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क्या हिमाचल में उत्तराखंड जैसा रिजल्ट दोहरा पाएगी बीजेपी, ये रहे समीकरण

उत्तराखंड और पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में भौगोलिक, सांस्कृतिक के साथ राजनीतिक एकरूपता भी है. 12 नवंबर को हिमाचल की अगली सरकार के लिए वोट डाले जाएंगे. क्या हिमाचल बीजेपी विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड बीजेपी जैसा करिश्मा कर पाएगी. दरअसल दोनों राज्यों में अदल बदल कर सरकारें आती रही हैं. उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में बीजेपी ने इस बार इस मिथक को लगातार दूसरी बार सरकार बनाकर तोड़ दिया. क्या हिमाचल बीजेपी भी मिथक तोड़ पाएगी. पढ़िए हमारी ये रिपोर्ट.

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Published : Nov 7, 2022, 12:29 PM IST

देहरादून: आगामी 12 नवंबर को हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने हैं. उत्तराखंड जैसे ही सामाजिक भौगोलिक और राजनीतिक परिवेश वाले हिमाचल में क्या भाजपा उत्तराखंड जैसा इतिहास रच पाएगी. आइए इसका विश्लेषण करते हैं.

शिमला है हिमाचल की राजनीति का एपीसेंटर
भागौलिक विश्लेषण: कभी हिमाचल प्रदेश में 60 बनाम 8 का नारा बेहद प्रचलित हुआ करता था. यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे कि उत्तराखंड में पौड़ी या फिर देहरादून जिले का हाल है. उत्तराखंड में 70 विधानसभा सीट हैं तो हिमाचल में 68 विधानसभा सीट हैं. इन 68 विधानसभा सीटों में से शिमला जिले की आठ विधानसभा सीटें में ऐसी हैं जो कि सबसे ज्यादा हॉट विधानसभा सीटें मानी जाती हैं. यह समझ लीजिए कि जैसे उत्तराखंड में पौड़ी जिले में से प्रदेश की सरकार में बैठने वाला एक बड़ा हिस्सा होता है, वैसे ही हिमाचल में 60 बनाम 8 में शिमला जिले का हाल है.

यानी कि शिमला जिले जिला हिमाचल में सत्ता का केंद्र बिंदु है. वहीं इसके अलावा हिमाचल में अपर हिमाचल और लोअर हिमाचल बिल्कुल उत्तराखंड में मैदानी और पहाड़ी सीटों की तरह हिमाचल की राजनीति पर असर डालते हैं. हिमाचल में फर्क यह है कि वहां अपर हिमाचल यानी कि पहाड़ी विधानसभा सीटें देश की राजनीति में हावी रहती हैं. उत्तराखंड में धीरे-धीरे मैदान की राजनीति का असर बढ़ता जा रहा है.
ये भी पढ़ें: पांवटा साहिब में आयोजित विजय संकल्प रैली में गरजे CM धामी, बोले- हिमाचल में भी बदलेगा रिवाज

राजनीतिक इतिहास: हिमाचल राज्य के गठन के बाद यह राज्य काफी समय तक कांग्रेस का गढ़ रहा. 70 के दशक में कांग्रेस के बड़े नेता वाईएस परमार ने हिमाचल में पर्यटन और उद्यान को लेकर अभूतपूर्व कार्य किए और यही वजह है कि हिमाचल में आज तक यह दोनों सेक्टर लगातार ऊपर बढ़ते जा रहे हैं. उस दौर में कांग्रेस के बड़े नेता वाईएस परमार ने हिमाचल के सिरमौर इलाके को उद्यान के लिए खास तौर से सेब के लिए इस तरह से विकसित किया कि पूरे हिमाचल में उद्यान को लेकर एक क्रांति आई.

एक समय में कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले हिमाचल में भाजपा ने धीरे-धीरे पैर जमाए. नौबत यहां तक आ गई कि अब हिमाचल में एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस जैसे कि उत्तराखंड वाला इतिहास रहा है, उसी पैटर्न पर सरकारें बनने लगीं. क्या इस बार भाजपा इस इतिहास को तोड़ पाएगी इस पर हर किसी की नजर लगी हुई है.

