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देवदार की लकड़ी से बना 100 साल पुराना ये मकान है भूकंपरोधी, खासियत जान रह जाएंगे हैरान

उत्तराखंड में काष्ठ कले से बने पुराने जमाने के मकान विलुप्ति के कगार पर हैं. आज के समय में लोग घर बनाने के पुराने तरीकों को छोड़ते हुए आधुनिक तकनीक की ओर बढ़ रहे हैं. इन नयी तकनीक की वजह से कई बार उनकी जान भी खतरे में पड़ जाती है. लेकिन इस दौर में भी विकासनगर के नारायण सिंह 100 साल पुराने देवदार की लकड़ी से बने मकान में ही रह रहे हैं.

woodwork house of uttarakhand is in extinction
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Published : Apr 17, 2019, 9:11 AM IST

विकासनगर: आधुनिक दौर में अब लोग कंकड़, पत्थर और सीमेंट से बने आलीशान भवनों में रहना पसंद करते हैं. लेकिन, जौनसार बावर के पनिया गांव के नारायण सिंह अभी भी देवदार की लकड़ी और पत्थरों से बने अपने 100 साल पुराने मकान में रह रहे हैं. गुजरे जामने में बने इस मकान की खास बात यह है कि यह पूरी तरह से भूकंप रोधी है. लेकिन आज के समय में काष्ठ कला से बने इन मकानों का अस्तिव खत्म होता जा रहा है.

मकान स्वामी नारायण सिंह बताते हैं कि उनके दादा परदादा ने यह मकान बनाया था. मकान के अंदर चारों ओर देवदार की लकड़ी है. दो मंजिला इस मकान में बुनियाद से पत्थरों की चिनाई के साथ ही देवदार की लकड़ी का इस्तेमाल भी किया गया है. देवदार की लकड़ी को हर दो या तीन फीट पर लगाया गया है. घर की छत देवदार की मोटी-मोटी बलिया व फाटो से बनी है. साथ ही छत नीले पत्थर से ढके रहते हैं घर में रोशनी के लिए छत पर एक रोशनदान भी होता है जिसे स्थानीय भाषा में खटाई कहते हैं.

देवदार की लकड़ी से बना 100 साल पुराना मकान

वहीं दूसरी मंजिल के चारों ओर देवदार की लकड़ी लगी है. मकान के दरवाजे काफी छोटे-छोटे हैं कि अंदर सिर झुकाकर जाना पड़ता है. घर में बैठने के लिए भी समतल देवदार की लकड़ी का प्रयोग किया गया है. मेहमानों के लिए अलग से मकान में समतल लकड़ी के फर्श से 3 से 4 इंच ऊंचाई पर घर के दोनों ओर देवदार के लकड़ी से ऊंचा स्थान बनाया गया है. जहां पर विशेषकर जनजाति परंपरा के अनुसार गांव के सम्मानित व्यक्ति और मेहमानों को सम्मान पूर्वक बैठाया जाता है.

आज के युग में लोग जहां शान-ओ-शौकत दिखाने के लिए बड़ी-बड़ी बिल्ड़िंग बना रहे हैं लेकिन भूकंप के दौरान इन मकानों में रहने वालों की जान पर भी बन आती है. जबकि जौनसार बावर में बने देवदार के लकड़ी के मकान भूकंप रोधी बताए जाते हैं. लेकिन, आधुनिकता की इस दौड़ में ग्रामीण इलाकों में भी सीमेंट कंक्रीट आदि से निर्मित मकानों को तवज्जो दी जा रही है, जिससे धीरे-धीरे काष्ठ कला विलुप्ति की ओर बढ़ रही है.

woodwork house of uttarakhand is in extinction
देवदार की लकड़ी से बना मकान

पंजिया निवासी गोपाल सिंह का कहना है वर्तमान समय में देवदार की लकड़ी से नये मकान बनाना काफी मुश्किल हो गया है क्योंकि लोग नई तकनीक की ओर बढ़ रहे हैं. वहीं मकान स्वामी नारायण सिंह ने बताया कि ऐसे मकान सालों पहले बनाये जाते थे इसलिए ये आज के समय में काफी कम देखने को मिलते हैं. आज के समय में आधुनिक मकानों की ओर कदम बढ़ाने से पहले देवदार की लकड़ी से बने ऐसे मकानों को संरक्षित रखने की जरूरत है.

