मुताबिक रोपवे के बने में करीब 2 साल का वक्त लगेगा.

सिस्टम में फंसे रोपवे प्रोजेक्ट

हेमकुंड साहिब जाने वाले यात्रियों को होगी आसानी
दूसरा रोपवे गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब के बीच में बनाया जाएगा. ये दो पार्ट में होगा. पहले पार्ट में गोविंदघाट से घांघरिया और दूसरे पार्ट में घांघरिया से हेमकुंड साहिब तक रोपवे बनाया जाएगा. इस रोपवे के बनने से हेमकुंड साहिब जाने वाले तीर्थयात्रियों को काफी सहुलियत मिलेगी. क्योंकि अभी हेमकुंड जाने वाले तीर्थयात्रियों को गोविंदघाट से हेमकुंड जाने के लिए 19 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़नी होती है.

पढ़ें- पर्यटन दिवस विशेष: उत्तराखंड को आखिर कब मिलेंगे 13 नए टूरिस्ट डेस्टिनेशन ?

आसानी से पहुंच सकेंगे फूलों की घाटी
इस रोपवे के बनने से आप आसानी से फूलों की घाटी पहुंच सकते हैं. वर्तमान हालात में गोविंदघाट से फूलों की घाटी जाने के लिए 15 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है लेकिन घांघरिया तक रोपवे जाने के बाद पर्यटकों को मात्र 3 किलोमीटर ही पैदल चलाना पड़ेगा. ये प्रोजेक्ट करीब 311 करोड़ की लागत का है, जिसकी लंबाई करीब 7.08 किमी है.

8 सालों से अधर में लटका खरसाली-यमुनोत्री रोपवे
अभी यमुनोत्री धाम जाने के लिए श्रद्धालुओं को जानकीचट्टी से पैदल जाना पड़ता है. ये पैदल मार्ग संकरा और खतरनाक है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए 2011 में तत्कालीन राज्य सरकार ने खरसाली-यमुनोत्री रोपवे बनाने की स्वीकृति दी थी. 70 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले रोपवे के निर्माण का जिम्मा पीपीपी मोड पर मुंबई की टॉपवर्थ इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को सौंपा गया था, जिसकी तमाम औपचारिकताएं पूरी हो चुकी है. बावजूद इसके अभी तक खरसाली-यमुनोत्री रोपवे का निर्माण कर शुरू नहीं हो पाया है.

इन सब के बारे में पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने बताया कि प्रदेश में कई और जगह भी रोपवे के लिए सिस्टम डेवेलप किया गया है. नैनीताल रोपवे को एडवर्टाइज करना है, यमुनोत्री रोपवे के लिए टेंडर प्रक्रिया को प्रकाशित करने की तैयारी चल रही है.
केदारनाथ में रोपवे बनाने के लिए अभी सर्वे की प्रक्रिया पूरी हुई है. इसके साथ ही आगामी कुछ महीनो में सभी रोपवे प्रकाशित कर दिए जाएंगे. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में लोगों की काफी रुचि भी है और सरकार भी पूर्ण रूप से मदद कर रही है, लिहाजा जल्दी इन सभी रोपवे पर काम शुरू हो जाएगा.

राज्य में रोप-वे प्रोजेक्ट शुरू न होने से पर्यटकों और श्रद्धालुओं को राहत नहीं मिल पा रही है. जानकारों की मानें तो रोप-वे से न सिर्फ पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी, बल्कि देश-विदेश में पर्यटन के क्षेत्र में उत्तराखंड की नई पहचान बनेगी. बशर्ते सरकारी सिस्टम से ये बाहर निकल पाएं.