हिमाचल के जातीय समीकरण और ज्वलंत मुद्दे: पहाड़ी राज्य हिमाचल में ठाकुर वोटर बहुसंख्यक में हैं. हिमाचल में 37 फ़ीसदी ठाकुरों के अलावा दूसरे नंबर पर 18 फीसदी ब्राह्मण वोटर हैं. इसके अलावा दलित वोटरों की संख्या भी तकरीबन 26 फ़ीसदी है. हालांकि हिमाचल में मुस्लिम वोटरों की संख्या उत्तराखंड के मुकाबले काफी कम है. 68 विधानसभा सीटों वाले हिमाचल राज्य में 4 लोकसभा सीटें हैं. हिमाचल में अगर उत्तराखंड की तुलना में स्वास्थ्य और शिक्षा की बात करें तो ये स्वास्थ्य और शिक्षा में उत्तराखंड से काफी ऊपर है.

हिमाचल में स्वास्थ्य और शिक्षा की बात करें तो सोशल सेक्टर में केरल के बाद हिमाचल तीसरे और चौथे नंबर पर है. वहीं उत्तराखंड स्वास्थ्य और शिक्षा के मामले में काफी नीचे है. हिमाचल की राजनीति पर असर डालने वाले अगर मुद्दों की बात की जाए तो हिमाचल में स्थानीय मुद्दे चुनाव में ज्यादा हावी रहते हैं. यानी कि क्षेत्र विशेष के मुद्दे पर वोटर अपना वोट डिसाइड करता है. मसलन शिमला क्षेत्र में सेब और उद्यान के लिए कोई नेता किस तरह से रणनीति बना रहा है, इस पर वोटर ध्यान देता है. वहीं मैदानी इलाके में खेती के अन्य मुद्दे होते हैं. वहीं इसके उलट अगर बात करें तो राष्ट्रीय मुद्दों का इतना असर हिमाचल में देखने को नहीं मिलता है.

क्या भाजपा हिमाचल में बदलेगी की इतिहास: वापस अगर अपने उसी सवाल पर आया जाए और आगामी 12 नवंबर को हिमाचल में होने वाले मतदान से पहले अगर हिमाचल की राजनीति से उत्तराखंड के चुनाव से ठीक पहले के हालातों की तुलना की जाए तो हिमाचल में भी कांग्रेस के वही हालात हैं जैसे उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक पहले थे. कांग्रेस के खेमे में हिमाचल में भी अंतर्कलह देखने को मिल रहा है. अगर बागियों की बात की जाए तो हिमाचल में हालात उत्तराखंड के बिल्कुल उलट हैं. हिमाचल में कांग्रेस के बागियों से ज्यादा भाजपा के बागी मैदान में हैं.

हिमाचल में अब तक बीजेपी के 21 और कांग्रेस के साथ बागी चुनाव लड़ रहे हैं जो कि बीजेपी के लिए एक चिंता का विषय हो सकता है. वहीं हिमाचल के कांग्रेस खेमे की बात करें तो कांग्रेस में पूर्व सीएम की पत्नी रानी प्रतिभा सिंह ठाकुर, कौल सिंह, आनंद शर्मा, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और सुखविंदर सिंह सुकू बड़े चेहरे हैं. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी में भी बड़े नेताओं की फेहरिस्त लंबी है. इसमें प्रदेश के नेताओं की अगर बात की जाए तो जयराम ठाकुर, प्रेम कुमार धूमल, पूर्व सीएम शांता कुमार, पूर्व सीएम महेंद्र ठाकुर के अलावा केंद्रीय नेता जेपी नड्डा और धर्मेंद्र प्रधान भी हिमाचल से आते हैं.
ये भी पढ़ें: उत्तराखंड की तर्ज पर हिमाचल की जनता भी बदलेगी रिवाज: CM पुष्कर सिंह धामी

हिमाचल में अब तक का चुनाव प्रचार: हिमाचल में चल रहे विधानसभा चुनाव में अगर दोनों राष्ट्रीय बड़े दलों के प्रचार प्रसार के फॉर्मेट पर नजर डाली जाए तो भाजपा चुनाव प्रचार में काफी आगे है. हिमाचल में पीएम मोदी और अमित शाह छह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 5 रैलियां कर चुके हैं. वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मोर्चा संभाले हुए हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस की तरफ से उत्तराखंड जैसे हालात हैं. काफी पहले राहुल गांधी के कुछ कार्यक्रम हुए थे. उसके बाद एक आध रैली प्रियंका गांधी की हुई थी. बाकी सारी जिम्मेदारी कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के ऊपर ही है.

