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जौनसार बावर के जनजातीय इलाके में बूढ़ी दीपावली की तैयारी, च्यूड़े की खुशबू से महके घर आंगन

Preparation for Budhi Diwali in Jaunsar Bawar भारत विविधताओं का देश है. इसीलिए हमारे देश के लिए कहा गया है- 'कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी' अर्थात हमारे देश भारत में हर एक कोस की दूरी पर पानी का स्वाद बदल जाता है और 4 कोस पर भाषा यानि वाणी भी बदल जाती है. पूरे देश ने 12 नवंबर को दीपावली मनाई. उत्तराखंड के जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में 12 दिसंबर से बूढ़ी दीपावली मनाई जाएगी. इन दिनों बूढ़ी दीवाली के विशेष व्यंजन च्यूड़ा (चिवड़ा) से जौनसार बावर महक रहा है.

Budhi Diwali in Jaunsar Bawar
जौनसार की बूढ़ी दीवाली
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 9, 2023, 6:04 AM IST

बूढ़ी दीपावली के लिए बनने लगा च्यूड़ा

विकासनगर: जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में इन दिनों बूढ़ी दिवाली की तैयारियां जोरों पर हैं. गांव के हर परिवार में इन दिनों चिवड़ा बनाया जा रहा है. चिवड़ा बूढ़ी दीवाली का विशेष व्यंजन है. महिलाएं इसे बनाने में तन्मयता से जुटी हुई हैं. बूढ़ी दीवाली पर्व को लेकर क्षेत्र में उत्साह बना हुआ है.

Budhi Diwali in Jaunsar Bawar
जौनसार बावर में बूढ़ी दीपावली की तैयारी

जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में बूढ़ी दीपावली की तैयारी: इन दिनों जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में बूढ़ी दीवाली की तैयारियां जोरों पर हैं. घर-घर में चल रही साफ सफाई के साथ-साथ ही पारंपरिक व्यंजन भी तैयार किए जाने लगे हैं. जौनसार बावर के हर गांव में ग्रामीण विशेष व्यंजन चिवड़ा मूढ़ी तैयार कर रहे हैं. हर घर से चिवड़ा की उठती महक बता रही है कि बूढ़ी दीवाली पर्व आने वाला है. 12 दिसंबर से शुरू होने वाली बूढ़ी दीवाली को देव दीपावली भी कहा जाता है. यह पर्व 5 दिन तक मनाया जाता है.

Budhi Diwali in Jaunsar Bawar
च्यूड़ा बूढ़ी दीपावली का विशेष व्यंजन है

जौनसार बावर में फैली चिवड़ा की खुशबू: जौनसार बावर के कुछ क्षेत्रों में देश में मनाए जाने वाली दीवाली के साथ ही नई दीवाली मनाई गई है. जबकि जौनसार बावर के कुछ क्षेत्रों में बूढ़ी दीवाली मनाने की परंपरा है. हर गांव में पारंपरिक तरीके से दीवाली का जश्न चलता है. स्थानीय लोग ईको फ्रेंडली दीवाली मनाते हैं. भीमल वृक्ष की पतली लकड़ियों की मशाल जलाकर परंपरागत तरीके से दीवाली मनाई जाती है. पांच दिवसीय बूढ़ी दीवाली के पहले दिन छोटी दीवाली और दूसरे दिन बड़ी दीवाली यानी होलियात, भिरूड़ी मनाई जाती है. किसी गांव में काठ का हाथी और किसी गांव में हिरन नृत्य कर पर्व का समापन किया जाता है. बूढ़ी दीवाली मनाने को दूरदराज क्षेत्र से करीबी रिश्तेदार और मेहमान भी आते हैं. मेहमानों को चिवड़ा, मूढ़ी और अखरोट प्रसाद के रूप में परोसने की पौराणिक परंपरा है. आपसी सौहार्द का प्रतीक जौनसारी दीपावली में लोग मिल जुलकर एक दूसरे का सहयोग करते हुए जश्न मनाते हैं. दीपावली पर गांव में लोक संस्कृति के रंग से आंगन गुलजार रहते हैं.

Budhi Diwali in Jaunsar Bawar
महिलाएं मनोयोग से च्यूड़ा बना रही हैं.