देहरादून: उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार देशी-विदेशी सैलानियों को आकर्षित करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है. प्रदेश का पर्यटन विभाग बोलिविया के लापॉज और मैक्सिको शहर की तरह उत्तराखंड में भी मास रैपिड ट्रांजिट सिस्टम की रोपवे प्रणाली को बढ़ावा देने को कोशिश कर रहे हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक उत्तराखंड का रुख कर सकें. पर्यटन विभाग देहरादून से मसूरी, केदारनाथ, नैनीताल और यमुनोत्री में भी रोपवे लगाने का खाका तैयार किया जा चुका है, लेकिन धरातल पर कितना काम हुआ है, आइए आपको बताते हैं.

मसूरी-देहरादून रोपवे
उत्तराखंड सरकार ऐसे बड़े रोपवे पर काम रही है जिसमें एक घंटे में एक हजार से ज्यादा लोग आसानी से आ जा सकें. इसके लिए सरकार ने मसूरी-देहरादून रोपवे का टेंडर भी कर दिया है. सारी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद भी अभी तक एग्रीमेंट पर साइन नहीं हुआ है. हालांकि, फ्रांस के टेक्नीशियन उत्तराखंड आकर जगहों का सर्वे भी कर चुके हैं. इसके साथ ही टेक्निकल इस्टीमेट भी बना लिया गया है और आगामी 3-4 महीने में इसका कार्य भी शुरू हो जाएगा.

पढ़ें- पर्यटन दिवसः आस्था, संस्कृति और प्रकृति का अदभुद संगम है 'जखोल-देवक्यारा', प्राकृतिक दृश्य कराते हैं एक नए संसार का एहसास

16 मिनट में देहरादून से मसूरी
करीब 300 करोड़ की लागत से बनने वाले मसूरी-देहरादून रोपवे की लंबाई करीब 5.5 किलोमीटर की है. इस रोपवे को फ्रांस और इंडियन कॉलेब्रेशन कंपनी बना रही है. रोपवे के बनने से बाहर से आने वाले सैलानियों को काफी राहत मिलेगी. इस रोपवे से सैलानी मात्र 16 मिनट में मसूरी पहुंच पाएंगे. इस रोपवे की एक घंटे में एक हजार यात्रियों को ले जाने की क्षमता होगी. प्रोजेक्ट के मुताबिक रोपवे के बने में करीब 2 साल का वक्त लगेगा.

सिस्टम में फंसे रोपवे प्रोजेक्ट

हेमकुंड साहिब जाने वाले यात्रियों को होगी आसानी
दूसरा रोपवे गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब के बीच में बनाया जाएगा. ये दो पार्ट में होगा. पहले पार्ट में गोविंदघाट से घांघरिया और दूसरे पार्ट में घांघरिया से हेमकुंड साहिब तक रोपवे बनाया जाएगा. इस रोपवे के बनने से हेमकुंड साहिब जाने वाले तीर्थयात्रियों को काफी सहुलियत मिलेगी. क्योंकि अभी हेमकुंड जाने वाले तीर्थयात्रियों को गोविंदघाट से हेमकुंड जाने के लिए 19 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़नी होती है.

पढ़ें- पर्यटन दिवस विशेष: उत्तराखंड को आखिर कब मिलेंगे 13 नए टूरिस्ट डेस्टिनेशन ?

आसानी से पहुंच सकेंगे फूलों की घाटी
इस रोपवे के बनने से आप आसानी से फूलों की घाटी पहुंच सकते हैं. वर्तमान हालात में गोविंदघाट से फूलों की घाटी जाने के लिए 15 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है लेकिन घांघरिया तक रोपवे जाने के बाद पर्यटकों को मात्र 3 किलोमीटर ही पैदल चलाना पड़ेगा. ये प्रोजेक्ट करीब 311 करोड़ की लागत का है, जिसकी लंबाई करीब 7.08 किमी है.