देहरादून: आगामी 12 नवंबर को हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने हैं. उत्तराखंड जैसे ही सामाजिक भौगोलिक और राजनीतिक परिवेश वाले हिमाचल में क्या भाजपा उत्तराखंड जैसा इतिहास रच पाएगी. आइए इसका विश्लेषण करते हैं.

शिमला है हिमाचल की राजनीति का एपीसेंटर
भागौलिक विश्लेषण: कभी हिमाचल प्रदेश में 60 बनाम 8 का नारा बेहद प्रचलित हुआ करता था. यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे कि उत्तराखंड में पौड़ी या फिर देहरादून जिले का हाल है. उत्तराखंड में 70 विधानसभा सीट हैं तो हिमाचल में 68 विधानसभा सीट हैं. इन 68 विधानसभा सीटों में से शिमला जिले की आठ विधानसभा सीटें में ऐसी हैं जो कि सबसे ज्यादा हॉट विधानसभा सीटें मानी जाती हैं. यह समझ लीजिए कि जैसे उत्तराखंड में पौड़ी जिले में से प्रदेश की सरकार में बैठने वाला एक बड़ा हिस्सा होता है, वैसे ही हिमाचल में 60 बनाम 8 में शिमला जिले का हाल है.

यानी कि शिमला जिले जिला हिमाचल में सत्ता का केंद्र बिंदु है. वहीं इसके अलावा हिमाचल में अपर हिमाचल और लोअर हिमाचल बिल्कुल उत्तराखंड में मैदानी और पहाड़ी सीटों की तरह हिमाचल की राजनीति पर असर डालते हैं. हिमाचल में फर्क यह है कि वहां अपर हिमाचल यानी कि पहाड़ी विधानसभा सीटें देश की राजनीति में हावी रहती हैं. उत्तराखंड में धीरे-धीरे मैदान की राजनीति का असर बढ़ता जा रहा है.
ये भी पढ़ें: पांवटा साहिब में आयोजित विजय संकल्प रैली में गरजे CM धामी, बोले- हिमाचल में भी बदलेगा रिवाज

राजनीतिक इतिहास: हिमाचल राज्य के गठन के बाद यह राज्य काफी समय तक कांग्रेस का गढ़ रहा. 70 के दशक में कांग्रेस के बड़े नेता वाईएस परमार ने हिमाचल में पर्यटन और उद्यान को लेकर अभूतपूर्व कार्य किए और यही वजह है कि हिमाचल में आज तक यह दोनों सेक्टर लगातार ऊपर बढ़ते जा रहे हैं. उस दौर में कांग्रेस के बड़े नेता वाईएस परमार ने हिमाचल के सिरमौर इलाके को उद्यान के लिए खास तौर से सेब के लिए इस तरह से विकसित किया कि पूरे हिमाचल में उद्यान को लेकर एक क्रांति आई.

एक समय में कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले हिमाचल में भाजपा ने धीरे-धीरे पैर जमाए. नौबत यहां तक आ गई कि अब हिमाचल में एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस जैसे कि उत्तराखंड वाला इतिहास रहा है, उसी पैटर्न पर सरकारें बनने लगीं. क्या इस बार भाजपा इस इतिहास को तोड़ पाएगी इस पर हर किसी की नजर लगी हुई है.

