देहरादून: तीरथ सिंह रावत ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा दे दिया. वे पिछले तीन दिनों से दिल्ली में डेरा डाले हुए थे. कई दौर की बैठकों के बाद हाईकमान ने उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन का फैसला किया है. उत्तराखंड की राजनीति में ऐसा पहली बार नहीं है जब चुनाव से ठीक पहले किसी पार्टी ने अपना सीएम बदला हो, मगर इस मामले में एक अनोखा संयोग ये भी है कि समीकरण साधने के चक्कर के जिस भी दल ने नेतृत्व परिवर्तन किया है, चुनावों में उस दल को कुर्सी गंवानी पड़ी है.
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9 नवबंर को 2000 को उत्तराखंड राज्य का गठन. नित्यामंद स्वामी को बीजेपी ने प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बनाया. जिसके बाद चुनाव से ठीक ऐन पहले भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गाया. इसके बाद 2002 में उत्तराखंड में विधानसभा (uttarakhand assembly elections) का पहले चुनाव हुआ. इस चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा, तब कांग्रेस ने यहां सरकार बनाई. तब एनडी तिवारी मुख्यमंत्री बनाया.
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एनडी तिवारी ने पूरे किये पांच साल
साल 2002 से 2007 यानी एनडी तिवारी के कार्यकाल को अगर छोड़ दें तो इसके बाद प्रदेश में किसी भी मुख्यमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया. साल 2007 के बाद प्रदेश में चाहे बीजेपी की सरकार रही हो या फिर कांग्रेस की, दोनों ही पार्टियों में सत्ता को लेकर खींचतान रही है. मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में लगे नेताओं ने दिल्ली तक खूब कोहराम मचाया. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही किसी मुख्यमंत्री को पांच साल टिकने नहीं दिया.
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ऐसा ही समीकरण 2007 से 2012 के बीच देखने को मिला. जब भाजपा ने तीन बार मुख्यमंत्री बदला. 2007 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई. बीसी खंडूरी प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया. इसके दो साल बाद 23 जून 2009 को उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा. इसके बाद बीजेपी ने वर्तमान केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को 2009 में मुख्यमंत्री बनाया. उनके कार्यकाल के दौरान उन पर कुंभ घोटाले का आरोप लगे. जिसके बाद उन्हें हटाकर फिर से चुनाव से पहले बीसी खंडूरी प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया. अबकी बार भी प्रदेश के सियासी माहौल को भांपने के चक्कर में फिर से बीजेपी को सरकार गंवानी पड़ा.
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साल 2012 में हुये चुनाव में खुद बीजेपी के मुख्यमंत्री ही चुनाव हार गये. तब कांग्रेस सत्ता में आई. इस बार कांग्रेस ने दिल्ली से पैरासूट सीएम के तौर पर विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया. विजय बहुगुणा के कार्यकाल में ही 2013 की केदारनाथ आपदा आई थी. केदारनाथ आपदा में उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. इसके बाद कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को हटाकर हरीश रावत को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया. जिसके बाद हुए 2017 के चुनाव में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा.
2017 में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई. तब त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया. चार साल के बाद उन्हें सीएम पद से हटाकर तीरथ को मुख्यमंत्री बनाया. आज भी 4 महीने बाद उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया. जिसके बाद एक बार फिर से नेतृत्व परिर्वतन हो रहा है.
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प्रदेश में सियासी माहौल को भांपने, पार्टी का चाल-चरित्र और चेहरा ठीक करने के लिए जितनी बार भी प्रदेश में एक ही कार्यकाल में सीएम बदले गये, उसके अगले चुनाव में सत्तासीन दल को मुंह की खानी पड़ी. प्रदेश में एक बार फिर से ऐसा ही संयोग बन गया है. जनता के मूड को भांपते हुए भाजपा आलाकमान ने पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम पद से हटाया और अब तीरथ सिंह भी उसी लिस्ट में शामिल हो गये हैं. ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनावों में क्या ये संयोग फिर से दोहराया जाएगा ये तो साल 2022 ही बताएगा.