8 सालों से अधर में लटका खरसाली-यमुनोत्री रोपवे
अभी यमुनोत्री धाम जाने के लिए श्रद्धालुओं को जानकीचट्टी से पैदल जाना पड़ता है. ये पैदल मार्ग संकरा और खतरनाक है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए 2011 में तत्कालीन राज्य सरकार ने खरसाली-यमुनोत्री रोपवे बनाने की स्वीकृति दी थी. 70 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले रोपवे के निर्माण का जिम्मा पीपीपी मोड पर मुंबई की टॉपवर्थ इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को सौंपा गया था, जिसकी तमाम औपचारिकताएं पूरी हो चुकी है. बावजूद इसके अभी तक खरसाली-यमुनोत्री रोपवे का निर्माण कर शुरू नहीं हो पाया है.

इन सब के बारे में पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने बताया कि प्रदेश में कई और जगह भी रोपवे के लिए सिस्टम डेवेलप किया गया है. नैनीताल रोपवे को एडवर्टाइज करना है, यमुनोत्री रोपवे के लिए टेंडर प्रक्रिया को प्रकाशित करने की तैयारी चल रही है.
केदारनाथ में रोपवे बनाने के लिए अभी सर्वे की प्रक्रिया पूरी हुई है. इसके साथ ही आगामी कुछ महीनो में सभी रोपवे प्रकाशित कर दिए जाएंगे. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में लोगों की काफी रुचि भी है और सरकार भी पूर्ण रूप से मदद कर रही है, लिहाजा जल्दी इन सभी रोपवे पर काम शुरू हो जाएगा.

राज्य में रोप-वे प्रोजेक्ट शुरू न होने से पर्यटकों और श्रद्धालुओं को राहत नहीं मिल पा रही है. जानकारों की मानें तो रोप-वे से न सिर्फ पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी, बल्कि देश-विदेश में पर्यटन के क्षेत्र में उत्तराखंड की नई पहचान बनेगी. बशर्ते सरकारी सिस्टम से ये बाहर निकल पाएं.

Intro:प्रदेश की त्रिवेंद्र सरकार उत्तराखंड में देश-विदेश के सैलानियों को आकर्षित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है इसी क्रम में पर्यटन महकमा बोलिविया के लापॉज शहर और मैक्सिको शहर में संचालित होने वाले मास रैपिड ट्रांजिट सिस्टम की तरह ही उत्तराखंड में संचालित की जा रही रोपवे प्रणाली को बढ़ावा देने की कोशिश करने की कवायद में जुट गई है ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक उत्तराखंड का ओर रुख कर सकें। हालांकि पर्यटन विभाग देहरादून से मसूरी में रोपवे को हाईटेक रूप से बेहतर बनाने के साथ ही केदारनाथ रोपवे, नैनीताल  रोपवे और यमुनोत्री में भी रोपवे लगाने का खाका तैयार किया जा चुका है। आख़िर प्रदेश में क्या है रोपवे की असल स्तिथि, देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.....





Body:उत्तराखंड राज्य सरकार ऐसे बड़े रोपवेज पर काम कर रहा है जिनकी कैपेसिटी बहुत ज्यादा है जिसमें 1 घंटे में करीब एक हजार लोग जा सकें। इसी क्रम में मसूरी-देहरादून रोपवे का टेंडर हो गया है। साथ ही मसूरी-देहरादून रोपवे की सारी औपचारिकता पूर्ण हो गयी है और कंपनी को भी ट्रांसफ़र कर दी गयी है। लेकिन अभी एग्रीमेंट पर साइन होने बाकी है। हालांकि फ्रांस के टेक्नीशियन उत्तराखंड आकर इन जगहों का सर्वे भी कर चुकी हैं। इसके साथ ही टेक्निकल इस्टीमेट भी बना लिया है और आगामी 3-4 महीने में इसका कार्य भी प्रारंभ हो जाएगा।


..........देहरादून से 16 मिनट में मसूरी पहुंचेंगे सैलानी........ 