विकासनगर: आधुनिक दौर में अब लोग कंकड़, पत्थर और सीमेंट से बने आलीशान भवनों में रहना पसंद करते हैं. लेकिन, जौनसार बावर के पनिया गांव के नारायण सिंह अभी भी देवदार की लकड़ी और पत्थरों से बने अपने 100 साल पुराने मकान में रह रहे हैं. गुजरे जामने में बने इस मकान की खास बात यह है कि यह पूरी तरह से भूकंप रोधी है. लेकिन आज के समय में काष्ठ कला से बने इन मकानों का अस्तिव खत्म होता जा रहा है.

मकान स्वामी नारायण सिंह बताते हैं कि उनके दादा परदादा ने यह मकान बनाया था. मकान के अंदर चारों ओर देवदार की लकड़ी है. दो मंजिला इस मकान में बुनियाद से पत्थरों की चिनाई के साथ ही देवदार की लकड़ी का इस्तेमाल भी किया गया है. देवदार की लकड़ी को हर दो या तीन फीट पर लगाया गया है. घर की छत देवदार की मोटी-मोटी बलिया व फाटो से बनी है. साथ ही छत नीले पत्थर से ढके रहते हैं घर में रोशनी के लिए छत पर एक रोशनदान भी होता है जिसे स्थानीय भाषा में खटाई कहते हैं.

देवदार की लकड़ी से बना 100 साल पुराना मकान

वहीं दूसरी मंजिल के चारों ओर देवदार की लकड़ी लगी है. मकान के दरवाजे काफी छोटे-छोटे हैं कि अंदर सिर झुकाकर जाना पड़ता है. घर में बैठने के लिए भी समतल देवदार की लकड़ी का प्रयोग किया गया है. मेहमानों के लिए अलग से मकान में समतल लकड़ी के फर्श से 3 से 4 इंच ऊंचाई पर घर के दोनों ओर देवदार के लकड़ी से ऊंचा स्थान बनाया गया है. जहां पर विशेषकर जनजाति परंपरा के अनुसार गांव के सम्मानित व्यक्ति और मेहमानों को सम्मान पूर्वक बैठाया जाता है.

आज के युग में लोग जहां शान-ओ-शौकत दिखाने के लिए बड़ी-बड़ी बिल्ड़िंग बना रहे हैं लेकिन भूकंप के दौरान इन मकानों में रहने वालों की जान पर भी बन आती है. जबकि जौनसार बावर में बने देवदार के लकड़ी के मकान भूकंप रोधी बताए जाते हैं. लेकिन, आधुनिकता की इस दौड़ में ग्रामीण इलाकों में भी सीमेंट कंक्रीट आदि से निर्मित मकानों को तवज्जो दी जा रही है, जिससे धीरे-धीरे काष्ठ कला विलुप्ति की ओर बढ़ रही है.

woodwork house of uttarakhand is in extinction
देवदार की लकड़ी से बना मकान

पंजिया निवासी गोपाल सिंह का कहना है वर्तमान समय में देवदार की लकड़ी से नये मकान बनाना काफी मुश्किल हो गया है क्योंकि लोग नई तकनीक की ओर बढ़ रहे हैं. वहीं मकान स्वामी नारायण सिंह ने बताया कि ऐसे मकान सालों पहले बनाये जाते थे इसलिए ये आज के समय में काफी कम देखने को मिलते हैं. आज के समय में आधुनिक मकानों की ओर कदम बढ़ाने से पहले देवदार की लकड़ी से बने ऐसे मकानों को संरक्षित रखने की जरूरत है.

