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PM जन औषधि योजनाः सस्ते इलाज का सपना अभी भी 'हिमालय चढ़ने जैसा', जानिए हकीकत - देहरादून जेनेरिक दवाई लेटेस्ट न्यूज

प्रधानमंत्री जन औषधि योजना को लेकर लोगों में इतने वक्त बाद भी जागरूकता और विश्वास नहीं आ पाया है. ऐसा क्यों है, जानिए इस स्पेशल रिपोर्ट में.

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Published : Feb 13, 2021, 8:10 PM IST

Updated : Feb 13, 2021, 11:01 PM IST

देहरादूनः देश में सस्ते इलाज का सपना तब तक नहीं देखा जा सकता, जब तक लूट मचाने वाली बड़ी फार्मा कंपनियों से गरीबों को मुक्ति न दिला दी जाए. इसका जवाब है प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना. लेकिन तब जब इस योजना का सही और व्यापक उपयोग हो. हालांकि देश भर की तरह उत्तराखंड में भी इसको लेकर न तो लोग जागरूक हैं और न ही योजना चलाने वाले गंभीर. जानिए इस स्पेशल रिपोर्ट में.

PM जन औषधि योजना

केंद्र सरकार ने साल 2015 में प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना की घोषणा की थी. इसके बाद धीरे-धीरे तमाम राज्यों में इस योजना के तहत विभिन्न केंद्र खोले जाने लगे. उत्तराखंड में भी कोरोना संक्रमण की आहट के साथ ही इस योजना को लॉन्च कर दिया गया. मार्च 2020 में योजना की शुरुआत के साथ ही प्रदेश के युवाओं को इस योजना के तहत न केवल रोजगार की संभावनाएं दिखाई गईं, बल्कि गरीबों को भी दवाइयों के रूप में एक सस्ते इलाज का भरोसा दिलाया गया.

देश भर में प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्रों को खोला जा रहा है और अब तक कुल करीब 6,700 केंद्र खोले जा चुके हैं. इस तरह मौजूदा वित्तीय वर्ष में इन केंद्रों द्वारा 519.34 करोड़ रुपए का कारोबार किया जा चुका है. उत्तराखंड में इस योजना के तहत सरकारी अस्पतालों में जन औषधि केंद्र खोले गए हैं. जिनकी संख्या राज्य में 100 से भी कम है. यूं तो इन केंद्रों में दवाइयां लेने के लिए लोग पहुंच रहे हैं, लेकिन इन केंद्रों में सस्ती दवाइयों का लाभ लेने वाले लोगों की संख्या बेहद कम है, जो लोग इन केंद्रों पर पहुंच रहे हैं. उनका कहना है कि यहां पर ब्रांडेड कंपनियों की दवाइयों के मुकाबले बेहद सस्ती दवाइयां मिलती हैं और इसका उन्हें फायदा भी मिल रहा है. लेकिन इन केंद्रों पर सभी दवाइयां नहीं मिलने के कारण उन्हें महंगी दवाइयों को भी ब्रांडेड कंपनियों वाली दवा की दुकानों में जाकर खरीदना पड़ता है.

जेनेरिक दवाओं का फायदा

प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना का मकसद लोगों को जेनेरिक दवाइयों को उपलब्ध करवाना है. जेनेरिक दवा यानी ऐसी दवाइयां जो किसी भी ब्रांड की नहीं होतीं लेकिन उतनी ही असरदार होती हैं, जितनी कि कोई महंगी ब्रांडेड दवाइयां. खास बात ये है कि जेनेरिक दवाइयां ब्रांडेड दवाइयों के मुकाबले 60 से 90% तक सस्ती होती हैं. जिससे गरीबों को इसका खास तौर पर लाभ मिल सकता है.

पढ़ेंः चमोली आपदा की कहानी, 95 साल की अम्मा की जुबानी

दवाइयों के जानकार मानते हैं कि जेनेरिक दवाओं को लेकर लोगों को जागरूक होना होगा, क्योंकि जेनेरिक दवाइयां उसी तरह फायदेमंद होती हैं, जिस तरह से कोई महंगी ब्रांडेड दवाइयां. ऐसे में लोगों को जेनेरिक दवाइयों की तरफ जाना चाहिए, ताकि इलाज को सस्ता किया जा सके और वे कम कीमत पर दवाइयां ले सकें.