ऐसे तैयार करते हैं बूढ़ी दीवाली के लिए चिवड़ा: स्थानीय महिलाओं का कहना है कि चिवड़ा को धान से तैयार किया जाता है. 8 दिनों तक भिगोकर रखने के बाद इसे लोहे की कढ़ाई में भूनकर ओखली में मूसल से कूटा जाता है. उसके बाद चिवड़ा तैयार होता है. इसे दीपावली में अपने इष्ट देवताओं को अखरोट के साथ अर्पित कर उसके बाद प्रसाद के रूप में लोगों को वितरित की परंपरा भी है.
ये भी पढ़ें: जौनसार बावर में 15 गांवों के लोगों ने 40 साल बाद मनाई दिवाली, चालदा महासू बरसाते हैं कृपा

बूढ़ी दीपावली के लिए बनने लगा च्यूड़ा

विकासनगर: जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में इन दिनों बूढ़ी दिवाली की तैयारियां जोरों पर हैं. गांव के हर परिवार में इन दिनों चिवड़ा बनाया जा रहा है. चिवड़ा बूढ़ी दीवाली का विशेष व्यंजन है. महिलाएं इसे बनाने में तन्मयता से जुटी हुई हैं. बूढ़ी दीवाली पर्व को लेकर क्षेत्र में उत्साह बना हुआ है.

Budhi Diwali in Jaunsar Bawar
जौनसार बावर में बूढ़ी दीपावली की तैयारी

जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में बूढ़ी दीपावली की तैयारी: इन दिनों जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में बूढ़ी दीवाली की तैयारियां जोरों पर हैं. घर-घर में चल रही साफ सफाई के साथ-साथ ही पारंपरिक व्यंजन भी तैयार किए जाने लगे हैं. जौनसार बावर के हर गांव में ग्रामीण विशेष व्यंजन चिवड़ा मूढ़ी तैयार कर रहे हैं. हर घर से चिवड़ा की उठती महक बता रही है कि बूढ़ी दीवाली पर्व आने वाला है. 12 दिसंबर से शुरू होने वाली बूढ़ी दीवाली को देव दीपावली भी कहा जाता है. यह पर्व 5 दिन तक मनाया जाता है.

Budhi Diwali in Jaunsar Bawar
च्यूड़ा बूढ़ी दीपावली का विशेष व्यंजन है

जौनसार बावर में फैली चिवड़ा की खुशबू: जौनसार बावर के कुछ क्षेत्रों में देश में मनाए जाने वाली दीवाली के साथ ही नई दीवाली मनाई गई है. जबकि जौनसार बावर के कुछ क्षेत्रों में बूढ़ी दीवाली मनाने की परंपरा है. हर गांव में पारंपरिक तरीके से दीवाली का जश्न चलता है. स्थानीय लोग ईको फ्रेंडली दीवाली मनाते हैं. भीमल वृक्ष की पतली लकड़ियों की मशाल जलाकर परंपरागत तरीके से दीवाली मनाई जाती है. पांच दिवसीय बूढ़ी दीवाली के पहले दिन छोटी दीवाली और दूसरे दिन बड़ी दीवाली यानी होलियात, भिरूड़ी मनाई जाती है. किसी गांव में काठ का हाथी और किसी गांव में हिरन नृत्य कर पर्व का समापन किया जाता है. बूढ़ी दीवाली मनाने को दूरदराज क्षेत्र से करीबी रिश्तेदार और मेहमान भी आते हैं. मेहमानों को चिवड़ा, मूढ़ी और अखरोट प्रसाद के रूप में परोसने की पौराणिक परंपरा है. आपसी सौहार्द का प्रतीक जौनसारी दीपावली में लोग मिल जुलकर एक दूसरे का सहयोग करते हुए जश्न मनाते हैं. दीपावली पर गांव में लोक संस्कृति के रंग से आंगन गुलजार रहते हैं.

Budhi Diwali in Jaunsar Bawar
महिलाएं मनोयोग से च्यूड़ा बना रही हैं.

ऐसे तैयार करते हैं बूढ़ी दीवाली के लिए चिवड़ा: स्थानीय महिलाओं का कहना है कि चिवड़ा को धान से तैयार किया जाता है. 8 दिनों तक भिगोकर रखने के बाद इसे लोहे की कढ़ाई में भूनकर ओखली में मूसल से कूटा जाता है. उसके बाद चिवड़ा तैयार होता है. इसे दीपावली में अपने इष्ट देवताओं को अखरोट के साथ अर्पित कर उसके बाद प्रसाद के रूप में लोगों को वितरित की परंपरा भी है.
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