करीब 300 करोड़ की लागत से बनने वाले मसूरी-देहरादून रोपवे की लंबाई करीब 5.5 किलोमीटर की है और इस रोपवे को फ्रांस और इंडियन की कंपनी के कॉलेब्रेशन से यह रोपवे बनाया जा रहा है। इस रोपवे के बन जाने से देहरादून से मसूरी जाने वाले सैलानी मात्र 16 मिनट में मसूरी पहुच जाएंगे। और एक घंटे में करीब 1 एक हज़ार सैलानी एक तरह से जा सकेंगे और उतने ही सैलानी दूसरे तरफ से वापिस आ सकेंगे। लिहाज इस रोपवे के बन जाने के बाद सैलानियों को जाम में फसने की नौबत नही आयेगी। साथ ही सैलानी प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव भी ले पाएंगे। हालांकि इस रोपवे का निर्माण कार्य आगामी कुछ महीने में शुरू हो जाएगा, साथ ही अगले 2 साल में यह रोपवे बनकर तैयार हो जाएगा।


.......हेमकुंड साहिब जाने वाले यात्रियों को होगी आसानी........ 

गोविंदघाट से घांघरिया रोपवे और घांघरिया से हेमकुंड साहिब तक रोपवे बनने से तीर्थयात्रियों को आने जाने में काफी सहूलियत हो जाएगी। क्योकि हेमकुंड साहिब जाने के लिए तीर्थयात्रियों को गोविंदघाट से घांघरिया तक 13 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़नी होती है इसके बाद घांघरिया से हेमकुंड साहिब के लिए 6 किलोमीटर मुश्किलों भरी चढ़ाई चढ़नी पड़ती हैं। इसके साथ ही गोविंदघाटी से घांघरिया तक रोपवे बनने से फूलों की घाटी नेशनल पार्क का सैर करना भी आसान हो जाएगा। क्योकि अभी तक गोविंदघाट से फूलों की घाटी जाने के लिए 15 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता था। लेकिन घांघरिया तक रोपवे बनने से पर्यटकों को मात्र 3 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ेगी। करीब 311 करोड़ की लागत से बनने वाले गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब रोपवे की कुल लंबाई करीब 7.8 किलोमीटर है।  


....8 सालों से अधर में लटका है खरसाली- यमुनोत्री रोपवे....

उत्तराखंड के यमुनोत्री धाम की यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को जानकीचट्टी से यमुनोत्री धाम पहुंचने के लिए सकरे पैदल मार्ग से होकर गुजरना पड़ता है। जिस वजह से अमूमन जानकीचट्टी से यमुनोत्री के संकरे पैदल मार्ग पर जगह-जगह पर जाम लग जाती हैं। इन्हीं समस्याओं को देखते हुए साल 2011 में राज्य सरकार ने खरसाली- यमुनोत्री रोपवे बनाने की स्वीकृति हुई थी। 70 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले रोपवे के निर्माण का जिम्मा पीपीपी मोड पर मुंबई की टॉपवर्थ इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को सौंपा गया था। यही नही रोपवे के सर्वे के साथ ही वन एवं पर्यावरणीय स्वीकृति व वन भूमि हस्तांतरण की तमाम औपचारिकताएं पूरी होने के बावजूद भी अभी तक खरसाली- यमुनोत्री रोपवे का निर्माण कर शुरू नहीं हो पाया है। 


पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर ने बताया कि प्रदेश में कई और जगह भी रोपवेज के लिए सिस्टम डेवेलप किया गया है। नैनीताल रोपवे को एडवर्टाइज करना है, यमुनोत्री रोपवे के लिए टेंडर प्रक्रिया को प्रकाशित करने की तैयारी चल रही है। और केदारनाथ में रोपवे बनाने के लिए अभी सर्वे की प्रक्रिया पूरी हुई है। इसके साथ ही आगामी कुछ महीनो में सभी रोपवे प्रकाशित कर दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में लोगों की काफी रुचि भी है और सरकार भी पूर्ण रूप से मदद कर रही है लिहाजा जल्दी इन सभी रोपवे पर काम शुरू हो जाएगा।


बाइट - दिलीप जावलकर, पर्यटन सचिव  




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