क्या हैं दिक्कतें ?

जेनेरिक दवाइयां सस्ती होने के बावजूद भी बाजारों में लोगों का कम ध्यान खींच पा रही हैं. इसकी कई वजह हैं. दरअसल लोगों को जेनेरिक दवाओं पर कम विश्वास है और वह ब्रांडेड कंपनियों को ही तवज्जो देते हैं. जेनेरिक दवाओं वाले इन केंद्रों की दूसरी दिक्कत सभी दवाइयों की मौजूदगी ना होना है. दरअसल इन केंद्रों पर सीमित दवाइयां ही होती हैं. जिस कारण लोगों को सभी दवाइयां यहां से नहीं मिल पाती और लोगों को मजबूरन ब्रांडेड दवाइयों की तरफ जाना पड़ता है.

प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्र की सबसे बड़ी दिक्कत कमीशन खोरी है. दरअसल माना जाता है कि डॉक्टर्स ब्रांडेड कंपनी से दवाइयों की बिक्री को लेकर मोटे कमीशन के चलते जेनेरिक दवाइयों को नहीं लिखते और इससे मरीज मजबूरन ब्रांडेड और महंगी दवाइयों के लिए दौड़ लगाता है. जबकि उसी असर के साथ वह 90% तक कम कीमत में जेनेरिक दवा लेकर भी अपना स्वास्थ्य ठीक कर सकता है. इन सभी खामियों के चलते भारतीय जन औषधि केंद्र खोले जाने के बावजूद भी यहां पर मरीजों के दवाइयां लेने को लेकर भीड़ कम ही दिखाई देती है और इससे इन केंद्रों के हालात बंद होने जैसे ही दिखाई देते हैं.

इन सभी स्थितियों के बीच प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्र को चलाने वाली फार्मासिस्ट कहते हैं कि जो लोग उनके पास आते हैं वह सस्ती दवाइयां पाकर बेहद खुश होते हैं और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू की गई इस योजना पर पीएम मोदी का भी शुक्रिया अदा करते हैं. हालांकि कुछ खास बीमारियों की दवाइयां होने के कारण उससे जुड़े लोग ही केंद्रों पर आ पा रहे हैं.

देहरादूनः देश में सस्ते इलाज का सपना तब तक नहीं देखा जा सकता, जब तक लूट मचाने वाली बड़ी फार्मा कंपनियों से गरीबों को मुक्ति न दिला दी जाए. इसका जवाब है प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना. लेकिन तब जब इस योजना का सही और व्यापक उपयोग हो. हालांकि देश भर की तरह उत्तराखंड में भी इसको लेकर न तो लोग जागरूक हैं और न ही योजना चलाने वाले गंभीर. जानिए इस स्पेशल रिपोर्ट में.

PM जन औषधि योजना

केंद्र सरकार ने साल 2015 में प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना की घोषणा की थी. इसके बाद धीरे-धीरे तमाम राज्यों में इस योजना के तहत विभिन्न केंद्र खोले जाने लगे. उत्तराखंड में भी कोरोना संक्रमण की आहट के साथ ही इस योजना को लॉन्च कर दिया गया. मार्च 2020 में योजना की शुरुआत के साथ ही प्रदेश के युवाओं को इस योजना के तहत न केवल रोजगार की संभावनाएं दिखाई गईं, बल्कि गरीबों को भी दवाइयों के रूप में एक सस्ते इलाज का भरोसा दिलाया गया.

