देहरादून: विश्व रक्तदान दिवस हर साल 14 जून को मनाया जाता है. शरीर विज्ञान में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिक कार्ल लेण्डस्टेन की याद में पूरे विश्व में 14 जून को यह दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य रक्तदान को प्रोत्साहन देना और उससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना है.
सन् 1997 में डब्ल्यूएचओ ने 100 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान की शुरुआत की थी. जिसमें 124 प्रमुख देशों को शामिल करके स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने की अपील की गई थी. इस पहल का मुख्य कारण था कि किसी भी व्यक्ति को रक्त की अगर आवश्यकता पड़े तो उसे पैसे देकर रक्त ना खरीदना पड़े. उत्तराखंड की अगर बात करें तो 2018 के आंकड़ों के मुताबिक देहरादून के लोगों ने बढ़-चढ़कर रक्तदान किया था. इसके ठीक विपरीत टिहरी जिले ने सबसे कम रक्तदान किया था.
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इस संबंध में नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन के अपर परियोजना निदेशक अर्जुन सिंह सेंगर कहते हैं कि आज की युवा पीढ़ी बढ़ चढ़कर रक्तदान कर रही है. उन्होंने कहा कि रक्त का कोई विकल्प नहीं होता है और आज का युवा विकास की रीढ़ माना जाता है. ऐसे में आज के युवा जागरूक हैं और जानते हैं कि आज की तारीख में जितनी भी दुर्घटनाएं हो रही हैं. उस में रक्त का कितना महत्व है.
युवाओं को स्कूलों व I.C.E. के माध्यम से भी जागरूक किया जाता है कि रक्त का कोई विकल्प नहीं होता है. बल्कि रक्तदान करने से कोई हानि नहीं होती. रक्तदान करने से ये फायदा होता है कि कम से कम पांच बीमारियों की स्क्रीनिंग इससे हो जाती है.
डॉ. अर्जुन सिंह सेंगर कहते हैं कि सभी जिलों में ब्लड डोनेट करने की सुविधाएं सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई हैं. तो वहीं, 18 साल से अधिक के युवा स्वैच्छिक रक्तदान करने के लिए आगे आ रहे हैं. उत्तराखंड सरकार को भारत सरकार ने जो लक्ष्य दिया था उसके अनुरूप 130 प्रतिशत रक्तदान करवाया गया है. कोशिश यही है कि जरूरतमंद लोगों जिसमें गर्भवती महिला दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति थैलेसीमिया, हीमोफीलिया, एनीमिया के मरीजों को रक्त उपलब्ध कराया जाए ताकि कोई भी मरीज रक्त से वंचित न हो सकें.