हिमाचल के जातीय समीकरण और ज्वलंत मुद्दे: पहाड़ी राज्य हिमाचल में ठाकुर वोटर बहुसंख्यक में हैं. हिमाचल में 37 फ़ीसदी ठाकुरों के अलावा दूसरे नंबर पर 18 फीसदी ब्राह्मण वोटर हैं. इसके अलावा दलित वोटरों की संख्या भी तकरीबन 26 फ़ीसदी है. हालांकि हिमाचल में मुस्लिम वोटरों की संख्या उत्तराखंड के मुकाबले काफी कम है. 68 विधानसभा सीटों वाले हिमाचल राज्य में 4 लोकसभा सीटें हैं. हिमाचल में अगर उत्तराखंड की तुलना में स्वास्थ्य और शिक्षा की बात करें तो ये स्वास्थ्य और शिक्षा में उत्तराखंड से काफी ऊपर है.

हिमाचल में स्वास्थ्य और शिक्षा की बात करें तो सोशल सेक्टर में केरल के बाद हिमाचल तीसरे और चौथे नंबर पर है. वहीं उत्तराखंड स्वास्थ्य और शिक्षा के मामले में काफी नीचे है. हिमाचल की राजनीति पर असर डालने वाले अगर मुद्दों की बात की जाए तो हिमाचल में स्थानीय मुद्दे चुनाव में ज्यादा हावी रहते हैं. यानी कि क्षेत्र विशेष के मुद्दे पर वोटर अपना वोट डिसाइड करता है. मसलन शिमला क्षेत्र में सेब और उद्यान के लिए कोई नेता किस तरह से रणनीति बना रहा है, इस पर वोटर ध्यान देता है. वहीं मैदानी इलाके में खेती के अन्य मुद्दे होते हैं. वहीं इसके उलट अगर बात करें तो राष्ट्रीय मुद्दों का इतना असर हिमाचल में देखने को नहीं मिलता है.

क्या भाजपा हिमाचल में बदलेगी की इतिहास: वापस अगर अपने उसी सवाल पर आया जाए और आगामी 12 नवंबर को हिमाचल में होने वाले मतदान से पहले अगर हिमाचल की राजनीति से उत्तराखंड के चुनाव से ठीक पहले के हालातों की तुलना की जाए तो हिमाचल में भी कांग्रेस के वही हालात हैं जैसे उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक पहले थे. कांग्रेस के खेमे में हिमाचल में भी अंतर्कलह देखने को मिल रहा है. अगर बागियों की बात की जाए तो हिमाचल में हालात उत्तराखंड के बिल्कुल उलट हैं. हिमाचल में कांग्रेस के बागियों से ज्यादा भाजपा के बागी मैदान में हैं.

हिमाचल में अब तक बीजेपी के 21 और कांग्रेस के साथ बागी चुनाव लड़ रहे हैं जो कि बीजेपी के लिए एक चिंता का विषय हो सकता है. वहीं हिमाचल के कांग्रेस खेमे की बात करें तो कांग्रेस में पूर्व सीएम की पत्नी रानी प्रतिभा सिंह ठाकुर, कौल सिंह, आनंद शर्मा, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और सुखविंदर सिंह सुकू बड़े चेहरे हैं. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी में भी बड़े नेताओं की फेहरिस्त लंबी है. इसमें प्रदेश के नेताओं की अगर बात की जाए तो जयराम ठाकुर, प्रेम कुमार धूमल, पूर्व सीएम शांता कुमार, पूर्व सीएम महेंद्र ठाकुर के अलावा केंद्रीय नेता जेपी नड्डा और धर्मेंद्र प्रधान भी हिमाचल से आते हैं.
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हिमाचल में अब तक का चुनाव प्रचार: हिमाचल में चल रहे विधानसभा चुनाव में अगर दोनों राष्ट्रीय बड़े दलों के प्रचार प्रसार के फॉर्मेट पर नजर डाली जाए तो भाजपा चुनाव प्रचार में काफी आगे है. हिमाचल में पीएम मोदी और अमित शाह छह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 5 रैलियां कर चुके हैं. वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मोर्चा संभाले हुए हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस की तरफ से उत्तराखंड जैसे हालात हैं. काफी पहले राहुल गांधी के कुछ कार्यक्रम हुए थे. उसके बाद एक आध रैली प्रियंका गांधी की हुई थी. बाकी सारी जिम्मेदारी कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के ऊपर ही है.

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