देश भर में प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्रों को खोला जा रहा है और अब तक कुल करीब 6,700 केंद्र खोले जा चुके हैं. इस तरह मौजूदा वित्तीय वर्ष में इन केंद्रों द्वारा 519.34 करोड़ रुपए का कारोबार किया जा चुका है. उत्तराखंड में इस योजना के तहत सरकारी अस्पतालों में जन औषधि केंद्र खोले गए हैं. जिनकी संख्या राज्य में 100 से भी कम है. यूं तो इन केंद्रों में दवाइयां लेने के लिए लोग पहुंच रहे हैं, लेकिन इन केंद्रों में सस्ती दवाइयों का लाभ लेने वाले लोगों की संख्या बेहद कम है, जो लोग इन केंद्रों पर पहुंच रहे हैं. उनका कहना है कि यहां पर ब्रांडेड कंपनियों की दवाइयों के मुकाबले बेहद सस्ती दवाइयां मिलती हैं और इसका उन्हें फायदा भी मिल रहा है. लेकिन इन केंद्रों पर सभी दवाइयां नहीं मिलने के कारण उन्हें महंगी दवाइयों को भी ब्रांडेड कंपनियों वाली दवा की दुकानों में जाकर खरीदना पड़ता है.

जेनेरिक दवाओं का फायदा

प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना का मकसद लोगों को जेनेरिक दवाइयों को उपलब्ध करवाना है. जेनेरिक दवा यानी ऐसी दवाइयां जो किसी भी ब्रांड की नहीं होतीं लेकिन उतनी ही असरदार होती हैं, जितनी कि कोई महंगी ब्रांडेड दवाइयां. खास बात ये है कि जेनेरिक दवाइयां ब्रांडेड दवाइयों के मुकाबले 60 से 90% तक सस्ती होती हैं. जिससे गरीबों को इसका खास तौर पर लाभ मिल सकता है.

पढ़ेंः चमोली आपदा की कहानी, 95 साल की अम्मा की जुबानी

दवाइयों के जानकार मानते हैं कि जेनेरिक दवाओं को लेकर लोगों को जागरूक होना होगा, क्योंकि जेनेरिक दवाइयां उसी तरह फायदेमंद होती हैं, जिस तरह से कोई महंगी ब्रांडेड दवाइयां. ऐसे में लोगों को जेनेरिक दवाइयों की तरफ जाना चाहिए, ताकि इलाज को सस्ता किया जा सके और वे कम कीमत पर दवाइयां ले सकें.

क्या हैं दिक्कतें ?

जेनेरिक दवाइयां सस्ती होने के बावजूद भी बाजारों में लोगों का कम ध्यान खींच पा रही हैं. इसकी कई वजह हैं. दरअसल लोगों को जेनेरिक दवाओं पर कम विश्वास है और वह ब्रांडेड कंपनियों को ही तवज्जो देते हैं. जेनेरिक दवाओं वाले इन केंद्रों की दूसरी दिक्कत सभी दवाइयों की मौजूदगी ना होना है. दरअसल इन केंद्रों पर सीमित दवाइयां ही होती हैं. जिस कारण लोगों को सभी दवाइयां यहां से नहीं मिल पाती और लोगों को मजबूरन ब्रांडेड दवाइयों की तरफ जाना पड़ता है.

प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्र की सबसे बड़ी दिक्कत कमीशन खोरी है. दरअसल माना जाता है कि डॉक्टर्स ब्रांडेड कंपनी से दवाइयों की बिक्री को लेकर मोटे कमीशन के चलते जेनेरिक दवाइयों को नहीं लिखते और इससे मरीज मजबूरन ब्रांडेड और महंगी दवाइयों के लिए दौड़ लगाता है. जबकि उसी असर के साथ वह 90% तक कम कीमत में जेनेरिक दवा लेकर भी अपना स्वास्थ्य ठीक कर सकता है. इन सभी खामियों के चलते भारतीय जन औषधि केंद्र खोले जाने के बावजूद भी यहां पर मरीजों के दवाइयां लेने को लेकर भीड़ कम ही दिखाई देती है और इससे इन केंद्रों के हालात बंद होने जैसे ही दिखाई देते हैं.

इन सभी स्थितियों के बीच प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्र को चलाने वाली फार्मासिस्ट कहते हैं कि जो लोग उनके पास आते हैं वह सस्ती दवाइयां पाकर बेहद खुश होते हैं और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू की गई इस योजना पर पीएम मोदी का भी शुक्रिया अदा करते हैं. हालांकि कुछ खास बीमारियों की दवाइयां होने के कारण उससे जुड़े लोग ही केंद्रों पर आ पा रहे हैं.

Last Updated : Feb 13, 2021, 11:01 PM IST
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