Intro:100 वर्षों से भी पुराना देवदार की लकड़ी से बना जौनसार बावर के पनिया गांव में भूकंप रोधी मकान आज भी इस मकान में मकान स्वामी नारायण सिंह अपने पूरे परिवार के साथ रहते हैं


Body:आज के नए दौर में जहां लोग आलीशान भवनों के निर्माण में लगे हुए हैं वहीं जौनसार बावर के पनिया गांव में नारायण सिंह का मकान 100 वर्षों से भी अधिक समय का बना हुआ है यह मकान देवदार की लकड़ी वह पत्थरों से बना है सबसे खास बात यह है कि मकान पूरी तरह भूकंप रोधी है मकान स्वामी नारायण सिंह बताते हैं कि दादा परदादा ने यह मकान बनाया है मकान के अंदर चारों और देवदार की लकड़ी से बना है दो मंजिला यह मकान बुनियाद से पत्रों की चिनाई के साथ-साथ देवदार की लकड़ी का इस्तेमाल भी किया गया है चारों ओर से एक दूसरे को जोड़ती हूं देवदार की लकड़ी हार दो या तीन फीट पर लगाई गई है जिससे मकान के चारों कोने आपस में जकड़े रहते हैं वहीं दूसरी मंजिल पर चारों और देवदार की लकड़ी की लकड़ी से निर्मित किया गया है खिड़की नुमा तेरे इसकी शान बढ़ा देते हैं वहीं इस मकान के दरवाजे भी काफी छोटे छोटे बने हुए हैं मकान के अंदर जाने के लिए सर झुका कर प्रवेश करना पड़ता है मकान के अंदर बैठने के लिए समतल देवदार की लकड़ी का प्रयोग किया गया है साथ ही मेहमानों के लिए अलग से मकान के अंदर समतल लकड़ी के फर्श से 3 से 4 इंच ऊंचाई पर मकान के दोनों और टककारी नाम से बनाया हुआ देवदार के लकड़ी से ऊंचा स्थान बन्ना है जहां पर विशेषकर जनजाति परंपरा के अनुसार गांव के सम्मानित व्यक्ति में मेहमानों को सम्मान पूर्वक बैठाया जाता है मकान की छत देवदार की मोटी मोटी बलिया व फोटो से बनी होती है साथ ही छत नीले पत्थर से ढके रहते हैं घर में रोशनी के लिए छत पर एक रोशनदान भी होता है जिसे स्थानीय भाषा में खटाई कहते हैं


Conclusion:आज के आधुनिक युग में लोग कंकर पत्थर और सीमेंट के आलीशान बंगले खड़े कर रहे हैं जो देखने में तो अति सुंदर और भव्य लगते ही हैं लेकिन प्राकृतिक आपदा के जैसे भूकंप मैं यह मकान खतरे से खाली नहीं होते लेकिन जौनसार बावर में बने देवदार के लकड़ी के मकान भूकंप रोधी बताए जाते हैं धीरे धीरे कास्ट कला के यह मकान समाप्ति की ओर नजर आने लगे हैं आधुनिकता की इस दौड़ में ग्रामीण परिवेश में भी जगह बना ली है लोग आज गांव में सीमेंट कंक्रीट आदि से निर्मित मकानों को तवज्जो दे रहे हैं पंजिया निवासी गोपाल सिंह का कहना है वर्तमान समय में देवदार की लकड़ी से नए मकान बनाने काफी मुश्किल हो चुके हैं वहीं मकान स्वामी नारायण सिंह ने बताया कि ऐसे मकान वर्षों पूर्व दूसरी या तीसरी पीढ़ी को ही नसीब होते थे आज के समय में देवदार की लकड़ी से बने ऐसे मकानों को संरक्षित रखने की जरूरत है
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