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30 फीसदी महिला क्षैतिज आरक्षण को लेकर हल्ला बोल, परेड ग्राउंड में हुई पब्लिक मीटिंग - Women organizations protested

30 फीसदी महिला क्षैतिज आरक्षण (30 percent women horizontal reservation) को लेकर महिला संगठनों ने आवाज बुलंद की है. युवाओं और महिलाओं ने इसे लेकर परेड ग्राउंड में एक जनसभा आयोजित की. इस दौरान सभी ने सचिवालय कूच करने का निर्णय लिया.

30 percent women's horizontal reservation
30 फीसदी महिला क्षैतिज आरक्षण को लेकर हल्ला बोल
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Published : Nov 2, 2022, 2:23 PM IST

देहरादून: 30 प्रतिशत उत्तराखंड महिला क्षैतिज आरक्षण (30 percent women horizontal reservation) बहाल किए जाने की मांग को लेकर तमाम महिला संगठनों से जुड़ी नारी शक्ति और युवाओं ने आज सचिवालय कूच किए जाने का निर्णय लिया. इसी कड़ी में विभिन्न संगठनों से जुड़ी महिलाएं और युवा संगठन परेड ग्राउंड में एकत्रित हुए. जिसके बाद सभी ने अपनी मांगों को लेकर एक सभा का आयोजन किया.

इस दौरान कुछ महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में आकर आंदोलन में शामिल हुईं. सभा के दौरान आंदोलनकारियों ने कहा सोई हुई सरकार को जगाने के लिए उन्हें सचिवालय कूच करना पड़ेगा. आंदोलन में शामिल महिलाओं ने उत्तराखंड की नारी शक्ति जिंदाबाद जैसे नारे लगाए. सभी संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर एकजुट होने का आह्वान किया. महिलाओं ने कहा यह कोई राजनीतिक मंच नहीं है, बल्कि यह हमारे हकों की लड़ाई है. हमने यह राज्य पहाड़ की बेटियों और युवाओं के लिए मांगा था, लेकिन उन्हें आज भी नौकरी से वंचित होना पड़ रहा है. सभी महिलाओं ने सरकार से 30% महिला आरक्षण दिए जाने की मांग उठाई है.
पढ़ें- 30% आरक्षण की मैं अधिकारी, क्या बनके रहूंगी सिर्फ घस्यारी! सड़कों पर उतरीं प्रदेशभर की महिलाएं

उत्तराखंड मूल की महिलाओं के आरक्षण पर रोक जारीः बीती 24 अगस्त को उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा (UKPSC Exam) में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण (30 Percent Reservation For Women) दिए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई थी. मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने सरकार के 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिए जाने वाले साल 2006 के शासनादेश पर रोक लगाते हुए याचिकाकर्ताओं को परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी. बता दें कि सरकार जनरल कोटे (अनारक्षित श्रेणी) से 30 प्रतिशत आरक्षण उत्तराखंड की महिलाओं को दे रही थी, जिस पर रोक लगाई गई गई. मामले के मुताबिक, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश की महिला अभ्यर्थियों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि उत्तराखंड की महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जा रहा है, जिसकी वजह से वे आयोग की परीक्षा से बाहर हो गई हैं. उन्होंने सरकार के 2001 एवं 2006 के आरक्षण दिए जाने वाले शासनादेश को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया कि यह आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14, 16,19 और 21 विपरीत है.
पढ़ें- उत्तराखंड मूल की महिलाओं को UKPSC में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण नहीं, शासनादेश पर HC की रोक

कोई भी राज्य सरकार जन्म एवं स्थायी निवास के आधार पर आरक्षण नहीं दे सकती. याचिका में इस आरक्षण को निरस्त करने की मांग की गई थी. उत्तराखंड राज्य लोक सेवा आयोग की ओर से डिप्टी कलेक्टर समेत अन्य पदों के लिए हुई उत्तराखंड सम्मिलित सिविल अधीनस्थ सेवा परीक्षा में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को अनारक्षित श्रेणी में 30 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है.

देहरादून: 30 प्रतिशत उत्तराखंड महिला क्षैतिज आरक्षण (30 percent women horizontal reservation) बहाल किए जाने की मांग को लेकर तमाम महिला संगठनों से जुड़ी नारी शक्ति और युवाओं ने आज सचिवालय कूच किए जाने का निर्णय लिया. इसी कड़ी में विभिन्न संगठनों से जुड़ी महिलाएं और युवा संगठन परेड ग्राउंड में एकत्रित हुए. जिसके बाद सभी ने अपनी मांगों को लेकर एक सभा का आयोजन किया.

इस दौरान कुछ महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में आकर आंदोलन में शामिल हुईं. सभा के दौरान आंदोलनकारियों ने कहा सोई हुई सरकार को जगाने के लिए उन्हें सचिवालय कूच करना पड़ेगा. आंदोलन में शामिल महिलाओं ने उत्तराखंड की नारी शक्ति जिंदाबाद जैसे नारे लगाए. सभी संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर एकजुट होने का आह्वान किया. महिलाओं ने कहा यह कोई राजनीतिक मंच नहीं है, बल्कि यह हमारे हकों की लड़ाई है. हमने यह राज्य पहाड़ की बेटियों और युवाओं के लिए मांगा था, लेकिन उन्हें आज भी नौकरी से वंचित होना पड़ रहा है. सभी महिलाओं ने सरकार से 30% महिला आरक्षण दिए जाने की मांग उठाई है.
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उत्तराखंड मूल की महिलाओं के आरक्षण पर रोक जारीः बीती 24 अगस्त को उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा (UKPSC Exam) में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण (30 Percent Reservation For Women) दिए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई थी. मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने सरकार के 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिए जाने वाले साल 2006 के शासनादेश पर रोक लगाते हुए याचिकाकर्ताओं को परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी. बता दें कि सरकार जनरल कोटे (अनारक्षित श्रेणी) से 30 प्रतिशत आरक्षण उत्तराखंड की महिलाओं को दे रही थी, जिस पर रोक लगाई गई गई. मामले के मुताबिक, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश की महिला अभ्यर्थियों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि उत्तराखंड की महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जा रहा है, जिसकी वजह से वे आयोग की परीक्षा से बाहर हो गई हैं. उन्होंने सरकार के 2001 एवं 2006 के आरक्षण दिए जाने वाले शासनादेश को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया कि यह आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14, 16,19 और 21 विपरीत है.
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कोई भी राज्य सरकार जन्म एवं स्थायी निवास के आधार पर आरक्षण नहीं दे सकती. याचिका में इस आरक्षण को निरस्त करने की मांग की गई थी. उत्तराखंड राज्य लोक सेवा आयोग की ओर से डिप्टी कलेक्टर समेत अन्य पदों के लिए हुई उत्तराखंड सम्मिलित सिविल अधीनस्थ सेवा परीक्षा में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को अनारक्षित श्रेणी में 30 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है.

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